कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। भारत सरकार द्वारा केंद्रीय चुनाव आयोग की नियुक्ति के लिए बनाए गए कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका पेश की गई है। ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय कोर कमेटी सदस्य एडवोकेट धर्मेंद्र सिंह कुशवाहा की ओर से पेश की गई अल्ट्रा वायर्स याचिका के जरिये कमेटी से CJI को हटाने का विरोध दर्ज कराया। वहीं कमेटी से केंद्र के कैबिनेट मंत्री को हटा कर CJI को शामिल करने की मांग की गई। सुप्रीम कोर्ट में 12 जनवरी को याचिका पर सुनवाई होगी।
ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय कोर कमेटी सदस्य एड. धर्मेन्द्र सिंह कुशवाह ने बताया कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम 2023 की धारा 7 और 8 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी है। जिसके माध्यम से सरकार द्वारा चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति करने वाली कमेटी में फेरबदल करने का आरोप लगाया गया है।
याचिका में बताया गया है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश को हटाकर प्रधानमंत्री की पसंद का एक केबिनेट मंत्री इस कमेटी में शामिल किया गया है। जबकि मार्च 2023 में उच्चतम न्यायालय ने संवैधानिक फैसले में यह तय किया था कि इस कमेटी में भारत के प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश होंगे।
साथ ही यह भी निर्देशित किया था कि सरकार इन नियमों का ध्यान रखते हुए ही इस संबंध में कानून बनाएं। लेकिन नए कानून के तहत मुख्य न्यायाधीश को चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति समिति से बाहर करके प्रधानमंत्री की पसंद का केबिनेट मंत्री शामिल करना संविधान की मूल भावना के खिलाफ़ है। क्योंकि ये प्रावधान स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं। इसके अलावा चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति समिति से भारत के मुख्य न्यायाधीश को बाहर करना भी संविधान पीठ के फैसले के विपरीत है।
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ऐसे में आरोप यह भी है कि सरकार कानून और संविधान के बुनियादी ढांचे को कमजोर करके भारत के संविधान के तहत परिकल्पित लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का दुरुपयोग करने की कोशिश कर रही है। याचिकाकर्ता धर्मेंद्र कुशावाह ने अपनी याचिका में सर्वोच्च न्यायालय से मांग की है कि इस कानून में प्रधानमंत्री, प्रतिपक्ष नेता कमेटी में रहे। लेकिन प्रधानमंत्री की पसंद के केंद्रीय केबिनेट मंत्री की जगह CJI को शामिल किया जाए। वर्तमान चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति करने वाली समिति संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।
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