उत्तर भारत के कई शहरों में प्रदूषण अब केवल पर्यावरण की नहीं, बल्कि जीवन की कीमत बनता जा रहा है। दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में बिगड़ती वायु गुणवत्ता का सीधा असर लोगों की सेहत और औसत आयु पर पड़ रहा है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले चार वर्षों में दिल्ली में लोगों की औसत आयु में लगभग 1.7 वर्ष की गिरावट दर्ज की गई है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ता वायु प्रदूषण, दूषित पानी और बदलती जीवनशैली इस गिरावट के प्रमुख कारण हैं। लगातार जहरीली हवा में सांस लेना फेफड़ों, हृदय और प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर कर रहा है, जिससे गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।

हाल ही में केंद्रीय बैंक ने अपनी सांख्यिकी पुस्तिका 2024-25 में औसत आयु (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) से जुड़े अहम आंकड़े जारी किए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015-19 की तुलना में 2019-23 के दौरान दिल्ली में औसत आयु में 1.7 वर्ष की गिरावट दर्ज की गई है, जबकि पंजाब में यह गिरावट दो वर्ष तक पहुंच गई। हरियाणा में भी औसत आयु 1.1 वर्ष कम हुई है। इस तरह औसत आयु में कमी के मामले में पंजाब के बाद दिल्ली दूसरे स्थान पर है। हालांकि, इस अवधि में राष्ट्रीय स्तर पर स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में औसत आयु 0.6 वर्ष बढ़ी है और राष्ट्रीय औसत आयु 70.3 वर्ष दर्ज की गई है।

रिपोर्ट के अनुसार, देश में औसत आयु के मामले में केरल शीर्ष पर बना हुआ है, जहां लोगों की औसत आयु 75.1 वर्ष दर्ज की गई है। वहीं, सबसे कम औसत आयु छत्तीसगढ़ में 64.6 वर्ष पाई गई है। आंकड़े राज्यों के बीच स्वास्थ्य सुविधाओं, जीवनशैली और पर्यावरणीय परिस्थितियों में बड़े अंतर को दर्शाते हैं।

हालांकि, वर्ष 2019 के बाद से लगातार गिरावट के बावजूद दिल्ली में औसत आयु अभी भी उत्तर प्रदेश, पंजाब सहित कई अन्य राज्यों से अधिक बनी हुई है। लेकिन रिपोर्ट में सबसे चिंताजनक पहलू यह बताया गया है कि बीते पांच से छह वर्षों के दौरान दिल्ली में औसत आयु में लगातार कमी दर्ज की जा रही है, जो भविष्य के लिए गंभीर चेतावनी मानी जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि प्रदूषण और जीवनशैली से जुड़ी समस्याओं पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया, तो यह गिरावट और गहरी हो सकती है।

आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा में वर्ष 2019-22 के दौरान औसत आयु 68.6 वर्ष थी, जो 2019-23 में बढ़कर 68.8 वर्ष हो गई। इस तरह बीते पांच वर्षों में राज्य में औसत आयु में 0.2 वर्ष की मामूली लेकिन सकारात्मक बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

उत्तर प्रदेश में औसत आयु में सबसे अधिक सुधार देखने को मिला है। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश में लोगों की औसत आयु 65.6 वर्ष से बढ़कर 68.0 वर्ष हो गई है। वर्ष 2015-19 की तुलना में 2019-23 के बीच उत्तर प्रदेश में औसत आयु में 2.4 वर्ष की वृद्धि दर्ज की गई, जो देश में सबसे ज्यादा है।

इसी तरह उत्तराखंड में औसत आयु 70.6 वर्ष से बढ़कर 71.3 वर्ष हो गई है, जबकि बिहार में यह 69.2 वर्ष से बढ़कर 69.3 वर्ष दर्ज की गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार, बेहतर चिकित्सा पहुंच और जीवनशैली में सुधार का सीधा असर लोगों की जीवन प्रत्याशा पर पड़ा है।

कई अन्य रिपोर्ट में दावा

हाल ही में जारी शिकागो विश्वविद्यालय की वर्ष 2025 की रिपोर्ट में भी यह दावा किया गया है कि भारत में वायु प्रदूषण के कारण औसत जीवन प्रत्याशा में 3.5 वर्ष तक की कमी आ रही है। रिपोर्ट के अनुसार, देश की बड़ी आबादी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के तय मानकों से कहीं अधिक प्रदूषित हवा में सांस ले रही है। इसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है, जिससे हृदय रोग, सांस संबंधी बीमारियों और कैंसर का खतरा तेजी से बढ़ रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि वायु प्रदूषण को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जाए, तो जीवन प्रत्याशा में उल्लेखनीय सुधार संभव है, खासकर दिल्ली जैसे शहरों में, जो जहरीली हवा से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। इस मुद्दे पर एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. संजय राय का कहना है, “मौजूदा दौर में केवल जीवनशैली ही नहीं, बल्कि हवा, भोजन और पानी तीनों ही प्रदूषित हो चुके हैं। हवा और पानी में कैंसर कारक तत्व पाए जा रहे हैं, जिसकी वजह से कम उम्र में ही कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां सामने आ रही हैं। ऐसे में प्रदूषण का जीवन प्रत्याशा घटने में बड़ा योगदान हो सकता है।”

