मांगलिक दोष को लेकर एक गुप्त और कम चर्चित परंपरा कुछ विशेष मंदिरों में आज भी निभाई जाती है, जहां शादी से पहले वर या कन्या से बाकायदा एक शपथ पत्र भरवाया जाता है…“मैं मांगलिक नहीं हूं. यह शपथ कभी-कभी भगवान के सामने, दीपक या अग्नि के सामने या मंदिर के गर्भगृह में खड़े होकर दिलवाई जाती है. यह प्रक्रिया एक तरह की धार्मिक गवाही मानी जाती है ताकि बाद में मांगलिक दोष के कारण अगर वैवाहिक जीवन में कुछ हो जाए तो उसका जिम्मेदार पुजारी या परिवार न माना जाए.

कुछ मामलों में यह सिर्फ एक औपचारिक रस्म होती है, जबकि कई बार ये जानबूझकर झूठी कसम भी होती है, क्योंकि असली कुंडली में दोष होता है, लेकिन परिवार छुपाकर शादी करवाना चाहता है. यह परंपरा विशेषकर उन जगहों पर देखने को मिलती है जहां कुंभ विवाह या पीपल विवाह जैसे प्रतीकात्मक उपाय नहीं किए गए हों, और शादी जल्दी करनी हो. कई जातक या उनके परिजन मानते हैं कि भगवान के सामने कुछ भी कह देने से दोष का असर खत्म हो जाएगा और यही सोच उन्हें झूठ की ओर धकेल देती है.

यह केवल डर नहीं, बल्कि एक सामाजिक चालबाज़ी है. यह कोई अंधविश्वास भी नहीं बल्कि एक छिपी हुई रस्म बन गई है और धार्मिक संस्थानों में इसे चुपचाप करवाया भी जाता है.