कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर एक समति बनाई है. घोषणा पत्र क्रियान्वयन समिति. जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, समिति का काम वहां घोषणा पत्र के लागू होने की समीक्षा करना है. कोरोना की वजह से अभी ये बैठकें वर्चुअल हो रही हैं. इतवार को छत्तीसगढ़ को लेकर ये बैठक हुई.
समिति के दूसरे सदस्य रणदीप सुरजेवाला ने भी भूपेश बघेल सरकार के जनहितैषी कामों की प्रशंसा करते हुए कहा कि देश के लिए एक मॉडल है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने जन घोषणा पत्र के छत्तीस वायदों में से 24 को पूरा कर मिसाल कायम की है और मुख्यमंत्री बघेल देश के लिए रोड मॉडल बने हैं. उन्होंने कहा कि वे संगठन के जरिये भूपेश बघेल सरकार के कामों को जन-जन तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं.
कांग्रेस के शीर्ष के दो नेताओं ने जिस वक्त मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की जी भरके तारीफ की है, जो बयान दिए हैं. असल में उसके मायने क्या हैं, उसमें क्या राजनीतिक मायने छिपे हैं ?
दरअसल, घोषणापत्र क्रियान्वयन समिति के अध्यक्ष जयराम रमेश और रणदीप सुरजेवाल राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाते हैं. दोनों के बयान को भूपेश बघेल के नेतृत्व पर भरोसे और उनके कामकाज पर मुहर की तरह देखा जा रहा है.
दोनों नेताओं के ये बयान संदेश उन लोगों के लिए संदेश है, जो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार में अस्थिरता के कारण ढूंढ रहे थे. संदेश साफ है कि भूपेश बघेल स्थिर सरकार का नेतृत्व ही नहीं कर रहे हैं बल्कि उन्हें हाईकमान का पूरा भरोसा हासिल है.
गौरतलब है कि जब से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बने हैं, तब से छत्तीसगढ़ की राजनीति के एक हिस्से में ही नहीं नौकरशाही और मीडिया के भी एक वर्ग में ये चर्चा थी कि वे ढाई साल के लिए बने हैं, और इन्हीं में से कुछ तो यहां तक कहते सुने जाते थे कि अगले ढाई साल मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव होंगे. चूंकि सरकार के ढाई साल पूरे हो चुके हैं इसलिए राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाओं का दौर चलता रहा. कभी ये चर्चाएं तेज़ हो जाती हैं, कभी धीमी पड़ जाती है. 17 जून से पहले ये चर्चा काफी तेज़ हो गई थी. लेकिन 17 जून के बाद ये चर्चा धीमी पड़ी है.
जब इन अटकलों ने जोर पकड़ा तो सबसे पहले भूपेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री रविन्द्र चौबे ने आ कर सारी अटकलों को साफ तौर पर बेबुनियाद कहा लेकिन उम्मीद बांधे तबकों को तब भी शायद भरोसा नहीं हुआ. यह तबका इन तर्कों को स्वीकार नहीं करना चाहता था कि कांग्रेस पार्टी किसी स्थिर और परफॉर्म कर रहे प्रदेश में अस्थिरता का कारण क्यों पैदा करने जाएगी ! लेकिन अब इस रविवार को आलाकमान से जुड़े दो नेताओं का बयान इन्हीं तबकों के लिए संदेश है. सुरजेवाला और जयराम रमेश ने जिस तरह से सरकार के कामकाज पर मुहर लगाई है उसने भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार को आगे बढ़ने का संदेश छिपा है. इससे पहले प्रभारी पीएल पुनिया ने भी छत्तीसगढ़ दौरे में ढाई-ढाई साल के कथित फॉर्मूले को हवा-हवाई बताया था.
