रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और पूर्व पंचायत व ग्रामीण विकास मंत्री अजय चंद्राकर ने राजनांदगाँव ज़िले के डोंगरगढ़ थाना क्षेत्र के ग्राम करवारी निवासी भूषण सिन्हा द्वारा राज्यपाल से इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगे जाने पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि आख़िर प्रदेश में सरकार और क़ानून नाम की कोई चीज अस्तित्व में है या नहीं? क्या प्रदेश के लोग दबंगों की गुंडागर्दी, अत्याचार और अपराधों के साए में ही जीने के लिए विवश किए जाते रहेंगे? चंद्राकर ने कहा कि प्रदेश सरकार पंचायती राज के सशक्तिकरण की डींगें तो ख़ूब हाँक रही है, लेकिन ज़मीनी तौर पर सत्तारूढ़ दल का राजनीतिक संरक्षण पाकर दबंगों ने पंचायतों में आतंक मचा रखा है, ग्राम करवारी का यह मामला इस बात का जीवंत प्रमाण है.

पूर्व मंत्री चंद्राकर ने कहा कि ग्राम करवारी निवासी भूषण सिन्हा द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मई माह में आवेदन कर मांगी गई जानकारी के मद्देनज़र ग्राम पटेल दुलार सिन्हा समेत पंचायत के जनप्रतिनिधियों ने तुरंत बैठक करके पीड़ित भूषण पर 10 हज़ार रुपए का अर्थदंड लगाया गया और आवेदन वापस नहीं लेने पर घर पर ताला लगवाने, घर तोड़ने और गांव से बहिष्कृत करने की धमकी तक दी गई. सरपंच द्वारा अर्थदंड शीघ्र जमा करने का दबाव बनाने पर पीड़ित भूषण ने एसडीओपी को जून में आवेदन कर सुरक्षा मांगी लेकिन अगले ही दिन सरपंच, उपसरपंच आदि ने मिलकर रास्ते में रोक भूषण से न केवल मारपीट की, अपितु एसडीओपी को की गई शिकायत वापस नहीं लेने पर अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने कहा. चंद्राकर ने कहा कि इस मामले में पुलिस की भूमिका आरोपियों को संरक्षण देने वाली रही है जबकि भूषण ने तमाम ज़रूरी दस्तावेज़ी साक्ष्य पेश किए लेकिन पुलिस ने उन्हें झूठा और फ्रॉड बताकर पीड़ित को आरोपियों से क्षमा मांगने कहा. हद तो तब हो गई जब आरोपियों ने कोर्ट-थाना के खर्च के नाम पर दिसंबर तक 2.40 लाख रुपए देने पीड़ित भूषण को कहा गया.

इस बात पर हैरत जताई कि प्रदेश सरकार गांधीवाद, लोकतंत्र, पंचायती राज के सशक्तिकरण की बातें कर रही है, और दूसरी तरफ़ अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल करने वालों के ख़िलाफ़ प्रशासन की शह और सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक संरक्षण में कुछ मुठ्ठीभर लोग अपने रसूख का दम दिखाकर पंचायती राज व्यवस्था को हाईजैक करने पर आमादा हैं और प्रदेश सरकार व उसकी पुलिस बजाय पीड़ित की सहायता करने और दबंगों को क़ानून की ज़द में लाने के उल्टे पीड़ित को ही इस क़दर मानसिक प्रताड़ना के दौर में जीने के लिए विवश करती दिख रही है कि अंतत: भूषण को राज्यपाल से इच्छा मृत्यु मांगनी पड़ रही है. यह मामला प्रदेश सरकार के माथे पर कलंक है और प्रदेश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे काला दिन है. चंद्राकर ने मांग की कि प्रदेश सरकार को यदि लोकतंत्र और पंचायती राज में अब भी ज़रा भरोसा है तो इस मामले में तत्काल क़ानूनी कार्रवाई करते हुए दोषियों को सींखचों के पीछे डालने और किसी अनहोनी से पहले ही पीड़ित को इंसाफ़ दिलाने की पहल करनी चाहिए क्योंकि इन दबंगों पर कोई कार्रवाई नहीं होने के कारण उनका दुस्साहस बढ़ता ही जा रहा है.