कोरबा। गुलाबी साड़ी में मुस्कुराती फुलवारी बाई कंवर के नाक में दोनो तरफ सोने की बड़ी-बड़ी फुल्लियां और उन पर लगे हरे और लाल रंग के नग. फुलवारी करतला विकासखण्ड के वनांचल स्थित केरवाद्वारी गांव पहुंचने वाले लोगों को अनायास ही अपनी तरफ आकर्षित करती है. पीपलरानी पहाड़ की तलहटी के नीचे वन भूमि पर पूर्वजों के जमाने से खेती करते रहने के कारण फुलवारी बाई को वन अधिकार मान्यता पत्र(पट्टा) मिलने से जमीन का मालिकाना हक मिल गया है. एक पट्टे ने फुलवारी और उसके परिवार की जिंदगी में ऐसा परिवर्तन ला दिया है कि वह लोगो के लिए प्रेरणा बन गई है.
पट्टे की जमीन पर अपनी मेहनत से फाइन धान की खेती करके ही फुलवारी ने अपने मुखमण्डल को सुख समृद्धि और चिंता मुक्त मुस्कुराहट के साथ सोने की दो आकर्षक फुल्लियों से सजाया है. वन अधिकार मान्यता पत्र से मिली लगभग एक एकड़ जमीन को मिला कर फुलवारी बाई के पास लगभग पौने तीन एकड़ का खेत है. इस खेत पर चालू खरीफ में फुलवारी ने पतला धान एचएमटी रोपा पद्धति से लगाया है. पहले दूसरो के खेतो में काम करने जाने वाली फुलवारी ने अपने खेत मे रोपा लगाने के लिए गांव के ही दस लोगो को दैनिक मजदूरी पर काम पर लगाया है.
सौम्य और मिलनसार व्यवहार के लिए गांव में मशहूर फुलवारी बाई बताती है कि उनके पूर्वज अमूमन सौ साल से केरवाद्वारी के इस वनांचल में जंगल साफ करके खेती किसानी करते आ रहे थे. ससुर दयाराम से लेकर पति मानसिंह कंवर तक बरसों से अपने पसीने से वे जिस माटी को सींचते आए है, उस माटी के छिन जाने का डर हमेशा फुलवारी एवं उसके परिवार के जहन में बना रहता था. फुलवारी बताती है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने इस वनभूमि का पट्टा देकर उसके और उसके जैसे कई परिवारों की जिंदगी बदल दी है.
पिछले दो सालों से फुलवारी अपने इस खेत में पतला धान लगा रही है. इस बार भी उन्होने खेत मे एचएमटी धान का रोपा लगवाया है. पहले दूसरो के खेत में रोपा लगाने जाने वाली फुलवारी अब गांव के दूसरे लोगों को दैनिक मजदूरी पर काम पर रख रहीं है. वन अधिकार पट्टा मिल जाने से फुलवारी एवं उसके परिवार को दूसरी सरकारी योजनाओ का भी लाभ मिलने लगा है.
प्राथमिक सहकारी समिति में कृषि ऋण की लिमिट बढ़ गई है. जमीन का मालिकाना हक मिल जाने से उगाई गई धान की समर्थन मूल्य में बिक्री भी आसान हो गई है. फुलवारी बाई के तीन बेटे हैं. कुछ समय पहले पति मानसिंह को पैरालिसिस अटैक आया था जिसका ईलाज चल रहा है. स्कूली शिक्षा पूरी करके तीनों बेटे खेती किसानी के काम में अपनी मां का हाथ बंटा रहे है.
भावुक होकर फुलवारी कहती है कि सौ सालो से जिस जमीन पर खेती कर रहे है, उसका मालिकाना हक नहीं मिलता तो साल के सत्तर-अस्सी हजार का नुकसान लगातार होता रहता. पट्टा मिलने से जमीन तो हमारी हो गई है अब हमारे पसीने की कमाई भी हमें समय पर मिल जाती है. इसी से पति का ईलाज और बच्चों की पढ़ाई सहित दूसरी जरूरते पूरी करने में अच्छी मदद हो जाती है.
फुलवारी अपने पूरे खेत में सिंचाई साधन विकसित करने और फेंसिंग कराकर तीन फसलें लेने की भी योजना बना रही है. उन्होंने अपने खेत में धान के अलावा उड़द, मूंग, सूरजमुखी से लेकर साग-सब्जी तक की खेती के लिए शासकीय योजनाओ का लाभ लेने की सलाह कृषि विभाग द्वारा लगातार दी जाती है. फुलवारी अब अपने खेत में सिंचाई के लिए सौर सुजला योजना के तहत नलकूप भी बनवाने की सोंच रही है.