फीचर स्टोरी। फुगड़ी के फू, खो-खो के खो… कबड्डी-कबड्डी, पिट्ठुल के ठो….गिल्ली-डंडा, बांटी अउ भौंरा, चारो मुड़ा, दौड़ी-दौड़ा. हाहा, ही-ही, हंसी-ठिठोली, नोनी-बाबू, दाई-बहिनी के बोली. गांव-गंवई म खेलत सब जुरमिल अइसन खेल, छत्तीसगढ़ियामन कहत हें, दिल जीत लिस सीएम बघेल.

जी हां, छत्तीसगढ़ में गांव-गांव से लेकर शहर-शहर तक में लोग पारंपरिक खेलों में ऐसे रम गए हैं कि सब यही कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के जरिए हर आयु वर्ग के लोगों को आपस में जोड़कर बचपन वाला पूरा मौहाल बना दिया है. जिन खेलों को नई पीढ़ी भूलने लगी थी, उन खेलों का पुराने दौर मुख्यमंत्री ने लौटा दिया है.

खेल हो या तीत-त्योहार हर क्षेत्र में छत्तीसगढ़िया रंग न सिर्फ दिखने लगा है, बल्कि आत्मगौरव के साथ यह रंग गहराते भी जा रहा है. माटी से जोड़ने का, गांव से जोड़ने का, पंरपराओं और संस्कृति से जोड़ने का जो काम बीते 4 सालों में हुआ, ऐसा न तो अविभाजित मध्यप्रदेश के दौर में कभी हुआ था और न ही राज्य निर्माण के 18 बरस में कभी.

छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का यह आयोजन महज एक पारंपरिक ग्रामीण खेलों का आयोजन नहीं है, बल्कि यह छत्तीसगढ़िया होने के गौरव का आयोजन है, यह आयोजन महतारी अस्मिता के भाव को जगाने का आयोजन है, यह आयोजन माटी से जुड़ जाने का आयोजन है. और यही वजह है कि 6 अक्टूबर की शुरुआत के बाद से ऐसा परवान चढ़ा है कि बस चढ़ते ही जा रहा है.

गांव-गांव से आने वाली तस्वीरों ने बता दिया कि लोग किस तरह से छत्तीसगढ़िया ओलंपिक को लेकर उत्साहित दिखे. हर आयु वर्ग के लोगों में अपने पारंपरिक खेलों को लेकर व्यापक माहौल दिखा है.

माटी की गंध से सराबोर यह छत्तीसगढ़िया ओलंपिक एक तरह घर में बिखरी हुई कीमती चीज़ों को फिर से सजाने जैसा काम है. कहते हैं कि झील में उठने वाला पहला वर्तुल छोटा ही दिखाई देता है मगर उसकी ख़ासियत ये होती है कि वो जब तक किनारा ना छू ले ठहरता नहीं. छत्तीसगढ़िया ओलंपिक भी उसी तरंग का नाम है जो दूर तक जाने वाला है.

छत्तीसगढ़िया ओलंपिक और पारंपरिक खेल

छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में उन सभी खेलों को शामिल किया गया है, जो ग्रामीण स्तर पर हम बहुत ही सामान्य रूप से खेलते रहे हैं. लेकिन आज इन खेलों में स्पर्धा के जरिए हर आयु वर्ग के लोगों को शामिल कर इसे गांव से आगे ले जाने का काम हुआ है.

