पवन दुर्गम,बीजापुर। आजादी के सात दशक तक सरकारों की उपेक्षा का दंश पामेड़ झेलता आ रहा है. बीजापुर से बासागुड़ा के रास्ते पामेड़ के लिए अब तक पक्की सड़क नहीं बन पाई है. नक्सलवाद की आड़ में सरकारों ने न केवल पामेड़ को छला है बल्कि वैकल्पिक व्यवस्था देकर अब मरहम लगाई जा रही है.

भले की सरकारी महकमे स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल, आश्रम पामेड़ में हों लेकिन पूरी तरह से पामेड़ बीजापुर से पक्की सड़क से नही जुड़ पाया है. बारिश के दिनों में पामेड़ बीजापुर से पूरी तरह टूट जाता है. पामेड़वासियों का दर्द तब निकलता है जब गर्भवती महिलाओं या गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीज को बीजापुर जिला हॉस्पिटल की बजाय तेलंगाना के भद्राचलम ले जाना पड़ता है.

बीजापुर जिला मुख्यालय से पामेड़ को जोड़ने वाली सड़क पर मुख्य ये 8 गांव हैं…

बीजापुर- आवापल्ली- 35 किमी, बासागुड़ा-17 किमी, पुसबाक- 8 किमी, गगनपल्ली- 3 किमी, मुरकीपाढ़- 4 किमी, कोंडापल्ली-12 किमी, कावरगट्टा- 10 किमी, जीढ़पाल- 4 किमी, गोल्लापल्ली-2 किमी, धर्मारम-3 किमी आखिरी 4 किमी को दूरी तय करके पामेड़ पहुंचा जाता है. जिला मुख्यालय से पामेड़ की दूरी 102 किलोमीटर है जिसमे बासागुड़ा से पामेड़ की दूरी 52 किलोमीटर की है जिसमे नक्सलगढ़ के 8 गांव पड़ते हैं.

बासागुड़ा से दोरनापाल को डामरीकरण सड़क से जोड़ने की कवायद शुरू है लेकिन बासागुड़ा पामेड़ सड़क की ओर सरकारें अभी भी गंभीर नहीं हैं. आज भी बीजापुर बासागुड़ा होते पामेड़ जाने के लिए दुपहिया वाहन से ही दहसत के साये में यात्री सफर करने को मजबूर हैं. छत्तीसगढ़ तेलंगाना के आखिरी छोर और माओवादियों के बड़े कैडर की मौजूदगी पामेड़ को रेड जोन बना देती है. 12 किलोमीटर की सड़क बनाने में यदि 1200 सुरक्षाबल के जवान जिसमें सीआरपीएफ, सीएएफ, डीआरजी और कोबरा के जवान तेलांगना से पामेड़ तक तैनात हों तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस पूरे इलाके में माओवादियों की कैसी पैठ है.

पामेड़ की अलग ये पहचान

पामेड़ अभयारण्य बीजापुर जिले के NH 63 पर जगदलपुर निजामाबाद सड़क पर स्थित है निकटतम रेलवे स्टेशन किरंदुल है. अभ्यारण का कुल क्षेत्रफल 262 वर्ग किलोमीटर है इस अभयारण्य का नाम पामेड़ गांव के नाम पर रखा गया है यह अभयारण्य मिश्रित पर्णपाती वनों की 5 पहाड़ों को मिलाकर बनाया गया है जिसमें मेटागुंडम, कोरगुट्टा, बलराजगुट्टा, कोटापल्ली,और डोलीगुट्टा से घिरा हुआ है अभ्यारण में जंगली सनकी अत्यधिक मात्रा समायोजित करने के लिए 1983 में स्थापित किया गया यहां मुख्य रूप से बाघ, पैंथर, चीतल और विभिन्न प्रकार के वन्यप्राणियों का घर है पामेड़ वन्यजीव अभ्यारण महत्वपूर्ण अभ्यारण में से एक है.