धुंध की चादर में लिपटी दिल्ली

ये सर्वेक्षण आंकड़े ऐसे समय सामने आए हैं, जब देश की राजधानी दिल्ली घनी धुंध की चादर में लिपटी हुई है और जहरीली हवा लोगों का दम घोंट रही है। ऑनलाइन कम्युनिटी प्लेटफॉर्म लोकलसर्कल्स द्वारा किए गए एक सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। सर्वे में शामिल 28 प्रतिशत प्रतिभागियों ने बताया कि उनके परिवार, दोस्तों, पड़ोसियों या सहकर्मियों में कम से कम चार ऐसे लोग हैं, जो संभावित रूप से प्रदूषण से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, ये आंकड़े राजधानी में बिगड़ती वायु गुणवत्ता और उसके गंभीर स्वास्थ्य प्रभावों की ओर स्पष्ट इशारा करते हैं।

इन बीमारियों से जूझ रहे लोग

ये सर्वेक्षण आंकड़े ऐसे समय सामने आए हैं, जब देश की राजधानी घनी धुंध की चादर में लिपटी हुई है और जहरीली हवा लोगों का दम घोंट रही है। ऑनलाइन कम्यूनिटी प्लेटफॉर्म लोकलसर्कल्स के सर्वे में शामिल 28 प्रतिशत प्रतिभागियों ने बताया कि उनके परिवार, दोस्तों, पड़ोसियों या सहकर्मियों में कम से कम चार ऐसे लोग हैं, जो संभावित रूप से प्रदूषण से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं।

प्रतिभागियों के अनुसार, लंबे समय तक प्रदूषित हवा के संपर्क में रहने के कारण दमा, क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD), फेफड़ों को स्थायी क्षति, हृदयघात, स्ट्रोक और संज्ञानात्मक क्षमता में गिरावट जैसी गंभीर बीमारियां सामने आ रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य का नहीं, बल्कि एक बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का संकेत है, जिस पर तत्काल और ठोस नीतिगत कदम

498 तक पहुंचा AQI

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सोमवार को वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 498 तक पहुंच गया, जो ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है। शहर के 40 में से 38 मौसम निगरानी केंद्रों पर वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ दर्ज की गई, जबकि दो केंद्रों पर यह ‘बेहद खराब’ श्रेणी में रही। जहांगीरपुरी में AQI 498 रिकॉर्ड किया गया, जो राजधानी के सभी निगरानी केंद्रों में सबसे खराब स्थिति थी।

इससे एक दिन पहले, रविवार को दिल्ली का औसत AQI 461 तक पहुंच गया था, जो इस सर्दी का सबसे प्रदूषित दिन और दिसंबर महीने में वायु गुणवत्ता के लिहाज से दूसरा सबसे खराब दिन रहा। विशेषज्ञों के अनुसार, हवाओं की बेहद धीमी गति और कम तापमान के कारण प्रदूषक कण वातावरण में नीचे ही फंसे रहे, जिससे हालात और बिगड़ गए। सर्वेक्षणों के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर के बड़े हिस्से में अक्टूबर के अंत से ही वायु गुणवत्ता लगातार ‘बहुत खराब’ और ‘गंभीर’ श्रेणियों में बनी हुई है, जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।

चिकित्सा खर्चों ने भी बढ़ाई चिंता

सर्वेक्षण में चिकित्सा खर्चों को लेकर गंभीर चिंता भी सामने आई है। 73 फीसदी प्रतिभागी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि लगातार उच्च प्रदूषण के संपर्क में रहने पर वे अपने और परिवार के स्वास्थ्य देखभाल के खर्च को वहन कर पाएंगे या नहीं। वहीं, आठ फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि वे प्रदूषण के कारण दिल्ली-एनसीआर छोड़ने पर विचार कर रहे हैं। अधिकांश ने हालांकि कहा कि काम, पारिवारिक जिम्मेदारियों और अन्य मजबूरियों के कारण वे यहीं रहने को मजबूर हैं।

हालिया सर्वेक्षण में दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा, फरीदाबाद और गाजियाबाद के 34,000 से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया। ऑनलाइन कम्यूनिटी प्लेटफॉर्म लोकलसर्कल्स ने बताया कि वह सर्वेक्षण के निष्कर्षों को सरकारी हितधारकों के साथ साझा करने की योजना बना रहा है। प्लेटफॉर्म ने कहा कि वह सरकार से आग्रह करेगा कि प्रदूषण के स्रोतों को नियंत्रित करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएँ और प्रभावित आबादी के लिए स्वास्थ्य देखभाल सहायता उपायों पर गंभीरता से विचार किया जाए।

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