नक्सल प्रभावित बेचा गांव से लौटकर प्रमोद निर्मल की रिपोर्ट

मानपुर। प्रदेश में एक बार फिर पत्थलगढ़ी की चिंगारी सुलगती दिख रही है। इस बार बस्तर की वादियों में अबूझमाड़ के घने जंगलों के बीच आदिवासियों की प्रथा और पत्थलगड़ी की गूंज सुनने को मिली है। राजस्व जिला कोंडागांव तथा पुलिस जिला नारायनपुर अंतर्गत आने वाले ग्राम बेचा में रूढ़िप्रथा ग्राम सभा का आयोजन हुआ। सैकड़ों आदिवासी जन यहां जुटे। इस दौरान जहाँ पत्थलगढ़ी की स्थापना की गई वहीं समाज के वरिष्ठों बुद्धिजीवियों ने समाज जनों को पांचवी अनुसूची व पेशा कानून समेत आदिवासियों को प्राप्त अधिकारों का पाठ भी पढ़ाया।

बस्तर के पांच जिलों के ग्रामीण जुटे ग्राम सभा में

बता दें कि ग्राम बेचा में नए वर्ष के अवसर पर ग्रामीण जुटे। और उन्होंने पत्थलगढ़ी स्थापना हेतु स्थापना हेतु रूढ़ी ग्राम सभा का आयोजन किया। गौरतलब है कि बेचा गाँव कोंडागांव, नारायणपुर, बीजापुर, बस्तर तथा दंतेवाड़ा पांच जिलों के सरहदों के मध्य बसा है। लिहाजा इन पांचों जिलों के विभिन्न गावों से सैकड़ों ग्रामीण यहाँ जुटे रहे। सब ने एक साथ जय सेवा के जय घोष के बीच आदिवासी क्षेत्र में पेशा कानून तथा पांचवी अनुसूची प्रभावशील करने के लिए आवाज बुलंद की।

सामाजिक विधि-विधान के बीच पत्थलगढ़ी की स्थापना

पत्थलगढ़ी के प्रतीक के तौर पर ग्राम सभा स्थल पर दो पत्थरो को सीमेंट के चबूतरे में गड़ाया गया है। बेचा के बंगलापारा में अंतिम छोर पर पारंपरिक आंगा देव की पूजा अर्चना उपरांत यहाँ गड़ाए गए पत्थरो को बाकायदा पगड़ी पहना कर सामाजिक विधिविधान से पत्थरों की पूजा अर्चना कर पत्थलगढ़ी की स्थापना की गई। यही नहीं सरहद में पेशा कानून तथा पांचवी अनुसूची के तहत प्राप्त अधिकारों से युक्त बोर्ड भी लगा दिया है। यहां मौजूद हर किसी ने आदिवासी समाज के हित समेत समाज को प्राप्त अधिकारों तथा अपने जल जंगल और जमीन की रक्षा का संकल्प लिया। वहीं हाथ जोड़कर समाज के अराध्य देवी-देवताओं का स्मरण कर खुशहाली की दुआ भी मांगी।

गोंड़ी-हल्बी गीतों के साथ ढोल व मंजीरे की धुन में थिरके लोग

पारंपरिक वेशभूषा में सजे समाज के युवक युवतियां सभा के दौरान गोंड़ी-हल्बी गीतों के साथ पारंपरिक वाद्य ढोल, मंजीरे की धुन में पारंपरिक नृत्य करते रहे। गीतों के जरिये समाज को विविध संदेश देते युवाओं की टोली ने यहां ऐसा शमा बांधा कि यहां मौजूद जनसमुदाय व यहाँ पहुंचे अतिथि भी खुद को आदिवासी संस्कृति से सराबोर करने से रोक नहीं सके। युवाओं की टोली के साथ क्या अतिथि क्या ग्रामीण ढोल-मंजीरे की आवाज व गीतों की गुंजन के बीच हर कोई थिरकने को मजबूर हो गया।

जल जंगल जमीन की रक्षा का पाठ पढ़ा कर किया समाज को जागरूक

सभा के दौरान समाज के वरिष्ठों ने उद्बोधनों के जरिये समाजजनों को जल जंगल जमीन की रक्षा का पाठ पढ़ाते हुए उन्हें आदिवासियों को प्राप्त अधिकारों से वाकिफ कराया। हमसे वार्ता के दौरान यहाँ मौजूद गोंडवाना समाज के नारायणपुर जिला अध्यक्ष पंडीराम वड्डे, समाज के वरिष्ठ मैनुराम कोरेटी, बजर कश्यप, बलि राम कश्यप समेत अन्य ने एक सुर में कहा कि संविधान में पांचवी अनुसूची व पेसा कानून के तहत आदिवासियों को अधिकार प्राप्त है लेकिन आदिवासी क्षेत्रों में इसे प्रभावशील करने की दिशा में ध्यान नहीं दिया जाता। यही वजह है कि आदिवासी अपने अधिकारों से वंचित हैं। यही वजह है कि समाज ने निर्णय लेकर ग्राम बेचा में पत्थरगड़ी की नींव रख दी गई है। ताकि समाज की पीढ़ी अपने अधिकारों को जान सके। और उसकी रक्षा कर सके।

समाज की हर पीढ़ी को सिखाएंगे अधिकारों की रक्षा का सबक, हर साल होगा आयोजन

ये आयोजन इस बात को जाहिर करने के लिए काफी है कि पांचवी अनुसूची तथा पेसा कानून को लेकर आदिवासी एक बार फिर मुखर होने लगे हैं, देखना दिलचस्प होगा कि शासन व प्रसासन का आदिवासियों के इस कदम पर रुख क्या होगा? ग्रामीण इसी तर्ज पर हर साल आयोजन कर समाज की पीढ़ियों को अपने अधिकारों की जानकारी देते हुए उन्हें जागरूक करते रहने के लिए खुद को प्रतिबद्ध बता रहे हैं।