हरीश शर्मा, ओंकारेश्वर। दीपोत्सव का पर्व दिवाली आने में अब कुछ ही दिन शेष हैं। इसी बीच मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर, बड़वाह, सनावद, मोरटक्का, खेड़ी घाट, नावघाट खेड़ी सहित आसपास के तमाम गांव में महालक्ष्मी के दीपोत्सव के पर्व की तैयारियां जोरों शोरों से की जा रही है। इसे लेकर कुम्हारों ने चाक की रफ्तार भी तेज कर दी है।

नगर के कुम्हार मोहल्ला, पीली मिट्टी, दशहरा मैदान क्षेत्रों में करीब दस से ज्यादा परिवार अपने चाक पर मिट्टी के दीप को आकर देने में लगे हैं। प्रजापति समाज के लोगों ने बताया कि, दीपोत्सव की तैयारी को लेकर करीब तीन माह पहले से दीपक बनाने की तैयारी में जुटना पड़ता है। इसके लिए बड़ी दूर से नदी तालाबों के किनारे से अलग-अलग पीली और काली मिट्टी लाना पड़ती है। उसके बाद मिट्टी का घोल तैयार कर मिट्टी की गुदाई करके चाक पर दीपकों को बनाया जाता है। दीपकों को सुखाने के बाद लकड़ी कोयले की भट्टी पर उन्हें पकाया जाता है। व रंग रोगन कर तैयार किया जाता है। उन्होंने कहा कि, लेकिन इसके बावजूद दीपकों की कीमत बहुत कम मिलती है। दो रुपए का एक दीपक बेचने पर भी ग्राहक दस रूपए के दस दीपक मांगता है। लेकिन फिर भी 20 रुपए के 12 दीपकों के भाव रखे हैं।

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दीपोत्सव के इस महापर्व को लेकर नपाध्यक्ष राकेश गुप्ता ने कहा कि, दीपोत्सव दीपो का ही त्यौहार है। जैसा कि महालक्ष्मी इसकी मूल देवी है। हम लोग सभी सनातनी बहुत ही विधि विधान से पारंपरिक ढंग से पूजन करना चाहते है। इसमें इस बात का विशेष महत्व है। जो दीप मिट्टी के होते हैं वे पूजा के लिए पवित्र माना जाता है। उन्होंने कहा मेरा सभी सनातनियों से अनुरोध है कि, हमारे कुम्हार भाई जितनी मेहनत लगन व कला से मिट्टी के दीप बनाते हैं महालक्ष्मी पूजन में मिट्टी के ही दीपक का उपयोग करे।

सामाजिक कार्यकर्ता जितेंद्र सेन ने भी मिट्टी के दीपक का पूजन मे विशेष महत्व बताया है। सेन ने कहा कि, वर्तमान में आर्टिफिशियल दिए का चलन बहुत बढ़ गया है। लेकिन इस प्रकार के दिए से किसी का भी फायदा नहीं होता। पर्यावरण प्रकृति का भी काफी नुकसान होता है। हमारे पूर्वज हमें जो संस्कृति विरासत में दे गए हैं उसका पालन करना चाहिए। कुम्हार प्रजापति समाज के लोग बड़ी मेहनत करके दीपावली के पूर्व दीए बनाते हैं। इसलिए सभी लोगों से कुम्हार भाईयों से मिट्टी के दीपक खरीदने का अनुरोध किया है।

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समाप्त न हो जाए भारतीय संस्कृति


गांव शहरों में कम्हार प्रजापति समाज के लोग मिट्टी के दीए बनाते हैं। इसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। मिट्टी को लाना, छालना उसको फिर आटे की तरह गुंदना इसके बाद चक्र पर मिट्टी को चढ़कर एक-एक दिया बनाते हैं। लेकिन जब दूख होता है जब लोग बाजार में दिए खरीदने जाते मोलभाव करते हैं। प्रजापति समाज के लोगों का कहना है कि हम हमारे पूर्वजों के द्वारा हमें यह काय विरासत में मिला है। उन्हीं के बताए हुए मार्ग पर हम चल रह हैं वर्ना आज के इस आधुनिक युग में कौन इतनी मेहनत करता है।

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