प्राचीन काल का एक बड़ा रोचक प्रसंग है। एक बहुत प्रसिद्ध ऋषि थे, वे बहुत ज्ञानी तथा विद्वान थे। हर नगर के लोग उन्हें प्रवचन हेतु निरंतर आग्रह करते हुए आमंत्रित करते थे। एक बार उन्हें एक शहर में विद्वानों की सभा मे निमंत्रित किया गया। वे भी सभा में आकर बेहद प्रसन्न हुए, लेकिन अपनी बात आरम्भ करने के पूर्व उन्होंने समस्त उपस्थित सज्जनों की मानसिकता जानने के लिए एक अतिशय सरल प्रश्न प्रस्तुत किया कि ईश्वर द्वारा प्रदत्त सुख की अलभ्य वस्तुओं में से कौनसी चीज उन्हें सर्वाधिक उपयोगी, प्रासंगिक और मूल्यवान लगती है ? कई सभाजनो के हाथ एक साथ उठ गए और उत्तर उपस्थित हो गए-

एक ने कहा – संपत्ति (wealth)
एक ने कहा- स्वास्थ्य (Health)
एक ने कहा- सुविधाएं (Facilities)
एक ने कहा- सौंदर्य (Beauty)
एक ने कहा- जीवन (LIFE)

इस तरह अनेक उत्तर आते चले गए किन्तु ऋषि किसीभी उत्तर से संतुष्ट नही लगे और जब वे करीब – करीब निराशा के मुहाने तक पहुँचे तो एक नन्हे बालक ने अचानक उठ कर कहा- हे मान्यवर, मुझे तो ईश्वर द्वारा मानव को प्रदान की गई सबसे बड़ी दौलत लगती है – देखने, सुनने,बोलने, सूंघने और स्पर्श की अनमोल निधि, जिसकी बदौलत हम सारी सुविधाओ का न केवल आनंद उठा पाते है बल्कि इन्ही के माध्यम से हम औरो को भी सुख प्रदान करते है।

ऋषि इस उत्तर से बेहद प्रस्सन हो गए और तब उन्होंने समस्त उपस्थित सज्जनो को आंख, कान, जीभ, नाक और हाथ- इन पांचों इंद्रियों की शक्ति तथा उनसे मानव मात्र के परोपकार की महत्ता पर समुचित प्रकाश डाला। बात सही भी है। ये ही पांच इंद्रियां भौतिक जगत में दुसरो के सामने हमारे अंतस का आईना है। इन्ही के माध्यम से या तो हम लोगो को सदा के लिए जीत लेते है या खो देते है।

जैसे हर इन्द्रिय के सकारात्मक और नाकारात्मक पहलू है। आंख से समदृष्टि या हेय दृष्टि। कान से ठीक से सुनना या अनसुना करदेना। जीभ वाणी से सुमधुर सारगर्भित बात कहना या कटु शब्द कहना। नाक से स्थिति का आभास या भ्रमपूर्ण स्थिति और अंत मे हाथों द्वारा स्नेहपूर्ण स्पर्श या प्रताड़ना।

यही हमारी संस्कृति का सार है। प्रबंधन जगत में तो यह एक व्यक्तिगत जीवन से भी अधिक महत्वपूर्ण, सामयिक और सार्थक है। आखिर ईश्वर की यही देन तो ब्रम्हा जगत से आपको जोड़ती है तथा उद्देश्य प्राप्ति के मार्ग में आपकी सहायक बनती है। इनके उचित उपयोग से जहां आप उन्नति के शिखर पर सफलतापूर्वक अपना परचम लहरा सकते है वही दुरुपयोग करके अवनति के मार्ग पर चलते हुए अंत मे असफलता की गुफा में खो सकते है। सफल प्रबंधन की आवश्यकता के परिपेक्ष्य में हम इन सब पर गौर करते हुए विश्लेषण कर समझ सकते है।