कुंदन कुमार/ पटना। हाई कोर्ट ने बिहार के महाविद्यालयों में लॉटरी सिस्टम के जरिए प्राचार्य नियुक्त करने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति राजेश कुमार वर्मा की एकल पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दिए कि शैक्षणिक संस्थानों में इस प्रकार की प्रक्रिया कानूनन उचित नहीं मानी जा सकती। यह फैसला मंगलवार को हाई कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ द्वारा सुनाया गया। याचिकाकर्ता सुहेली मेहता और अन्य की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ प्रसाद ने रिट याचिका दायर कर इस प्रक्रिया को चुनौती दी थी।
16 मई की अधिसूचना पर कोर्ट की रोक
कोर्ट ने 16 मई को कुलपति सचिवालय द्वारा जारी की गई अधिसूचना पर अंतरिम रोक लगाते हुए कहा कि कॉलेजों में प्राचार्य जैसे महत्वपूर्ण शैक्षणिक और प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति योग्यता, अनुभव और कानूनी प्रावधानों के आधार पर की जानी चाहिए, न कि लॉटरी जैसे यादृच्छिक तरीके से।
न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि यदि राज्यपाल (कुलाधिपति) चाहें, तो वे उक्त अधिसूचना में आवश्यक सुधार कर सकते हैं और नए सिरे से विधिसम्मत अधिसूचना जारी कर सकते हैं, लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक लॉटरी सिस्टम के आधार पर की जा रही नियुक्तियों को अमान्य माना जाएगा।
याचिकाकर्ताओं की आपत्ति
याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि लॉटरी के माध्यम से की जाने वाली नियुक्ति प्रक्रिया न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह योग्य उम्मीदवारों के साथ अन्याय भी है। इससे शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है और महाविद्यालयों में प्रशासनिक अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
शिक्षा जगत में मिली प्रतिक्रिया
हाई कोर्ट के इस फैसले का शिक्षा क्षेत्र से जुड़े कई विशेषज्ञों और संगठनों ने स्वागत किया है। उनका मानना है कि प्राचार्य जैसे पदों पर नियुक्ति एक गंभीर प्रशासनिक कार्य है, और इसमें पारदर्शिता व योग्यता का ध्यान रखा जाना अत्यंत आवश्यक है।
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