नक्सल क्षेत्रों में विकास के कई दावे अापने सुने होंगे और तस्वीरों में देखे भी होंगे, लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि यह नक्सल क्षेत्र के बदहाल विकास के खोखले दावे हैं. क्योंकि जिस गांव तक एंबुलेंस को पहुंचने के लिए सड़के न हो और एंबुलेंस स्टॉफ को खाट में मरीज को उठाकर लाना पड़े इसे कैसे बस्तर का विकास कहा जाएगा.

शिवा यादव. दोरनापाल. सुकमा जिले के दोरनापाल के जगरगुंडा इलाके में सड़के वर्षों से केवल कागजों में ही बन रही है. यही नक्सल क्षेत्र के बदहाल विकास का असली सच है. लेकिन इस सच का खामियाजा महलों और एसी कमरों में बैठकर योजना बनाने वाले अधिकारी, नेता, मंत्रियों को नहीं बल्कि ग्रामीणों को उठाना पड़ रहा है.

गांव में यदि कोई बीमार हो जाए, उसे अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस की जरुरत तो उसे एंबुलेंस से ले जाना संभव नहीं. क्योंकि बारिश के समय सड़कों में कीचड़-लद्दी इतनी होती है कि यदि गलती से एंबुलेंस या कोई गाड़ी अंदर भी चली गई तो वापस निकलने में उसके भी पसीने छुट जाएंगे. ऐसा ही कुछ कांकेरलंका क्षेत्र से माड़वी हूंगी नामक मरीज के साथ हुआ. वे अचानक बीमार हो गए, हालत इतनी गंभीर थी कि उन्हें एंबुलेंस से अस्पताल ले जाने की नौबत आई. ग्रामीणों ने 108 नंबर में फोनकर एंबुलेंस तो बुला ली, लेकिन एंबुलेंस के कर्मचारियों ने वहां की सड़कों की हालत देखी तो एंबुलेंस को अंदर गांव तक ले जाने का रिस्क नहीं लिया, क्योंकि उन्हें पता था कि यदि एंबुलेंस कीचड़ में फंस गई तो मरीज की हालत और गंभीर हो जाएगी और उसे समय पर इलाज नहीं मिलेगा.

लिहाजा एंबुलेंस के ड्राइवर ड्राइवर हेमंत व ईएमटी स्टॉफ अहमद गांव के अंदर तक पैदल गए और मरीज को खाट सहित अपने कंधे में लादकर एंबुलेंस तक लाए. इन दोनों कर्मचारियों ने मरीज की मदद कर उसे दोरनापाल के सरकारी अस्पातल तक पहुंचाया, जहां उन्हें समय पर इलाज मिल गया. लेकिन यदि एंबुलेंस कर्मचारियों की मरीज की मदद अपने कंधे में खाट सहित मरीज को उठाकर न करते तो शायद बिना इलाज मिले ही मरीज तड़पते रहता और उसकी आह दोरनापाल में ही दबकर रह जाती.