राकेश चतुर्वेदी, भोपाल। मध्यप्रदेश में उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश पर सियासत शुरू हो गई है। शासन के आदेश के जहां कांग्रेस ने तुगलकी फरमान बताया है वहीं एमपी प्राध्यापक संघ ने भी आपत्ति जताई है। वहीं बीजेपी ने मामले में सफाई दी है। उच्च शिक्षा विभाग के आदेश को लेकर कांग्रेस प्रवक्ता स्वदेश शर्मा ने कहा कि- प्रोफेसर अगर विभागाध्यक्ष से प्रताड़ित हो तो किसे अपनी पीड़ा सुनाएगा। यह न भूलें कि ये लोकतंत्र है। जनप्रतिनिधियों को जनसेवक कहा गया है, लोकतंत्र की मर्यादा रखनी जरूरी है, इसलिए सबकी सुनो, ये कुर्सियां आती-जाती रहती हैं।

काम नहीं हुआ तो फिर तो हम जाएंगे ही

प्राध्यापक संघ के अध्यक्ष प्रोफेसर कैलाश त्यागी ने कहा कि- काम पेंडिंग न हो तो जाना ही न पड़ेगा। बिना काम के कोई कहीं नहीं जाता है। प्रोफेसर्स के ग्रेड पे और अर्जित अवकाश के मामले लंबित हैं। प्रोफेसर या अधिकारी काम से जाते हैं हम आदेश का सम्मान करते हैं, लेकिन काम नहीं हुआ तो फिर तो हम जाएंगे ही। इसलिए मंत्री लंबित मामलों को लेकर भी ध्यान आकर्षित करें। वहीं बीजेपी प्रवक्ता शिवम शुक्ला ने कहा कि- मंत्री ने शिक्षा को ध्यान में रखकर आदेश निकाला है। शिक्षा व्यवस्था प्रभावित नहीं होना चाहिए। विभागाध्यक्ष की जिम्मेदारी रहती है शिक्षा व्यवस्था की। विभागाध्यक्ष की अनुमति से मिलने के लिए कहा गया है।

राजशाही और तुगलकी मंत्री को शिष्टाचार सिखाइये

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सोशल मीडिया एक्स (X) पर पोस्ट कर आदेश को तुगलकी फरमान बताया है। उन्होंने लिखा- मंत्री जी ये आपका कैसा तुगलकी फरमान!! शिक्षा मंत्री होकर शिक्षकों से नहीं मिलना चाहते! लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत जनता की चुनी हुई सरकार के मंत्री में इतना दंभ क्यों? “मंत्री होने का इतना घमंड” शिक्षा मंत्री क्या आप अपने आप को कोई तोप समझ बैठे हैं! जो कोई “प्रोफेसर” आपसे सीधे मिल नहीं सकता?? CM @DrMohanYadav51 जी अपने मंत्रिमंडल के इस राजशाही और तुगलकी मंत्री को शिष्टाचार सिखाइये.. दिल्ली के मुखिया का खंडित “दंभ” देखकर भी क्या #MP के शिक्षा मंत्री ने सबक नहीं सीखा?

उच्च शिक्षा विभाग का फरमानः मंत्री से सीधे न मिले, न ही पत्र लिखे प्रोफेसर, आदेश जारी

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