रमेश सिन्हा, पिथौरा। महासमुंद जिले के पिथौरा तहसील कार्यालय में करीब 800 भूमि नामांतरण के मामले लंबे समय से लटके हुए हैं. अधिकारी व कर्मचारियों की मनमानी से त्रस्त किसान शिकायतों की कहीं सुनवाई नहीं होने से हताश और परेशान हो चुके हैं. जमीन रजिस्ट्री होने के बाद अब नामांतरण के लिए बार-बार चक्कर लगाने से परेशान किसान अब मुख्यमंत्री और राजस्व मंत्री से शिकायत करने की कह रहे हैं.

क्षेत्र के एक-दो, दर्जन-दो दर्जन नहीं बल्कि सैकड़ों ऐसे किसान हैं, जिन्हें जमीन की रजिस्ट्री कराने के बाद अब नामांतरण के लिए बार-बार कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ रहा है. परेशान करने का और कोई बहाना नहीं मिला तो वर्ष 1929, 1955 का मिसल रिकॉर्ड मांगा जा रहा है. किसान सवाल कर रहे हैं कि जब रजिस्ट्रार ने ऑनलाइन रिकार्ड देखकर जमीन की रजिस्ट्री कर दी तो अब नामांतरण करने में अधिकारियों को क्या परेशानी आ रही है.

किसानी के समय में लगा रहे चक्कर

ऐन किसानी के समय नामांतरण के लिए चक्कर लगवाए जाने से हताश किसान समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर अधिकारियों-कर्मचारियों की मनमानी से कौन उन्हें निजात दिलाएगा. यह समस्या तहसील मुख्यालय और आसपास रहने के साथ-साथ उन लोगों पर और भारी पड़ रही है, जिन्हें दूरदराज इलाके से महज नामांतरण के लिए तहसील कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ रहा है. एक-दो बार की बात हो तो अलग, यहां तो बार-बार का रोना हो गया है.

मजबूरी में करनी पड़ रही जेब ढीली

हताश-परेशान किसानों ने लल्लूराम डॉट कॉम से चर्चा में बताया कि जिन जमीनों का मिसल रिकार्ड नहीं है, केवल उन्हीं का नहीं बल्कि जिन जमीन का मिसल रिकार्ड मौजूद है, उसके भी खरीदारों को परेशान किया जा रहा है. पैसों के लिए खेले जा रहे इस खेल में मजबूरी में किसानों को अपनी जेब ढीली करनी पड़ रही है. परेशान किसानों का एक ही सवाल है कि जब जमीन में पटवारी ने भूस्वामी का उल्लेख कर दिया है, डिजिटल साइन मौजूद है, उसके नामांतरण के लिए क्यों चक्कर लगवाया जा रहा है.

मुश्किल से सुधरी रजिस्ट्री की व्यवस्था

बता दें कि इसके पहले भी लल्लूराम डॉट कॉम ने ऑनलाइन रजिस्ट्री को लेकर किसानों की परेशानी को प्रमुखता से उठाया था. दरअसल, महासमुंद जिले में ऑनलाइन नकल से रजिस्ट्री नहीं होती थी. ऑनलाइन नकल में पटवारी और तहसीलदार के हस्ताक्षर को अनिवार्य कर दिया गया था. बेबस किसान मोटी रकम देकर हस्ताक्षर करवाते थे, तब कहीं जाकर उनकी जमीनों की रजिस्ट्री होती थी. खबर के प्रकाशन के बाद ऑनलाइन और च्वाइस सेंटरों से निकाले गए नकल से रजिस्ट्री शुरू हुआ था.

किसानों की शिकायत

मेमरा के किसान अमित लाल कहते हैं कि उन्होंने वर्ष 2020 में जमीन नामांतरण के लिए आवेदन दिया था, लेकिन अब तक नामांतरण नहीं हुआ है. राजस्व कार्यालय की पेशी में जा-जाकर थक चुका हूं.

सुखीपाली के किसान श्याम लाल बताते हैं कि वर्ष 2016 से जमीन खरीदा हूं, लेकिन अभी तक जमीन का नामांतरण नहीं हुआ है. पता नहीं कब नामांतरण होगा.

क्या कहते हैं अधिवक्ता

अधिवक्ता टिकेंद्र प्रधान बताते हैं कि लोक सेवा गांरटी अधिनियम के तहत नामांतरण के मामले का अधिकतम 90 दिनों के भीतर निराकरण किए जाने का प्रावधान है. इनका हर हाल में निराकरण करना होगा.

अधिवक्ता आकाश अग्रवाल बताते हैं कि नामांतरण के लिए तहसीलदार मिसल रिकार्ड मंगाते हैं. किसानों को वर्ष 1929 व वर्ष 1955 का मिसल रिकार्ड लाने महासमुंद भेजा जाता है. महासमुंद में पैसे खर्च करने के बाद सन् 1974 का मिशन दिया जाता है. लेकिन िस मिसल रिकार्ड से भी तहसीलदार नामांतरण नहीं कर रहे हैं.

क्या कहते हैं अधिकारी

नायब तहसीलदार राममूर्ति बताते हैं कि अधूरे दस्तावेजों की वजह से नामांतरण व वादविवाद के मामले लंबित हैं. ग्राम पंचायतों में करीब 300 व तहसील में 500 मामले लंबित हैं. नामांतरण हमारे आईडी व पटवारियों को आता है. सप्ताह भर के भीतर नामांतरण की प्रकिया सरल होने की संभावना है. जल्द ही मामलों का निराकरण कर दिया जाएगा.

अनुविभागीय अधिकारी बीएस मरकाम बताते हैं कि नामांतरण तहसीलदार के आईडी में जाता है. मुझे जानकारी नहीं है. नामांतरण तहसीलदार के न्यायालय मे चलता है. लंबित मामले पर तहसीलदार से बात करता हूं.