रायपुर। सरकार में मंत्रियों के अतिरिक्त मंत्री समान संसदीय सचिव का पद लाभ का पद है. लिहाजा सरकार विधायकों संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त नहीं कर सकती. फैसला आ चुका है. नतीजा आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों सदस्यता समाप्त. लेकिन एक देश में एक कानून को दिल्ली और छत्तीसगढ़ के संदर्भ में अलग-अलग रूप में देखना उचित होगा. राजनीतिक तौर पर नजरिया बदल सकती है. मन में सवालों का बवंडर उठ सकता है.

पर सवालों का जवाब आपको मिलेगा नहीं, क्योंकि दिल्ली की तरह अभी छत्तीसगढ़ में फैसला आया नहीं है. फैसला पहले कोर्ट से होगा फिर निर्यण राजभवन से होकर चुनाव आयोग के दरवाजे पहुँचेगा. उसके बाद फिर राष्ट्रपति के चौखट पर. इन तमाम प्रकियाओं को पूरा होने में वक्त़ लंबा लगता सकता है. शायद तब तक रमन सरकार का कार्यकाल पूरा हो जाए और चुनावी आचार संहित राज्य में लागू हाे जाए. जरूरी नहीं दिल्ली की तरह फैसला तात्कालिक तौर पर आपको यहाँ मिले.

खैर इससे इतर आप सरकारी सुविधाओं पर आइए क्योंकि कोर्ट ने तो इस पर रोक लगा दी है. फिर भी यहाँ संसदीय सचिव शब्द का इस्तेमाल हो रहा, सरकारी आवास भी उन 11 विधायकों के पास है जिन्हें सरकार ने संसदीय सचिव बनाया हुआ है. सरकारी बंगला ही नहीं, सरकारी गाड़ी का भी मान्यनीय पूरा सुख भोग रहे हैं, वेतन और भत्ते पर भी रोक किसी तरह से लगी नहीं है. मसलन नाम के साथ बंगला, बंगले के साथ गाड़ी और सुविधा सारी सरकारी बराबर अगर छत्तीसगढ़ में कुछ है, तो वो ‘संसदीय सचिव’ है.