अजय शर्मा,भोपाल। मध्य प्रदेश के आने वाले विधानसभा चुनाव में एक बार फिर सबसे दिलचस्प लड़ाई दलबदलू घोषित नेताओं की देखने को मिलने वाली है. ऐसे दर्जन भर से ज्यादा नेता हैं, जो चुनाव से पहले अपना दल बदल करने के लिए पहचाने जाते हैं. इन नेताओं का मकसद सिर्फ सत्ता का सुख बरकरार रखना है. जिनकी फितरत ही टिकट न मिलने पर तत्काल बदल जाती है.
दलबदलू का यह चलन सबसे ज्यादा ग्वालियर-चंबल अंचल देखने को मिलता है. चुनाव के दौरान टिकट न मिलने पर दूसरे दल की नाव पर सवार हो जाना यहां के नेताओं की फितरत में शामिल है. दलबदलू नेता अगर एक पार्टी से टिकट नहीं मिली तो छलांग लगाकर दूसरी पार्टी में चले जाते हैं. ऐसा अभी तक के मध्य प्रदेश के इतिहास में हुए कई चुनावों में देखने को मिला है. एक बार फिर ऐसे उम्मीदवार सियासी मैदान में अपना भाग्य आजमाते नजर आएंगे, जो तीन से चार राजनीतिक दलों का स्वाद चखकर फिर नई पार्टी से चुनावी नैया पार लगाने में जुटे है. दलबदलू के संख्या बल की बात की जाए तो एक दर्जन से नेता जिन्होंने सबसे ज्यादा दलबदल किया उनमें से आधे ग्वालियर चम्बल से आते हैं.
अखण्ड प्रताप सिंह
मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा बार दलबदल करने का चेहरे के रूप में पूर्व मंत्री अखंड प्रताप सिंह के रूप में पहचान जाता है. 80 साल के सिंह कांग्रेस और बीजेपी दोनों से ही चुनाव लड़ मंत्री रह चुके हैं. इसके अलावा बीएसपी, निर्दलीय और अब आम आदमी पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ने की तैयारी में उनके नाम मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा दलबदल ओर सर्वाधिक पार्टी में रहने का रिकॉर्ड है.
हरिवल्लभ शुक्ला
शिवपुरी जिले के हरिवल्लभ शुक्ला पहले कांग्रेस में थे. टिकट नहीं मिली तो 2003 में राष्ट्रीय समानता दल के टिकट पर पोहरी से चुनाव लड़े और जीते. 2004 में उन्हें भाजपा ने लोकसभा के लिए गुना से प्रत्याशी बनाया. 2008 के विधानसभा चुनाव में वे बसपा के टिकट पर पोहरी से लड़े, लेकिन हार गए. शुक्ला ने 2013 में कांग्रेस के टिकट पर पोहरी से चुनाव लड़ा और भाजपा के प्रहलाद भारती से हार गए. शुक्ला फिर से चुनावी मैदान में भाग्य आजमाने जा रहे.
फूल सिंह बरैया
फूल सिंह बरैया इस बार उपचुनाव में उम्मीदवार हैं. दतिया जिले की भांडेर विधानसभा सीट से बसपा के विधायक रह चुके फूलसिंह बरैया ने चार दलों की सवारी की है. बसपा से नाराज होकर उन्होंने समता समाज पार्टी का दामन थामा. कुछ दिनों बाद उन्होंने भाजपा की भी संगत कर ली. बाद में उनका मन भाजपा से ऊब गया तो उन्होंने बहुजन संघर्ष दल बना लिया. अब बहुजन संघर्ष दल से वे कांग्रेस में शामिल हो गए हैं.
एंदल सिंह कंसाना
मुरैना जिले की सुमावली सीट से भाजपा उम्मीदवार एंदल सिंह कंसाना ने पहले टिकट न मिलने पर कांग्रेस छोड़ी थी. अब मंत्री की कुर्सी न मिलने पर पार्टी को अलविदा कह दिया. 1993 में कंसाना को कांग्रेस से टिकट नहीं मिली तो वे बसपा से चुनाव लड़ गए और जीते. कंसाना फिर बीजेपी से उम्मीदवारी के लिए प्रयासरत हैं उधर कांग्रेस के भी संपर्क में है.
अजब सिंह कुशवाहा
सुमावली से कांग्रेस उम्मीदवार अजब सिंह कुशवाहा ने 2003 में बसपा से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. 2008 में भी वे बसपा के टिकट पर उम्मीदवार बने, लेकिन फिर हार गए. 2018 का चुनाव अजब सिंह ने भाजपा की ओर से लड़ा, लेकिन फिर हार का मुंह देखना पड़ा. अब कुशवाह फिर दल-बदलकर मैदान में आये. उपचुनाव में अजब सिंह कुशवाहा कांग्रेस में शामिल होकर सुमावली से ही उम्मीदवार बने हैं. फिर चुनाव लड़ने की तेयारी में है.
रामप्रकाश राजौरिया
मुरैना से बसपा उम्मीदवार रामप्रकाश राजौरिया भी दूसरे दलों की सवारी कर चुके हैं. 2013 में बसपा से चुनाव लड़ा था. लेकिन वे चुनाव हार गए थे. 2018 में उनको बसपा ने टिकट नहीं दी तो वे आम आदमी पार्टी के बैनर तले चुनाव में उतर गए. इस बार भी उनको हार मिली. इसके बाद वे भाजपा में शामिल हो गए लेकिन फिर बसपा में वापस आ गए. उपचुनाव में वे फिर से बसपा के उम्मीदवार हैं. फिर चुनाव लड़ने की तैयारी में है.
मुन्नालाल गोयल
मुन्नालाल गोयल उपचुनाव में भाजपा से उम्मीदवार हैं. मुन्नालाल गोयल ने बसपा से चुनाव लड़ा. बसपा के बाद कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ा और फिर कांग्रेस पार्टी छोड़ भाजपा के चुनाव चिह्न से सियासी मैदान में उतरे अब फिर मैदान में है.
नारायण त्रिपाठी
समाजवादी पार्टी से अपने करियर की शुरुआत करने वाले अलग विंध्य प्रदेश की मांग करने वाले नारायण त्रिपाठी बीजेपी विधायक के रूप में पहचाने जाते हैं इसके पहले वह कांग्रेस में रहे फिर निर्दलीय रहे इसके बाद उन्होंने अलग बिंद प्रदेश की मांग को लेकर अपने पॉलिटिकल पार्टी खड़ी कर ली है और फिर वह मैदान में हैं.
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