रायपुर. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से सरगुजा के परसा ब्लॉक प्रभावित ग्रामीण मिले. परसा ब्लॉक ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि बिना ग्राम सभा की सहमति के उनकी ज़मीने अधिग्रहित करने की साज़िश की जा रही है. ग्रामीणों ने मांग की है कि गैरकानूनी तरीके से हो रही भू अधिग्रहण की प्रक्रिया रद्द की जाए. ग्रामीणों ने कहा कि वे इस परियोजना के विरोध में हैं. लिहाज़ा इस कोल ब्लॉक का आवंटन रद्द किया जाए.

परसा कोल ब्लॉक सरगुजा के हसदेव अरन्य कोलफील्ड में स्थित है. जिसे राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन लिमिटेड को आवंटित किया गया है. राजस्थान विद्युत उत्पादन लिमिटेड ने इसके खनन का ठेका अडानी को दिया है.

ग्रामीणों ने बताया कि ये इलाका पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आता है. जहां पेसा कानून 1996 लागू है. ज़मीन अधिग्रहण कानून 2013 भी ये कहता है कि ग्राम सभा की सहमति के बिना भूमि अधिग्रहण नहीं किया जा सकता है. 2015 में सुप्रीम कोर्ट से 200 कोल ब्लॉक निरस्त होने के बाद फिर से आवंटन प्रक्रिया शुरु हुई तब परसा कोलब्लॉक से प्रभावित ग्राम सभाओं ने कोल ब्लॉक का आवंटन न करने की प्रधानमंत्री से मांग करते हुए चिट्ठी लिखी थी.

लेकिन प्रधानमंत्री ने ग्रामीणों की मांग को दरकिनार करते हुए कोल ब्लॉक आवंटित किया. गौरतलब है कि ये इलाका देश का दूसरा सबसे समृद्ध वनक्षेत्र में शामिल हैं और जंगली हाथियों का कॉरिडोर क्षेत्र है. इन बातों के मद्देनज़र 2009 में यूपीए सरकार ने इसे खनन के लिए नो-गो क्षेत्र घोषित किया था. लेकिन मोदी के शासनकाल में कोल ब्लॉकों को आवंटन के लिए खोल दिया. इस संबंध में तात्कालीन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर सवाल का जवाब दिया था कि जंगल कहीं भी लगाए जा सकते हैं लेकिन कोयला जहां पर है. खनन वहीं हो सकता है.

ग्रामीणों का कहना है कि यहां कहीं भी ग्रामसभा की मज़ूरी नहीं ली गई है. उसके बिना ज़मीन अधिग्रहित करने की कोशिश की जा रही है. इस मामले की पर्यावरणीय स्वीकृति अभी तक नहीं हुई है. केंद्रीय पर्यावरण प्रभाव आकलन समिति ने इस परियोजना को पर्यावरणीय स्वीकृति को तीन बार वापिस कर दिया था. समिति ने राज्य वन्यजीव संरक्षण बोर्ड से परियोजना से हाथियों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जानकारी मांगी है. जल संसाधन विकास से हसदेव नदी पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव के संबंध में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. आदिम जाति कल्याण विभाग से आदिवासियों की आजीविका और ग्रामसभा की सहमति के संबंध में रिपोर्ट तलब की थी.

ग्रामीणों ने बताया कि इस परियोजना की पर्यावरणीय और वन स्वीकृति के लिए ज़िला प्रशासन के दबाव में पंचायत सचिव के माध्यम से फर्जी ग्रामसभा का प्रस्ताव तैयार कर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेजा गया. जब ये फर्जी प्रस्ताव ग्रामीणों के हाथ लगा तो ग्रामीणों ने इसकी शिकायत कलेक्टर से की. ग्रामीणों ने अडानी कंपनी, ग्राम सचिव और शामिल अन्य शासकीय अधिकारियों पर मामले पंजीबद्ध करने की मांग की है. लेकिन इस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. ग्रामीणो ने मुख्यमंत्री से दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की है.