नई दिल्ली . डीयू के अंग्रेजी विभाग ने पीएचडी की फीस में काफी बढ़ोतरी की है. शिक्षकों का दावा है कि पिछले वर्ष के मुकाबले फीस में 1,100 फीसदी का इजाफा किया गया है. फीस 1,932 रुपये से बढ़ाकर 23,968 रुपये वार्षिक कर दी गई है.
डीयू में मिरांडा हाउस की शिक्षक और डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट की पदाधिकारी आभादेव हबीब ने इस संबंध में सोशल मीडिया पर लिखा, जिसके बाद शिक्षकों और छात्रों में गुस्सा देखने को मिला. शिक्षकों का कहना है कि अन्य विभागों में पीएचडी की वार्षिक फीस अधिकतम एक हजार रुपये है, फिर अंग्रेजी से पीएचडी करने के लिए शुल्क इतना क्यों बढ़ाया गया है. डीयू के कई छात्र संगठनों ने भी फीस बढ़ोतरी का विरोध किया है.
स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने इस कदम की निंदा करते हुए कहा कि गरीब घर के छात्र इतनी अधिक फीस नहीं दे पाएंगे. इससे शिक्षा प्रभावित होगी. यह सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित शिक्षा संस्थानों पर बड़ा हमला है. यह कदम अवसरों को सीमित करेगा और छात्रों पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा. वहीं, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री याज्ञवल्यक शुक्ला ने कहा कि एबीवीपी शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ है. हम न केवल डीयू बल्कि किसी भी केंद्रीय विश्वविद्यालय में महंगी शिक्षा का समर्थन नहीं करते हैं.
कई वर्ष बाद बढ़ोतरी डीयू में अंग्रेजी विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि शुल्क विश्वविद्यालय की अनुमति के बाद ही बढ़ाया गया है. वर्षों से फीस में किसी तरह का इजाफा नहीं हुआ था. इसके अलावा डीयू ने योजना भी शुरू की है कि यदि किसी छात्र के परिवार की वार्षिक आय आठ लाख रुपये से कम है तो उससे आधी फीस ली जाएगी.
कई मदों में फीस वसूली
डीयू के एक शिक्षक ने कहा कि यह केवल अंग्रेजी विषय से पीएचडी का शुल्क बढ़ाने का मसला नहीं है. बीते दो वर्ष में कई मदों में शुल्क बढ़ा है. कई कॉलेजों ने अपने यहां लगभग 10 फीसदी शुल्क में बढ़ोतरी की है. यही नहीं, लैब परीक्षण शुल्क में कई गुना वृद्धि हुई है. इसके अलावा विकास शुल्क के नाम पर छात्रों से फीस वसूली जा रही है. सर्वाधिक वंचित समुदाय के बच्चे स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग में पढ़ाई कर रहे हैं, उनकी फीस भी इस सत्र में बढ़ाई गई है. डीयू में बीटेक और पांच वर्षीय लॉ पाठ्यक्रम की फीस भी काफी अधिक है. पांच वर्षीय लॉ की फीस एक लाख 90 हजार रुपये सालाना है.