दरअसल, ढाई साल पहले क्या हुआ ये ना पार्टी न मीडिया में कोई जानता. लेकिन ढाई साल में जो भूपेश बघेल ने प्रशासक और राजनेता के तौर पर जो छवि हासिल की है, जिस तरह के फैसले किए और जिस तरह की स्वीकार्यता हासिल की उसे सभी ने देखा है. ढाई साल के मुख्यमंत्री ने हालात और राजनीति को काफी हद तक अपने हक में कर रखा है और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जो साख बनाई है, उसने उनके खिलाफ किसी भी तरह की मुहिम को जगह बनाने का मौका ही नहीं दिया , हटाने की बात तो दूर! उनसे प्रतिद्वंदिता रखने वाले कई मंत्री ,नेता चाहे वो विपक्ष में हों या उनकी अपनी कांग्रेस पार्टी में , भी इस बात को समझ रहे हैं.
ढाई साल में भूपेश बघेल ने अपनी जड़ों को मज़बूत करने के लिए कई फ्रंट पर काम किया है. एक मोर्चे पर सरकार ने अपनी घोषणाओं को पूरा करने में तेज़ी दिखाई. केंद्र सरकार के रोड़े अटकाने के बाद कर्ज लेकर भी भूपेश बघेल ने पार्टी के वादे को पूरा किया. वादे को निभाने में उन्होंने जो प्रतिबद्धता दिखाई है, उसने न सिर्फ उन्हें फैसले लेने वाले राजनेता के रुप में मज़बूत किया बल्कि जनता के दिल में कांग्रेस के भरोसे को भी पुख्ता किया.
दूसरे फ्रंट पर सरकार ने राज्य की करीब 79 प्रतिशत आबादी को सीधे कैश ट्रांसफर से जोड़ दिया है. यानि इस आबादी को किसी न किसी तरीके से सरकार सीधे पैसे दे रही है. राज्य के 66 लाख परिवारों से 52 लाख परिवार को सीधे कैश ट्रांसफर का फायदा मिल रहा है. इससे भूपेश सरकार के लिए फील गुड फैक्टर जनता तक पहुंच रहा है.
तीसरे फ्रंट पर भूपेश बघेल अपने चिरपरित अंदाज़ में भाजपा, उसकी केंद्र की मोदी सरकार और आरएसएस पर दो- दो हाथ लगातार कर रहे हैं. उन्होंने केंद्र सरकार और भाजपा के खिलाफ दो बातों को स्थापित कर दिया है. पहला- केंद्र छत्तीसगढ़ से भेदभाव कर रही है. उसके बाद भी वे जनता के लिए काम कर रहे हैं. केंद्र सरकार ने अभी करीब 26 हज़ार करोड़ रुपये रोके हुए हैं. दूसरी बात- केंद्र सरकार और भाजपा के नेता नहीं चाहते कि राज्य की जनता को 2500 रुपये मिले. इन दोनों बातों ने जनता के बीच उनकी पकड़ को मजबूत कर रखा है. इसके अलावा वैचारिक और राजनीतिक तौर पर भूपेश बघेल आरएसएस और भाजपा के खिलाफ सबसे मुखर नेता के तौर पर जाने जाते हैं जो पार्टी के अंदर उनकी छवि को मजबूत करता है.
चौथे फ्रंट पर वे तमाम विधायकों को अपने खेमे में लामबंद करते जा रहे है. मुख्यमंत्री उन्हें सुन रहे हैं. उनके काम तेज़ी से करा रहे हैं. विधायकों को अलग-अलग अतरिक्त पदों से नवाज रहे हैं. बताया जाता है कि बाकी बड़े नेताओं के करीबी समर्थक ज़्यादातर विधायकों को इस तरह उन्होंने अपने खाने में कर लिया है.
लेकिन ऐसा नहीं है कि अगले ढाई साल में उनकी चुनौतियां खत्म हो गई हैं. सिलगेर की घटना के बाद आदिवासियों के बीच उपजे असंतोष को खत्म करना कोरोना के बाद उनकी सबसे बड़ी चुनौती है. एक बड़ी चुनौती है कि ढाई साल में उनके हक में जो माहौल है, उसे पांच साल तक टिकाए रखना है. वरना राजनीति का ऊंट कब किस करवट बैठे…