हरियाणा कांग्रेस में इस वक्त सियासी भूचाल आया आया हुआ है. वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री संपत सिंह ने 2 नवंबर को कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है. एक महीने पहले उन्होंने खुलकर पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाए थे जब पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सीएलपी नेता के रूप में नियुक्ति हुई थी. तब उन्होंने उनकी इस नियुक्ति पर तंज कसा था. सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजे पत्र में कहा कि पिछले 15 सालों से पार्टी की लगातार गिरावट की कोई जवाबदेही तय नहीं की गई और संगठन ‘निजी जागीर’ बन चुका है. उन्होंने आरोप लगाया कि हरियाणा में कांग्रेस वफादारी का नहीं, चापलूसी का इनाम देती है.
पार्टी में ‘सिस्टमेटिक डिके’ और साइडलाइनिंग का आरोप
अपने विस्तृत इस्तीफे में संपत सिंह ने लिखा कि पार्टी में जानबूझकर ऐसी परिस्थितियां बनाई गईं जिनसे कई वरिष्ठ नेताओं को मजबूर होकर कांग्रेस छोड़नी पड़ी. उन्होंने बताया कि 2009 में जब वे इनेलो छोड़कर कांग्रेस में आए, तब उन्हें फतेहाबाद से टिकट देने का वादा किया गया था, लेकिन बाद में नवांला भेज दिया गया. जनता ने उन पर भरोसा जताया और उन्हें विधायक चुना, मगर कांग्रेस को फतेहाबाद सीट गंवानी पड़ी. बावजूद इसके उन्हें न तो मंत्री पद मिला और न कोई संगठनात्मक जिम्मेदारी. उन्होंने कहा कि बाद में उन्हें बताया गया कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने कुमारी सैलजा से मुलाकात की थी, जिनके मंत्रालय से उनके क्षेत्र के लिए 18 करोड़ की मंजूरी मिली थी.
2024 में टिकट न मिलने और ‘फैमिली डॉमिनेशन’ पर हमला
संपत सिंह ने खुलासा किया कि 2019 और 2024 दोनों विधानसभा चुनावों में उन्हें टिकट से वंचित रखा गया. उन्होंने आरोप लगाया कि योग्य उम्मीदवारों को नजरअंदाज कर धनबल वालों को टिकट दिया गया. पत्र में उन्होंने लिखा, “हरियाणा कांग्रेस अब व्यक्तिगत सत्ता का केंद्र बन चुकी है, जहां वफादारी की जगह चापलूसी को तरजीह दी जाती है और असहमति पर सज़ा दी जाती है.” उन्होंने हुड्डा पर अप्रत्यक्ष हमला करते हुए कहा कि 2020 में जब राज्य से राज्यसभा सीट खाली हुई तो पिछड़े वर्गों या योग्य नेताओं की बजाय उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा को भेजा गया. यही कारण है कि कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी अब ‘क्षेत्रीय पारिवारिक उद्यम’ बनकर रह गई है.
कुमारी सैलजा, किरण चौधरी और जिंदल परिवार का उदाहरण
संपत सिंह ने इस्तीफे में यह भी बताया कि कैसे प्रमुख नेताओं को हाशिये पर किया गया. उन्होंने लिखा कि किरण चौधरी, पांच बार की विधायक और दो बार की मंत्री, को लगातार अपमानित किया गया और उनकी मीटिंगों का बहिष्कार करने के निर्देश दिए गए. उन्होंने बीजेपी को मजबूती दी और अब राज्यसभा सदस्य हैं.
इसी तरह सवित्री जिंदल और उनके बेटे नवीन जिंदल ने भी पार्टी छोड़ी और अब बीजेपी के साथ हैं. सैलजा को 2022 में राज्य अध्यक्ष पद से हटाया गया, जबकि वे दलितों की प्रमुख आवाज थीं. सिंह ने लिखा कि 2009 से 2024 तक कांग्रेस की गिरावट पर कोई आत्ममंथन नहीं हुआ, जबकि हर सर्वेक्षण में कांग्रेस को जीतता दिखाया गया था, लेकिन नतीजे उलट आए. अंत में उन्होंने कहा, “अब मुझे हरियाणा की जनता पर भरोसा है, मगर कांग्रेस नेतृत्व पर नहीं. मैं अपने प्रदेश के साथ खड़ा हूं, न कि एक सीमित हितों वाली पार्टी के साथ.”
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