दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति बेहद गंभीर बनी हुई है। हालात ऐसे हैं कि राजधानी में लोगों को सांस लेने तक में दिक्कत हो रही है। दिसंबर महीने में दिल्ली का औसत AQI 349 दर्ज किया गया, जो पिछले 7 वर्षों में दिसंबर का सबसे खराब स्तर है। यह स्थिति वर्ष 2018 के बाद सबसे ज्यादा खराब मानी जा रही है। आंकड़ों के अनुसार, इस दौरान PM 2.5 प्रदूषण में पराली जलाने का योगदान मात्र 3.5 प्रतिशत रहा, जिससे साफ है कि प्रदूषण के अन्य स्थानीय कारण अधिक प्रभावी रहे हैं। सोमवार, 29 दिसंबर, इस साल का आठवां और अकेले दिसंबर महीने का पांचवां दिन रहा, जब राजधानी की हवा बेहद खराब श्रेणी में दर्ज की गई। विशेषज्ञों के मुताबिक, हवा की धीमी रफ्तार और स्मॉग (धुआं व कोहरा) की मोटी परत के कारण जहरीले प्रदूषक शहर के ऊपर जमा हो गए हैं, जिससे हालात और बिगड़ गए।

अब तक दिसंबर महीने में दिल्ली का औसत AQI 349 दर्ज किया गया है। खराब मौसमीय परिस्थितियों को देखते हुए यह 2018 के बाद दिल्ली का सबसे प्रदूषित दिसंबर बनने की ओर है। गौरतलब है कि वर्ष 2018 में दिसंबर का औसत AQI 360 रहा था, जबकि पिछले साल दिसंबर 2024 में औसत AQI 294 दर्ज किया गया था। दिसंबर समाप्त होने में अब सिर्फ दो दिन बचे हैं, लेकिन पूरे महीने के दौरान एक भी दिन हवा की गुणवत्ता ‘सामान्य’ (Moderate) या ‘संतोषजनक’ (Satisfactory) श्रेणी में नहीं रही। पूरे महीने AQI लगातार 200 से ऊपर बना रहा। इस सीजन का सबसे खराब AQI 14 दिसंबर को 461 दर्ज किया गया, जो रिकॉर्ड में दिसंबर महीने का दूसरा सबसे खराब स्तर माना जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, कमजोर हवा की गति और लंबे समय तक बनी स्मॉग की स्थिति ने प्रदूषण को और गंभीर बना दिया।

सरकार के ‘एयर क्वालिटी अर्ली वार्निंग सिस्टम’ (AQI पूर्वानुमान तंत्र) के अनुसार, 30 और 31 दिसंबर को दिल्ली की हवा की गुणवत्ता में मामूली सुधार देखने को मिल सकता है और यह ‘बहुत खराब’ (Very Poor) श्रेणी में आ सकती है। हालांकि, सिस्टम ने चेतावनी दी है कि 1 जनवरी से स्थिति फिर बिगड़ सकती है और हवा की गुणवत्ता ‘गंभीर’ (Severe) श्रेणी में पहुंचने की आशंका है। इसके बाद अगले छह दिनों तक AQI के ‘बहुत खराब’ श्रेणी में ही बने रहने का अनुमान जताया गया है।

एक अधिकारी ने बताया कि दिसंबर 2018 में राजधानी दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 360 दर्ज किया गया था। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों के अनुसार, अलग–अलग वर्षों में दिसंबर महीने का औसत AQI इस प्रकार रहा 2024: 294, 2023: 348, 2022: 319, 2021: 336, 2020: 332, 2019: 337, 2015: 301, इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि बीते एक दशक में दिसंबर महीने के दौरान दिल्ली की वायु गुणवत्ता लगातार खराब से बेहद खराब श्रेणी में बनी रही है और प्रदूषण एक स्थायी चुनौती बना हुआ है।

5 दिन गंभीर श्रेणी में रहा AQI

इस महीने दिल्ली में पांच दिन ऐसे रहे, जब वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ (Severe) श्रेणी में दर्ज की गई। इसकी तुलना में पिछले साल दिसंबर में राजधानी में छह दिन हवा की स्थिति गंभीर श्रेणी में रही थी। सोमवार को शाम चार बजे दिल्ली का AQI 401 दर्ज किया गया, जिससे वायु गुणवत्ता फिर से ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच गई। वहीं, रविवार को AQI 390 रहा, जो ‘अत्यंत खराब’ (Very Poor) श्रेणी में दर्ज किया गया था।

पराली से बढ़ा प्रदूषण?

