चंडीगढ़। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर साढ़े नौ साल कामकाज संभालने के बाद पद से इस्तीफा दे दिया है. लेकिन जस तरह से उन्हें इस्तीफा देने पर कांग्रेस आलाकमान ने मजबूर किया है, न उन्हें रास आ रहा है, और न ही उनके समर्थकों को. ऐसे में कैप्टन अमरिंदर के निकट के लोह ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने की बात कह रहे हैं, क्योंकि दोनों राष्ट्रवाद और देशप्रेम के मामले में एकमत हैं.

राजनीति में संभावनाएं अनंत होती है. इसका उदाहरण वर्तमान में कही देखना हो तो पंजाब प्रांत काफी है. तीन कृषि कानूनों को लेकर पंजाब में अलग-थलग पड़ी भाजपा को अगले चुनाव में कैप्टन अमरिंदर का मजबूत कंधा मिलने की संभावना जताई जा रही है. ये वही कैप्टन हैं, जिन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए केंद्रीय कृषि कानूनों का विरोध करने के साथ-साथ पंजाब में किसानों को तीन कृषि कानूनों के विरोध में खड़ा करने के साथ छोटी सी चिंगारी को हवा देकर फैलाने का काम किया. ऐसे में भाजपा में जाने का निर्णय लेना कैप्टन के लिए इतना आसान नहीं होगा.

पहले भी छोड़ चुके हैं कांग्रेस

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब की राजनीति में 52 सालों का लंबा अनुभव है. 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद कांग्रेस छोड़कर कैप्टन अकाली दल में शामिल हो गए थे. बादल से नहीं जमी तो 1992 में उन्होंने खुद की पार्टी शिरोमणी अकाली दल (पंथिक) खड़ी कर दी.  इसके बाद राजीव गांधी से अच्छे संबंधों की वजह से 1998 में अपनी पार्टी को कांग्रेस में शामिल करा लिया. ऐसे में कांग्रेस को फिर से विदाई देने का फैसला उनके लिए कठिन नहीं है.

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अकाली और आप का सवाल ही नहीं

वर्तमान समय में अकाली दल और आप पार्टी के साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह का 36 न सही 32 का आंकड़ा जरूर है. दोनों की दलों के साथ कैप्टन अमरिंदर के वैचारिक मतभेद सामने आते रहे हैं. दूसरी बात दोनों ही दलों के पास कैप्टन को लेकर विकल्प नहीं है. एक तरफ अकाली दल में मुख्यमंत्री का नाम तयशुदा रहता है. वहीं दूसरी ओर आप में आते ही कैप्टन को मुख्यमंत्री का पद दे दिया जाए, इसकी कोई गारंटी नहीं है.