आशुतोष तिवारी, जगदलपुर. छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी बस्तरिया पहाड़ी मैना के संवर्धन की वन विभाग की महत्वाकांक्षी योजना ने आखिरकार दम तोड़ दिया. हर प्रकार की ध्वनि की हूबहू नकल करने की क्षमता रखने वाली प्रजाति बस्तरिया पहाड़ी मैना को छत्तीसगढ़ राज्य गठन के तुरंत बाद राजकीय पक्षी घोषित किया गया था. उसके बाद से ही इसके संरक्षण और संवर्धन की कवायद लगातार जारी रही.

इसके तहत वन विभाग संभाग मुख्यालय जगदलपुर के वन विद्यालय में एक विशालकाय साल के वृक्ष में पिंजरे का निर्माण किया गया. जिसमें डेढ़ दशक पहले पहाड़ी मैना रखी गई. इस परियोजना का उद्देश्य था उसकी संख्या में इजाफा करना. वन विभाग को नहीं मालूम था कि आखिर नर और मादा की पहचान क्या है. अनुभव की कमी के कारण ये परियोजना लंबे समय तक नहीं चल सकी. साथ ही पर्याप्त सुरक्षा के अभाव में एक मैना को सांप ने मार दिया.

दूसरी तरफ समय-समय पर पिंजरे में रखी गई मैना की रहस्यमयी मौत होती रही है. लाखों रुपये खर्च कर संचालित किए जाते रहे इस प्रोजेक्ट में अंततः बस्तर में आखरी मैना ने भी दम तोड़ दिया. इस परियोजना के इस दुखद अंत के बाद वन्यजीव प्रेमियों में तरह-तरह की चर्चाएं जारी है. लोगों का कहना है कि पर्याप्त रिसर्च के भाव में इस परियोजना ने दम तोड़ दिया. साथ ही इस पूरे प्रोजेक्ट पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगते रहे हैं. अभी कुछ दिनों पहले ही कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के प्रबंधन ने बाकायदा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में मैना की संख्या में वृद्धि के दावे किए थे लेकिन इसके ठीक उलट चंद महीनों के भीतर ही नतीजे नकारात्मक हो चले हैं.