लखनऊ. सदियों से पितरों के निमित्त श्राद्ध करने की परंपरा है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार वर्ष 2018 में पितृपक्ष का आरंभ 24 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा से हो रहा है. 8 अक्तूबर को सर्वपितृ अमावस्या पितृपक्ष की अंतिम तिथि रहेगी. पितृपक्ष पूर्णिमा से अमावस्या तक 16 दिन का होता है.

धर्मशास्त्रों के अनुसार हमारी मान्यता है कि प्रत्येक की मृत्यु इन 16 तिथियों को छोड़कर अन्य किसी दिन नहीं होती है, इसीलिए इस पक्ष में 16 दिन होते हैं. एक मनौवैज्ञानिक पहलू यह है कि इस अवधि में हम अपने पितरों तक अपने भाव पहुंचाते हैं, क्योंकि यह पक्ष वर्षाकाल के बाद आता है. ऐसा माना जाता है कि आकाश पूरी तरह से साफ हो गया है और हमारी संवेदनाओं और प्रार्थनाओं के आवागमन के लिए मार्ग सुलभ है.

ज्योतिष और धर्मशास्त्र कहते हैं कि पितरों के निमित्त यह काल इसलिए भी श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि इसमें सूर्य कन्या राशि में रहता है और यह ज्योतिष गणना पितरों के अनुकूल होती है. साधारण शब्दों में श्राद्ध का अर्थ अपने कुल देवताओं, पितरों, अथवा अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना है. हिंदू पंचाग के अनुसार वर्ष में पंद्रह दिन की एक विशेष अवधि है जिसमें श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. इन्हीं दिनों को श्राद्ध पक्ष, पितृपक्ष और महालय के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इन दिनों में तमाम पूर्वज़ जो शशरीर परिजनों के बीच मौजूद नहीं हैं वे सभी पृथ्वी पर सूक्ष्म रूप में आते हैं और उनके नाम से किए जाने वाले तर्पण को स्वीकार करते हैं. कौआ को यम का दूत माना जाता है, वहीं गाय को भगवान का, ऐसे में श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को भोजन करवाने से पहले इन्हें ग्रास दिया जाता है.