विक्रम मिश्र, लखनऊ. पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष का समय अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. जो कि साल में 15 दिनों का एक विशेष समय होता है. हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है, इस दौरान माना जाता है कि हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं. इस समय नियमित रूप से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. पितृ पक्ष की शुरुआत आज से हो चुकी है. जो कि 30 सितंबर तक चलेगा.

ज्योतिषाचार्य पंडित धीरेन्द्र पांडेय के मुताबिक पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध,पिंडदान समेत अन्य अनुष्ठान किए जाते हैं. मान्यता है कि इन दिनों में पितरों की आत्मा धरती पर आती है. जिस तिथि को पितरों की मृत्यु हुई हो, उस तिथि को उनके नाम से श्रद्धा और यथाशक्ति ब्राहम्णों को भोजन करवाएं. गाय, कौवे, कुत्ते और चीटियों को भी खिलाया जाता है.

श्राद्ध के लिए उपयुक्त समय

दिन में सुबह 11:36 से 12:25तक
दोपहर में 12:25 से 1:14 तक
दोपहर में 1:14 से 3:41

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श्राद्ध की तिथियां –

  • प्रतिपदा श्राद्ध 18 सितंबर
  • द्वितीया श्राद्ध 19 सितंबर
  • तृतीया श्राद्ध 20 सितंबर
  • चतुर्थी श्राद्ध 21 सितंबर
  • पंचमी श्राद्ध 22 सितंबर
  • षष्ठी श्राद्ध 23 सितंबर
  • सप्तमी श्राद्ध 23 सितंबर
  • अष्टमी श्राद्ध 24 सितंबर
  • नवमी श्राद्ध 25 सितंबर
  • दशमी श्राद्ध 26 सितंबर
  • एकादशी श्राद्ध 27 सितंबर
  • द्वादशी श्राद्ध 29 सितंबर
  • त्रयोदशी श्राद्ध 30 सितंबर
  • चतुर्दशी श्राद्ध 01 अक्टूबर

2 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या होगी. इस दिन पितरों की विदाई होती है और जिन्हें अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि मालूम नहीं, या किसी कारणवश वे तय तिथि पर नहीं कर पाए, वो इस दिन श्राद्धकर्म कर सकते हैं.

पौधरोपण और पूजन का विशेष महत्व

ज्योतिषाचार्य पंडित धीरेन्द्र पांडेय के मुताबिक, पिंडदान, ब्राह्मण भोजन के अलावा पौधे लगाने और उनके पूजन से भी पूर्वज संतुष्ट होते हैं. पौधे पर्यावरण सुरक्षा तो करते ही हैं, इनके पूजन से हमारे पूर्वज भी संतुष्ट होते हैं. पितृ पक्ष में बेलपत्र लगाने से विवाह बाधाएं दूर होती हैं और आर्थिक संकट में कमी आती है. वहीं तुलसी में दिव्य ऊर्जा समाहित होती है, इसका पौधा लगाने और जल देने से पितृ भी शांत होते हैं, खुद के मन को भी शांति मिलती है.

क्या करें और क्या नहीं

ज्योतिषाचार्यों का मत है कि गया जाकर पिंडदान कर आए परिवार के लिए खरीदारी आदि करने की कोई मनाही नहीं है. मांस-मदिरा का सेवन करने से बचना चाहिए. जरूरत पर खरीदारी आदि निषेध नहीं है.