सुप्रिया पांडेय, रायपुर। हौसले बुलंद हो तो शारीरिक अक्षमता भी बाधा नहीं बनती, हम बात कर रहे हैं रायपुर की साधना ढांढ की. 65 साल की साधना तमाम शारीरिक परेशानियों के बाद भी कभी हार नहीं मानी, कला के क्षेत्र में ऐसा मुकाम हासिल किया, जहां वह किसी परिचय की मोहताज नहीं है, इन्हीं साधना की कलाकृति की तीन दिवसीय प्रदर्शनी रायपुर कलेक्टोरेट के टाउन हॉल में आपको देखने को मिलेगी, जिसका शुभारंभ राज्यपाल अनुसूईया उइके ने 11 मार्च को किया.
दरअसल, साधना को ऑस्टियोजेनेसिस इंपर्फेक्टा है, इस बीमारी में हल्की सी चोट से भी हड्डियां टूट जाती है. एक-दो बार नहीं बल्कि 80 बार हड्डियां टूटी. अपने कमजोर पैरों के साथ साधना ने चलने की कोशिश तो की लेकिन सफल ना हो सकी. 12 साल की उम्र से साधना को सुनाई देना भी बंद हो गया.
बीमारी के कारण साधना की शारीरिक बढ़ोतरी भी रुक गई. वे महज 3 फुट, 3 इंच की हैं. बीमारी की वजह से उनका स्कूल जाना भी बंद हो गया, लेकिन उन्होंने घर में ही पढ़ाई जारी रखी, केवल एग्जाम के समय स्कूल जाया करती थीं. बीमारी की वजह से साधना के ज्यादा दोस्त तो नहीं थे, फिर उन्होने रंगों को अपना साथी चुन लिया और रंगों ने ही साधना को बेहतर पहचान भी दिलाई.
साधना ने खैरागढ़ कला एवं संगीत विश्वविद्यालय से 2 वर्षीय डिप्लोमा का कोर्स किया है. उनको अपनी कलाकृतियों के लिए बहुत से राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं, इसके अलावा उन्हें पेंटिंग और फोटोग्राफी के लिए राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई खिताबों से नवाजा गया है. इसके बाद भी उनका सफर थमा नहीं, उन्होंने अब तक 12 हजार से भी अधिक छात्रों को पेंटिंग सिखाया है.
बीते 40 वर्षों से निरंतर कला के क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रही साधना ने अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बनाकर कला के क्षेत्र में यह अहम मुकाम हासिल किया है. साधना की पेंटिंग केवल कैनवास तक ही सीमित नहीं हैं, उन्होंने अलग-अलग पत्तियों का उपयोग कर कई सारी विभिन्न आकृतियों को डिजाइन किया है. इसके आलावा उन्हें गार्डनिंग का भी बहुत शौक है, उनके घर में 200 बोनसाई का संग्रह है.