सत्या राजपूत, रायपुर। लॉकडाउन से अलग-अलग वर्ग के लोगों को अलग-अलग तरह की समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है. सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचे मरीज और उनके परिजनों को डिस्चार्ज होने के बाद घर जाने के लिए कोई साधन नहीं मिल रहा है. लिहाजा, अस्पताल के बाहर पेड़ की छांव में दिन गुजार रहे हैं. इसके अलावा भोजन की भी समस्या से उन्हें जूझना पड़ रहा है.
लल्लूराम डॉट कॉम की टीम ने रात में डॉ भीमराव अम्बेडकर परिसर का जायजा लिया, तो वहां मौजूद लोगों का दर्द छलकने लगा. जगदलपुर के दरभा से पहुंचे मरीज के परिजन ने बताया कि उन्हें अस्पताल आए आठ दिन हो गए हैं, उनके पिता को कैंसर है, उनको एडमिट नहीं किया जा रहा है. रात में परिसर में जहां जगह मिल जाए, वहीं सो जाते हैं. समाजसेवी खाना दे देते हैं. हॉस्पिटल से तो नहीं मिला है. डॉक्टरों से मैं रोज कहता हूं, लेकिन आज तक कोई व्यवस्था नहीं हुई है.
वहीं आरंग से अपनी गर्भवती पत्नी को डिलवरी के लिए मेकाहारा पहुंचे पति ने बताया कि न दिन में खाना मिला न रात में, जो लोग सेवा भाव से यहां खाना देने आते हैं, उन्हीं से लेकर खा रहे हैं. गरियाबंद से मरीज के साथ पहुंचे उनके परिजन ने बताया कि वे दो हफ़्ते से अस्पताल में हैं. पेड़ की छाया के नीचे रह कर काट रहे हैं. रात में रेत में सो जाता हूं. लेकिन मच्छरों की वजह से नींद ही नहीं आती है. इसी तरह अस्पताल परिसर में कई अन्य परिवार. आधा दर्जन छोटे-छोटे बच्चे और बुजुर्ग मौजूद हैं, जिसे ज्यादा डेंजर जोन में माना गया है.
अंबेडकर अस्पताल अधीक्षक डॉ. विनीत जैन तमाम आरोपों से इंकार करते हैं. वे कहते हैं कि हम लोग व्यवस्था कर रहे हैं, खाना भी दिया जाता है. कोई छूट गया होगा तो इस उनकी व्यवस्था करेंगे. वहीं जो मरीज डिस्चार्ज हो रहे हैं, उनके जाने की व्यवस्था कर रहे हैं. जिस रूट से एंबुलेंस आती उस रूट के मरीज होते हैं तो उसके वापसी में उसमे भेजा जाता है.