पटना। बिहार की सियासत में एक बार फिर सिनेमा की दुनिया से राजनीति का तड़का लग चुका है। भोजपुरी फिल्मों के पावर स्टार पवन सिंह ने दोबारा भारतीय जनता पार्टी (BJP) का दामन थाम लिया है। यह वापसी ऐसे समय में हुई है जब बिहार विधानसभा चुनाव करीब है और बीजेपी संगठनात्मक रूप से खुद को मजबूत करने में जुटी है। पवन सिंह अब न केवल खुद चुनाव लड़ना चाहते हैं, बल्कि अपने करीबी लोगों को भी टिकट दिलवाने की कोशिश में हैं। सूत्रों के मुताबिक पवन सिंह की पहली पसंद शाहाबाद क्षेत्र की बड़हरा विधानसभा सीट है जिसे स्थानीय राजनीति में चित्तौड़गढ़ कहा जाता है। यहां से फिलहाल बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व आरजेडी विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। 73 वर्षीय राघवेंद्र की उम्र को देखते हुए माना जा रहा है कि इस बार पार्टी उन्हें रिटायर कर सकती है। ऐसे में पवन सिंह इस सीट पर सबसे प्रबल दावेदार बन सकते हैं।
बड़हरा में जातीय समीकरण पवन के पक्ष में
बड़हरा सीट पर राजपूत वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। यहां 12-14% राजपूत, 16-18% यादव और 10-12% कोइरी-कुर्मी समुदाय के मतदाता हैं। पवन सिंह खुद राजपूत समुदाय से आते हैं और उन्हें यहां सामाजिक आधार के साथ-साथ स्टारडम का भी फायदा मिल सकता है। एनडीए की पकड़ इस सीट पर पहले से मजबूत मानी जाती है।
आरा पर भी दांव, लेकिन मुकाबला टफ
बड़हरा के अलावा पवन सिंह की नजर आरा विधानसभा सीट पर भी है, जहां से बीजेपी के अमरेंद्र प्रताप सिंह पांच बार विधायक रह चुके हैं। लेकिन उनकी उम्र अब 78 साल हो चुकी है। ऐसे में पार्टी नया चेहरा तलाश सकती है। हालांकि आरा में पूर्व विधायक संजय सिंह टाइगर भी मजबूत दावेदार हैं। यहां राजपूत और यादव मतदाताओं की संख्या क्रमशः 35,000 और 28,000 के आसपास है। दलित वोटर भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
लोकसभा चुनाव में मिली थी टक्कर
पवन सिंह ने 2024 के लोकसभा चुनाव में काराकाट सीट से एनडीए प्रत्याशी के तौर पर ताल ठोकी थी और दूसरे स्थान पर रहे थे। अब इस क्षेत्र की विधानसभा सीट पर भी उनकी नजर है। यहां 35,000 राजपूत और 29,000 यादव मतदाता हैं। पिछली बार यह सीट CPI-ML के अरुण सिंह ने जीती थी।
बीजेपी को पवन सिंह से क्या उम्मीद?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पवन सिंह की लोकप्रियता स्टारडम और जातीय आधार उन्हें शाहाबाद क्षेत्र में एक मजबूत दावेदार बनाता है। लोकसभा चुनाव में उनके नाम पर हुई थोड़ी नाराजगी को देखते हुए अब पार्टी उन्हें विधानसभा में उतारकर संतुलन साधना चाहती है। साथ ही उन्हें स्टार प्रचारक के रूप में भी पूरे बिहार में उतारने की रणनीति बनाई जा रही है।
सियासी मायने और असर
पवन सिंह की वापसी न सिर्फ एनडीए को शाहाबाद बेल्ट में मजबूती दे सकती है, बल्कि आरके सिंह जैसे बागी नेताओं की धार को भी कुंद करने में सहायक हो सकती है। बीजेपी पवन सिंह के जरिए युवा और भावनात्मक वोटरों को साधने की कोशिश कर रही है।
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