ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों के लिए विशेषज्ञों ने एक खास अल्ट्रासाउंड मशीन तैयार की है। यह मशीन हेयरबैंड की शक्ल में होगी, जो मरीज के सिर पर लगने के बाद मस्तिष्क का अल्ट्रासाउंड करने के साथ ही दवा के प्रभाव को बढ़ाने का भी काम करेगी। इसे सोनोथोम्बोलायसिस हेडफ्रेम कहा जा रहा है। यह जानकारी इस पर शोध करने वाले सिंगापुर के डॉ. विजय कुमार शर्मा ने पीजीआई PGI की ओर से आयोजित न्यूरोसोनोलॉजी के 7वें वार्षिक सम्मेलन में दी।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस अल्ट्रासाउंड मशीन की मदद से दवा के प्रभाव को डेढ़ से ढाई गुना तक बढ़ाया जा सकेगा। इससे मरीज सामान्य स्थिति की तुलना में तेजी से ठीक होंगे।

उन्होंने बताया कि ब्रेन स्ट्रोक के मरीज को टिश्यू प्लास्मिनोजेन एक्टिवेटर (टीपीए) नामक एक रक्त थक्का रोधी दवा नॉन-ब्लीडिंग स्ट्रोक के शुरुआती तीन घंटे के भीतर दी जाती है। इसे देने के बाद उस मरीज के दिमाग की धमनियों की स्थिति का आकलन करने के लिए अल्ट्रासाउंड किया जाता है। शोध के दौरान देखा गया कि अल्ट्रासाउंड के दौरान उसके वाइब्रेशन से दवा सामान्य की तुलना में तेजी से घुली। इससे मरीज पर दवा का प्रभाव तय समय से पहले ही सामने आने लगा। ऐसा होने पर मरीज सामान्य की तुलना में ढाई गुना ज्यादा रफ्तार से ठीक हुए। अब इस डिवाइस को पेटेंट कराने की तैयारी की जा रही है।

दो चरण में हो चुका है शोध


डॉ. विजय ने बताया कि इसे लेकर एनिमल मॉडल पर बहुत काम हुआ था, जिसे ध्यान में रखकर पहले यूएस के 163 मरीजों पर शोध किया गया। उसके परिणाम को देखते हुए अगला शोध स्पेन, फ्रांस, इटली, कनाडा, जर्मनी, सिंगापुर और यूएस के 486 मरीजों पर किया गया। उनमें से आधे को सामान्य तकनीक से इलाज दिया गया और आधे मरीजों पर हेयरबैंड अल्ट्रासाउंड मशीन का प्रयोग किया गया। दूसरे वर्ग के मरीजों पर दवा का प्रभाव तेजी से सामने आया। ये मरीज सामान्य मरीजों की तुलना में ढाई गुना तक तेजी से ठीक हुए। इस शोध ने ब्रेन स्ट्रोक के इलाज में न्यूरोसोनोलॉजी के महत्व को स्थापित करने का काम किया।


डॉ. विजय ने बताया कि इस तकनीक के लाभ को देखते हुए इसका हेयरबैंड जैसा डिजाइन तैयार किया गया क्योंकि इमरजेंसी में हर समय विशेषज्ञ मौजूद हों, ये संभव नहीं। ऐसे में वहां मौजूद रेजिडेंट डॉक्टर भी इस डिवाइस की मदद से ब्रेन स्ट्रोक के मरीज का अल्ट्रासाउंड आसानी से कर सकेंगे। इसे सिर पर बिल्कुल इस तरह लगाया जा सकेगा जिससे जांच सही तरह से सही स्थान पर हो और दवा का भी प्रभाव तेजी से सामने आ सके क्योंकि सही जगह पर अल्ट्रासाउंड न होने पर उसका परिणाम बेहतर नहीं होगा।