पटना। बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। राजधानी पटना की दीवारें इन दिनों सियासी प्रचार का केंद्र बन चुकी हैं। हर गली, चौराहा, फ्लाईओवर और अंडरपास अब पोस्टर युद्ध का मैदान बन चुका है। सभी प्रमुख राजनीतिक दल—राजद, एनडीए और जन सुराज पार्टी—अपने-अपने तरीकों से जनता तक पहुंचने की कोशिश में लगे हैं।
तेजस्वी बनाम नीतीश – दीवारों पर सीधी भिड़ंत
राजद की ओर से तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाकर बड़े-बड़े डिजिटल पोस्टर लगाए गए हैं, जिन पर लिखा है इस बार सही सरकार और मांगे बिहार तेजस्वी सरकार। इन पोस्टरों में बेरोजगारी, शिक्षा और युवाओं की आकांक्षाओं पर जोर दिया गया है। वहीं, एनडीए ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की साझा छवि वाले पोस्टरों के जरिए अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाया है। पोस्टरों में महिलाओं की जय-जयकार, फिर से NDA सरकार और लग रहे उद्योग, मिल रहा रोजगार जैसे नारों का उपयोग किया गया है।
नगर निगम नियमों की अनदेखी
हैरान करने वाली बात यह है कि जहां स्पष्ट रूप से लिखा है यहां पोस्टर लगाना मना है, वहां भी बेशर्मी से राजनीतिक पोस्टर चिपकाए जा रहे हैं। इससे न सिर्फ नगर निगम के नियमों की अनदेखी हो रही है बल्कि शहर की सुंदरता भी प्रभावित हो रही है।
जन सुराज की आक्रामक रणनीति
पोस्टर वार में अब जन सुराज पार्टी और उसके संस्थापक प्रशांत किशोर की एंट्री ने माहौल को और गरमा दिया है। जन सुराज कार्यकर्ता न केवल अपने पोस्टर लगा रहे हैं, बल्कि तेजस्वी और नीतीश के पोस्टरों के ऊपर अपने पोस्टर चिपका रहे हैं। प्रशांत किशोर के पोस्टरों में अंबेडकर और गांधीजी की तस्वीरों के साथ लिखा गया है – “वोट अपने बच्चों के लिए, शिक्षा और रोजगार के लिए”। यह उनकी रणनीति को दर्शाता है, जहां वे खुद को एक वैकल्पिक और विचारधारा-आधारित नेतृत्व के रूप में पेश कर रहे हैं।
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