जीतेन्द्र सिन्हा, राजिम। प्रधानमंत्री का सपना “हर गरीब को पक्का मकान” देना है, लेकिन जमीनी हकीकत कहती है कि यह सपना कोपरा नगर पंचायत में अफसरों की लापरवाही, सिस्टम की खामी और डिजिटल गड़बड़ी की बलि चढ़ चुका है। जहां प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी 2.0 के अंतर्गत आवेदन करने वाले 13 गरीब हितग्राही आज भी टूटती झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं, जबकि सरकारी पोर्टल के दस्तावेज़ बताने लगे हैं कि इनके नाम पर पहले ही ग्रामीण योजना के तहत आवास बन चुका है।

सबसे बड़ा सवाल- जब निर्माण ही नहीं हुआ, भुगतान ही नहीं हुआ, निरीक्षण ही नहीं हुआ तो पोर्टल पर इनका घर कैसे ‘पूर्ण’ दिख रहा है? क्या यह डिजिटल भारत का तकनीकी भ्रम है, फाइलों में चल रही सरकारी लूट है, या विभागों की लापरवाही का परिणाम?
प्रधानमंत्री आवास आवास से वंचित पीड़ितों में होरीलाल चक्रधारी, कमल साहू, सुदर्शन लाल, महेंद्र साहू, दुष्यंत साहू, अशोक पटेल, दानीराम साहू, गोपाल साहू, प्रकाश निषाद, रामसाय निषाद, मिथलेश कुमार, जीवनलाल साहू और नीरज यादव जैसे कई लोग है। इन लोगों का कहना है कि उन्होंने PMAY-शहरी के लिए आवेदन किया, लेकिन जब फाइल आगे बढ़ी तो पाया गया कि PMAY-ग्रामीण पोर्टल पर वे पहले से लाभार्थी दर्ज हैं, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है।
इन कथित लाभार्थियों के खाते में एक भी भुगतान किस्त प्राप्त नहीं हुई और न ही कभी साइट का निरीक्षण हुआ। न कोई अधिकारी आया, न कोई निर्माण का चिन्ह। कच्ची झोपड़ी टूटी छत, बारिश में भीगते परिवार, लेकिन रिकॉर्ड में आवास ‘पूर्ण’ है।
एक बुजुर्ग हितग्राही ने रोते हुए कहा- “बाबू लोग कहते हैं कि कंप्यूटर में आपका मकान बन चुका है, हम कहते हैं चलो दिखाओ, तो चुप हो जाते हैं। अब झोपड़ी भी टपक रही है पर नया मकान मिलने का रास्ता बंद कर दिया गया है।”
नगर पंचायत ने लिखा पत्र – लेकिन महीनों बाद भी नहीं मिला जवाब
मामला उजागर होने के बाद नगर पंचायत कोपरा ने जनपद पंचायत फिंगेश्वर को आधिकारिक पत्र लिखकर सवाल पूछा है कि क्या इन 13 नामों पर वाकई ग्रामीण योजना के पैसे जारी हुए और घर बना? यदि नहीं, तो तुरंत पोर्टल से नाम हटाए जाएं। लेकिन महीनों से कोई जवाब नहीं आया, जिससे सिस्टम की कार्यशैली कटघरे में है।
जिम्मेदारों का पक्ष — बयान देने में सक्रिय, कार्यवाही में मौन
(1) श्यामलाल वर्मा, मुख्य नगर पंचायत अधिकारी, कोपरा
“जनपद पंचायत फिंगेश्वर को आवेदन के माध्यम से जानकारी मांगी गई है कि इन लोगों का आवास पूर्व में बन चुका है या नहीं, जवाब आने के बाद आगे कार्रवाई की जाएगी।”
(2) रूपनारायण साहू, अध्यक्ष नगर पंचायत कोपरा
“नगर पंचायत कोपरा में इन 13 हितग्राहियों का आवास नहीं बना है। ये आज भी कच्चे घरों में रह रहे हैं। जवाब आने पर स्थिति स्पष्ट होगी।”
(3) ज्योति बाला धालेन, प्रभारी CEO, फिंगेश्वर
“जानकारी लेती हूँ आवास शाखा से, इसके बाद वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत कराया जाएगा।”
सवाल जो विभाग को देना होगा — ताकि न्याय हो
पीड़ित लोग सवाल उठा रहे है कि जब आवास का निर्माण ही नहीं हुआ, भुगतान नहीं हुआ और निरीक्षण नहीं हुआ, तो पोर्टल पर घर ‘पूर्ण’ कैसे दिख रहा है। किस अधिकारी ने निरीक्षण रिपोर्ट पास की? भुगतान का रिकॉर्ड कहाँ है? किसके हस्ताक्षर से फाइल प्रसंस्कृत हुई? जवाब महीनों से क्यों रोका जा रहा? क्या किसी अधिकारी ने जानबूझकर रोक रखा है? सिस्टम त्रुटि या मानवीय भ्रष्टाचार? दोषियों पर कार्रवाई कब?
लोगो ने की जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग
लोगो की मांग है कि या तो उन्हें पक्का मकान दिया जाए, या गलती करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर FIR दर्ज की जाए। इस मामले में समय रहते प्रशासन की संवेदनशीलता और जवाबदेही नहीं दिखी तो यह सिर्फ 13 गरीब परिवारों का मुद्दा नहीं रहेगा, बल्कि पूरे सरकारी सिस्टम की ईमानदारी और साख पर गंभीर सवाल खड़ा करेगा। लोगो की मांग है कि या तो उन्हें पक्का मकान दिया जाए, या गलती करने वालों पर कार्रवाई कर FIR दर्ज की जाए।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री आवास योजना गरीबों के सपने पूरे करने के लिए चलाई गई थी, लेकिन कोपरा में यह योजना फाइलों और पोर्टल पर बिखर गई है। यदि समय रहते प्रशासन नहीं जागा, तो यह मामला सरकारी सिस्टम की साख और संवेदनशीलता दोनों पर बड़ा सवाल बन जाएगा।
लल्लूराम डॉट कॉम यह मुद्दा आगे भी उठाता रहेगा, क्योंकि सवाल सिर्फ 13 गरीब परिवारों का नहीं, बल्कि व्यवस्था की ईमानदारी का है।
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