गिल्ली डंडा, बांटी, भौंरा, पिट्ठुल, बिल्लस, फुगड़ी, गेड़ी दौड़, लंबी कूद, रस्सी खींच जैसे खेलों के साथ छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की धूम देखी जा सकती है. पंचायत से लेकर राज्य स्तर तक छः चरणों में सम्पन्न होने वाले इस प्रतियोगिता ने राज्य में जो माहौल बनाया है वो देखने के काबिल है. अलग-अलग स्तर पर होने वाली छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के जोन स्तर की प्रतियोगिता 15 अक्टूबर से 20 अक्टूबर तक की गई . विकासखंड स्तर की प्रतियोगिता 27 अक्टूबर से 10 नवंबर तक चलेगी, जिला स्तर की प्रतियोगिता 17 नवंबर से 26 नवंबर तक और संभाग स्तर की प्रतियोगिता का आयोजन पांच दिसंबर से 14 दिसंबर के बीच किया जाएगा. अंतिम चरण यानि राज्य स्तर की प्रतियोगिता का आयोजन 28 दिसंबर से 6 जनवरी तक होगा.

छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में छत्तीसगढ़ के हर एक खेल को याद कर-कर के रखा गया है यदि खेल एकल खेला जाने वाला है तो उसे एकल खिलाया जा रहा है और सामूहिक खेले जा सकने वाले खेलों के लिए वैसी व्यवस्था बनाई गई है.

टीम और एकल श्रेणी के खेलों को मिलाकर छत्तीसगढ़ ओलंपिक में 14 तरह के पारंपरिक खेलों को शामिल किया गया है. छत्तीसगढ़ ओलंपिक को तीन वर्गों में बांटा गया है. पहला वर्ग 18 साल तक की आयु के लोगों के लिए, दूसरा वर्ग 18 से 40 साल तक आयु के लोगों के लिए और तीसरा वर्ग 40 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए रखा गया. इसमें महिला और पुरुष दोनों प्रतिभागियों को शामिल किया गया. इस ओलंपिक खेल में भाग लेने वाले खिलाड़ी को छत्तीसगढ़ का मूल निवासी होना चाहिए.

राज्य सरकार द्वारा ग्राम पंचायतों और 146 ब्लॉक स्तर पर होने वाले खेल आयोजन के लिए विभिन्न कमेटी गठित की गई. राज्य में ग्राम पंचायत स्तर पर गठित कमेटियों के संयोजन सरपंचों के माध्यम से किया जा रहा है, ब्लॉक स्तर पर गठित कमेटी को संयोजन विकास खंड अधिकारियों के द्वारा किया जा रहा है. सरकार छत्तीसगढ़िया ओलंपिक खेल 2022 में भाग लेने वाले खिलाड़ियों के भोजनए आने.जाने और अन्य सुविधाओं के लिए ग्राम पंचायतों एवं विकास खंडों के लिए बजट उपलब्ध करवाएगी.

मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की शुरुआत करते हुए कहा था “छत्तीसगढ़ की संस्कृति और सभ्यता और विशिष्ट पहचान यहां की ग्रामीण परंपराओं और रीति रीवाजों से है. इसमें पारंपरिक खेलों का विशेष महत्व है. ये सच है कि पिछले दो दशकों में इलेक्ट्रॉनिक मनोरंजन ने आम लोगों को शारीरिक पारंपरिक क्रिड़ाओं से पूरी तरह से दूर कर दिया है. छत्तीसगढ़ में भी लोग इन ग्रामीण खुशबू से सराबोर खेलों को भूलने लगे थे. खेलों को चिरस्थायी रखने आने वाली पीढ़ी से इनको अवगत कराने के लिए छत्तीसगढ़ियां ओलंपिक खेलों की शुरूआत को एक अच्छी शुरूआत कही जा सकती है. छत्तीसगढ़िया खेलों का आकर्षण इस बात से ही स्वमेव साबित होता है कि इस प्रतियोगिता में बच्चों से लेकर बुजु़र्ग तक सभी प्रतिभागी बनने को उत्सुक दिखाई दे रहे हैं. बुज़ुर्गो को अपने भूले हुए खेल में मस्त देखकर एक ही सवाल यक्ष प्रश्न बन कर सामने आता है कि ये बुजुर्ग हुए इसलिए खेलना छोड़ा था या खेलना छोड़ा और बुजु़र्ग हुए.”