पर्यावरणविद् अमित गुप्ता द्वारा सूचना का अधिकार (RTI) के तहत दायर आवेदन के जवाब में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने बताया है कि इस वर्ष 5 दिसंबर तक दिल्ली में PM2.5 प्रदूषण में पराली जलाने का योगदान मात्र 3.5 प्रतिशत रहा। इसके बावजूद दिल्ली-एनसीआर देश के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में शामिल बना हुआ है।

सीपीसीबी ने स्पष्ट किया कि दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में PM2.5 और PM10 प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों के योगदान का आकलन करने के लिए वह अब भी 2018 के TERI–ARAI स्रोत विभाजन अध्ययन पर निर्भर है। बोर्ड ने यह भी स्वीकार किया कि 2018 के बाद से कोई नया व्यापक स्रोत विभाजन अध्ययन नहीं किया गया है।

पिछले कुछ सालों में पराली जलाने में आई कमी

हालांकि, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे की निर्णय सहायता प्रणाली (DSS) के दैनिक औसत आंकड़े यह दर्शाते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में अक्टूबर से दिसंबर की अवधि के दौरान PM2.5 प्रदूषण में पराली जलाने का योगदान लगातार घटता गया है।

डेटा के अनुसार, पराली जलाने का योगदान

2020 और 2021 में लगभग 13 प्रतिशत रहा, 2022 में घटकर 9 प्रतिशत, 2023 में मामूली बढ़कर 11 प्रतिशत, 2024 में 10.6 प्रतिशत, जबकि 2025 में यह तेजी से घटकर मात्र 3.5 प्रतिशत रह गया।ये आंकड़े संकेत देते हैं कि हाल के वर्षों में पराली जलाने का प्रभाव कम हुआ है और दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के लिए अन्य स्थानीय स्रोतों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने मंगलवार के लिए ‘रेड अलर्ट’ जारी किया है, क्योंकि राजधानी में बहुत घना कोहरा छाए रहने की संभावना है। इससे सड़कों पर दृश्यता बेहद कम रहेगी और साथ ही प्रदूषण का असर भी अधिक महसूस किया जा सकता है। मौसम विभाग के अनुसार, अगले दो दिनों तक तापमान में कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा। इस दौरान अधिकतम तापमान 20 से 24 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 7 से 9 डिग्री सेल्सियस के बीच बने रहने का अनुमान है। वहीं, प्रदूषण का संकट पूरे शहर में फैला हुआ है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों के मुताबिक, सोमवार को दिल्ली के 40 निगरानी केंद्रों में से 23 केंद्रों पर वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में दर्ज की गई। सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में जहांगीरपुरी (AQI 464) और वज़ीरपुर (AQI 461) शामिल रहे।

CPCB की एयर लैब के पूर्व प्रमुख दीपांकर साहा ने प्रदूषण के क्षेत्रीय प्रभाव पर जोर देते हुए कहा कि वायु गुणवत्ता तय करने में मौसम की भूमिका सबसे अहम होती है। उन्होंने कहा, “पूरे क्षेत्र में हवा का फैलाव और उसे साफ करने की क्षमता मौसम पर निर्भर करती है। जब तक मौसम की स्थिति समान बनी रहती है, तब तक वायु गुणवत्ता भी लगभग एक जैसी रहती है, सिवाय उन इलाकों के जहाँ प्रदूषण फैलाने वाले स्रोत बेहद ज्यादा हैं।” विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली-एनसीआर में लंबे समय से बने प्रदूषण का मुख्य कारण मौसम का स्थिर रहना है। स्काईमेट (Skymet) के उपाध्यक्ष महेश पलावत ने बताया, “अक्टूबर के बाद से अब तक बारिश नहीं हुई है। इस दौरान कुछ ‘पश्चिमी विक्षोभ’ जरूर आए, लेकिन वे बेहद कमजोर रहे। इनसे केवल हवा में नमी बढ़ी और हवा की रफ्तार और धीमी हो गई, जिससे प्रदूषक वातावरण में जमा होते चले गए।”

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