अविनाश श्रीवास्तव/रोहतास। सासाराम की राजनीति इस वक्त एक बड़े विवाद से गरमाई हुई है। 5 सितंबर को शहीद जगदेव प्रसाद की शहादत दिवस पर आयोजित राजद की एकजुटता रैली में सीमा कुशवाहा का एक ऐसा कृत्य हुआ जिसने न केवल राजनीतिक हलकों में हलचल मचाई बल्कि पूरे जिले में चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया। इस रैली में सीमा कुशवाहा का मंच पर चढ़ना और फिर तेजस्वी यादव के साथ बातचीत करना उनके राजनीतिक करियर को संकट में डालने वाला साबित हुआ।
तेजस्वी यादव की नाराजगी
इस रैली में जब सीमा कुशवाहा मंच पर चढ़ गईं और तेजस्वी यादव से बातचीत करने लगीं तो सबकी नजरें उन पर थी। लेकिन जब तेजस्वी यादव को इस अप्रत्याशित हरकत से नाराज होते देखा गया तो उन्होंने कार्यकर्ताओं को इशारा किया। इसके बाद राजद कार्यकर्ताओं ने उन्हें मंच से उतार दिया। यह घटना सासाराम में तेज़ी से फैल गई और राजनीतिक गलियारों में सीमा की छवि को लेकर सवाल उठने लगे।
रील वाली नेता के रूप में उभरी छवि
इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया। सासाराम में लोग इसे मजाकिया अंदाज में शेयर कर रहे हैं और अब उन्हें रील वाली नेता कहा जाने लगा है। चर्चा यह हो रही है कि सीमा सिर्फ सोशल मीडिया और प्रचार के जरिए राजनीति में खुद को स्थापित करना चाहती थीं लेकिन जब असली राजनीति का सामना किया तो उनकी असलियत सामने आ गई।
परिवारिक दावा या राजनीतिक छलावा
सीमा ने हमेशा खुद को तेजस्वी यादव की बहन और लालू-राबड़ी की बेटी बताकर सहानुभूति बटोरने की कोशिश की है। लेकिन सवाल उठता है कि अगर उनका यह दावा सच होता तो क्या तेजस्वी यादव उन्हें मंच से उतारते यह घटना उनके दावों को पूरी तरह से नकारते हुए उनके राजनीतिक करियर पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।
अनुशासनहीनता के रूप में देखा जा रहा
सीमा की अचानक मंच पर चढ़ने की हरकत को राजद के अनुशासनहीनता के रूप में देखा जा रहा है। यह साफ तौर पर दिखाता है कि सीमा को पार्टी की तरफ से कोई समर्थन नहीं मिला है। तेजस्वी यादव का गुस्सा और कार्यकर्ताओं द्वारा उन्हें मंच से उतारना यह साबित करता है कि पार्टी उनके व्यवहार को स्वीकार नहीं कर रही है।
रील बनाम रियल राजनीति
राजनीति में सोशल मीडिया का महत्व जरूर बढ़ा है लेकिन केवल पोस्ट रील और प्रचार के दम पर नेता नहीं बना जा सकता। जनता असली नेता चाहती है जो जनता के बीच काम करे न कि सिर्फ सोशल मीडिया पर एक्टिव रहे। सीमा की रैली की घटना ने यह साफ कर दिया कि असली राजनीति और प्रचार में फर्क होता है।
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