शुभम नांदेकर, पांढुर्णा। ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ और ‘स्कूल चले हम’ जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं की जमीनी हकीकत मध्य प्रदेश के पांढुर्णा जिले की ग्राम पंचायत रामाकोना में देखने को मिल रही है। जहां शासकीय कन्या शाला और प्राथमिक बालक शाला भारी बारिश के चलते पूरी तरह जलमग्न हो चुकी हैं। हालात यह हैं कि नौनिहाल बच्चों को घुटनों तक भरे गंदे पानी से होकर स्कूल पहुंचना पड़ रहा है।

स्कूल भवन के कई कमरों में पानी भर गया है और जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है। मजबूरी में कक्षा पहली से आठवीं तक के सभी बच्चों को एक ही कमरे में बैठाकर पढ़ाया जा रहा है। विद्यालय में पहले से ही कमरों की भारी कमी है और अब जलभराव ने स्थिति को और भयावह बना दिया है।

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वहीं अभिभावकों में आक्रोश है। उनका कहना है कि वे गरीब हैं, इसलिए बच्चों को प्राइवेट स्कूल में नहीं पढ़ा सकते। लेकिन जब सरकारी स्कूलों की ऐसी स्थिति हो तो मजबूरी में बच्चों की पढ़ाई और स्वास्थ्य दोनों संकट में आ जाते हैं। जलभराव के चलते कई बच्चे स्कूल आते-जाते कीचड़ में गिर रहे हैं, उनके कपड़े गंदे हो जाते हैं और कई बार बीमार भी पड़ जाते हैं।

ग्राम पंचायत और शिक्षा विभाग की घोर उदासीनता का यह जीता-जागता उदाहरण है। अब तक न तो पंचायत ने कोई सुध ली न ही प्रशासन ने कोई कार्यवाही की। न तो पंप के जरिए पानी निकाला गया और न ही बच्चों के लिए वैकल्पिक कक्षाओं की व्यवस्था की गई।

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शिवराज मामा को कर रहे याद

स्थानीय माताएं आज शिवराज मामा को याद कर रही हैं। क्यों कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, जो हमेशा अपनी “भांजियों” के लिए संवेदनशील नजर आते थे। वर्तमान में वे केंद्रीय कृषि मंत्री हैं, लेकिन उनके द्वारा शुरू की गई “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” जैसी योजनाएं अब स्थानीय स्तर पर सिर्फ कागजों में ही जीवित रह गई हैं।

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