नई दिल्ली। नामचीन लोगों की जासूसी के लिए पेगासस सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला लेते हुए जांच के लिए एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया है. चीफ जस्टिस एनवी रमना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हमने लोगों को उनके मौलिक अधिकारों के हनन से बचाने से कभी परहेज नहीं किया. निजता केवल पत्रकारों और नेताओं के लिए नहीं, बल्कि यह आम लोगों का भी अधिकार है.

सुप्रीम कोर्ट की ओर से पेगासस मामले में गठित कमेटी में जस्टिस आरवी रविंद्रन, पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज आलोक जोशी, पूर्व आईपीएस संदीप ओबेराय के अलावा तीन तकनीकी सदस्य भी शामिल हैं. इनमें गुजरात स्थित राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय के डीन डॉ नवीन कुमार चौधरी, केरल स्थित अमृता विश्व विद्यापीठम में डॉ प्रबहारन पी, और आईआईटी, बॉम्बे में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अश्विन अनिल गुमस्ते शामिल हैं.

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द हिंदू पब्लिशिंग ग्रुप के निदेशक एन राम की ओर से दायर याचिका में इस बात पर चिंता जताई थी कि प्रौद्योगिकी का उपयोग कैसे किया जा सकता है? प्रेस की स्वतंत्रता के महत्वपूर्ण है, जो लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्तंभ है, पत्रकारों के सूत्रों की सुरक्षा भी जरूरी है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में जांच का फैसला सुनाते हुए कहा कि तकनीक जीवन को उन्नत बनाने का सबसे बेहतरीन औजार है, हम भी ये मानते हैं.

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चीफ जस्टिस ने कहा कि जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार सबसे ऊंचा है, उनमें संतुलन भी जरूरी है. तकनीक पर आपत्ति सबूतों के आधार पर होनी चाहिए. प्रेस की आजादी पर कोई असर नहीं होना चाहिए. उनको सूचना मिलने के स्रोत खुले होने चाहिए. उन पर कोई रोक ना हो. न्यूज पेपर पर आधारित रिपोर्ट के आधार पर दायर की गई याचिकाओं से पहले हम संतुष्ट नहीं थे, लेकिन फिर बहस आगे बढ़ी. सॉलिसिटर जनरल ने ऐसी याचिकाओं को तथ्यों से परे और गलत मानसिकता से प्रेरित बताया था.

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