राजस्थान के जालौर की सुंधा पहाड़ियों में स्थित माँ सुंधा का मंदिर. 1200 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित है. ऐसा माना जाता है कि मां चामुंडा के इस मंदिर में भक्त कभी खाली हाथ और निराश नहीं लौटते हैं. मां चामुंडा देवी का यह मंदिर 900 साल से भी ज्यादा पुराना है. यह मंदिर हिल स्टेशन माउंट आबू से 64 किमी और भीनमाल से 20 किमी दूर है. अरावली की पहाड़ियों में स्थित इस मंदिर की सुंदरता देखने लायक है. इसके चारों ओर गूंजता झरना मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है.

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खंडित मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है. ऐसे में विभिन्न राज्यों से सुंधा माता के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु अपने साथ खंडित मूर्तियां लेकर आते हैं और उन्हें पहाड़ पर छोड़ देते हैं. सुंधा पर्वत पर गुफा रूपी भंवर मन मा मा मा मा मा की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि यहां सती की नाक गिरी थी. यह मिथक देवी के सिर की पूजा करने की प्रथा का मूल कारण हो सकता है. मंदिर परिसर में एक दर्जन से अधिक देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं. शारदीय नवरात्रि पर यहां मेला लगता है. जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं.

त्रिपुर राक्षस को मारने के लिए तपस्या की

कहा जाता है कि त्रिपुर राक्षस को मारने के लिए आदि देव ने सुंधा पर्वत पर तपस्या की थी. इसके अलावा चामुंडा माता की मूर्ति के पास ही एक शिवलिंग भी स्थापित है. मंदिर से एक और इतिहास जुड़ा है, जो इसके महत्व को और भी बढ़ा देता है. वर्ष 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप ने संकट के दिनों में सुंधा माता की शरण ली थी. यह भी कहा जाता है कि जालौर के चौहान शासक सुंधा माता के प्रति विशेष सम्मान रखते थे. उदय सिंह के पुत्र चाचिगदेव ने संवत 1312 में इस मंदिर का निर्माण कराया था.