सिंहदेव का इस्तीफा
बादल की गर्जनाओं के बीच इन दिनों छत्तीसगढ़ का मौसम बदला हुआ है. तेज बारिश हो रही है. जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है, इधर सूबे के सियासी हालातों ने भी करवट बदली है. गरज के साथ छींटे पड़ रहे हैं. फिलहाल हालात बूंदा-बांदी के हैं. मगर तेज आंधी के साथ सियासी सैलाब आने का रेड अलर्ट भी जारी है. कैबिनेट मंत्री टी एस सिंहदेव ने एक विभाग के भारसाधक मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. मंत्री पद से इस्तीफा देने का दृष्टांत छत्तीसगढ़ में है. रमन कैबिनेट के मंत्री रहे अमर अग्रवाल ने एक दफे मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि बाद में मंत्रिमंडल में उनकी वापसी हुई, तब फिर सरकार जाने तक पद पर बने रहे. मगर ऐसा कोई दृष्टांत नहीं है कि मंत्री ने अपने तमाम विभागों में से किसी एक विभाग से इस्तीफा दिया हो. मंत्रियों के विभागों में फेरबदल तो पहले भी होते रहे हैं, लेकिन मंत्री पद पर बने रहते हुए महज एक विभाग से इस्तीफा देने की राज्य की यह पहली घटना है. टी एस सिंहदेव ने प्रधानमंत्री आवास योजना में राज्यांश के आबंटन, कैबिनेट में प्रस्तुत पेसा नियमों को मंत्री की जानकारी के बगैर बदले जाने, मनरेगा से जुड़े मसलों को इस्तीफे का आधार बनाया है. इस इस्तीफे से एक नया दृष्टांत तैयार हो रहा है, लेकिन यहां सवाल संवैधानिक महत्व का है कि अब क्या? सुनते हैं कि मामला चूंकि टी एस सिंहदेव से जुड़ा है, ऐसे में आलाकमान से इस घटना की जानकारी साझा की जाएगी. इत्तेफाक से प्रदेश प्रभारी पी एल पुनिया रायपुर में ही है, जाहिर है मसले का हल ढूंढा जा रहा होगा. सियासी मौसम में आए इस बदलाव के बीच नदी (बीजेपी) उफान पर है. बयानों का बहाव तेज है. सियासत की आंधी तेज होने का अनुमान लगाया गया है. विधानसभा सत्र करीब है, ऐसे में माना जा रहा है कि सदन के भीतर ये मसला सियासी बाढ़ लेकर आ सकता है.
कांग्रेस भवन में नोटिस
उधर सरकार में खलबली मची है, तो इधर कांग्रेस संगठन में हालात जुदा नहीं है. भरी बैठक में मुख्यमंत्री-प्रदेश अध्यक्ष के बीच की तल्खी देखी गई. संगठन के कामकाज के तरीकों पर मुख्यमंत्री पहले ही आंखें तरेर चुके हैं. इन सबके बीच कांग्रेस भवन में संगठन के महत्वपूर्ण दायित्वों पर बैठे जिम्मेदारों के दरवाजों पर एक नोटिस चस्पा कर दिया गया है. बगैर पर्ची दाखिला नहीं होगा. कांग्रेस में इतना अनुशासन कभी नहीं रहा. अव्वल दर्जे की लोकतांत्रिक पार्टी रही है.इससे पहले तक बड़े नेताओं को जब आंतरिक बैठक करनी होती, तो हाथ जोड़कर लोगों से निवेदन किया जाता रहा कि भाई साहब कृपया बाहर चले जाए, बैठक करनी है. मगर अब तस्वीर बदल रही है. संगठन में अनुशासन लाया जा रहा है. कार्यकर्ताओं की सुनवाई संगठन के रास्ते ही सरकार में होती है, मगर नोटिस में लिख दिया गया है कि ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़े मामले नहीं सुने जाएंगे. बताते हैं कि दूर दराज से आने वाले कार्यकर्ताओं को बिठाने तक की व्यवस्था नहीं है, एक कप चाय तो दूर की बात. चुनावी सरगर्मियां तेज हो रही हैं. कार्यकर्ताओं की अनदेखी ठीक नहीं.
मंत्री की बेचारगी
जिले की जिम्मेदारी मिलते ही नए बने कलेक्टर हाल ही में मंत्री बंगले जाकर गुलदस्ता भेंट कर आए. गुलदस्ते के फूलों की ताजगी बयां कर रही थी कि मंत्री को अब उनका रुतबा मिलेगा. उनका पिछला अनुभव बहुत पीड़ादायक रहा था. मगर हालात वहीं ढाक के तीन पात की तरह रहे. बेचारगी कायम रही. दरअसल 13 जुलाई को ओएसडी ने कलेक्टर को चिट्ठी लिखकर जानकारी दी कि मंत्री 15 जुलाई को समीक्षा बैठक लेंगे. कलेक्टर कार्यालय ने बाकायदा बैठक की तैयारी भी कर ली. ऐन वक्त पर बैठक रद्द करने की चिट्ठी जारी हो गई. चिट्ठी में बैठक रद्द करने की कोई वजह नहीं बताई गई. कहते हैं कि मंत्री जिले की एक विधानसभा से विधायक हैं. जिले का प्रभार भी उनके पास नहीं है. प्रशासनिक दृष्टिकोण आड़े आ गया. मंत्री समीक्षा बैठक नहीं ले पाए. सुनते हैं कि मंत्री अपने भाग्य को कोस रहे हैं कि मंत्री हैं, लेकिन चल नहीं पाती. विपक्ष के विधायक थे, तो दबंगई भी थी और मजाल था कि कोई कलेक्टर ना सुने. हालांकि एक दफे तब भी कलेक्टर से कहासुनी हो गई थी. अब लोग कह रहे हैं कि कलेक्टरों के साथ एक्सपीरियंस ठीक नहीं है.
राम की शरण
पाठ्यपुस्तक निगम के पूर्व जीएम ने राम की शरण ले ली है. चर्चाओं में सुना गया है कि वह कलयुग के वाल्मीकि बनने के रास्ते आगे बढ़ रहे हैं. नए नाम के साथ इन दिनों आध्यात्मिक चैनलों में प्रवचन करते दिखाई देते हैं. प्रवचन सुनने भक्तों की भीड़ भी जुट रही है. कहते हैं कि राजनीति से लेकर प्रशासनिक ओहदे पर बैठे कई चेहरे भक्त मंडल में शामिल हैं. विवादित भी रहे हैं और विवादों से ज्यादा चर्चित भी. सात विधायकों ने एक दफे इनकी शिकायत सीधे सोनिया गांधी से की थी. पद से हटे तो हटे, ईओडब्ल्यू में एफआईआर की रसीद भी कट गई. जाहिर है उदास मन के बीच अब उनका बेड़ा पार राम ही लगाएंगे, सो भजन जप रहे हैं. राम जी करेंगे बेड़ा पार, उदासी मन काहे को डरे…वैसे विवादों के बाद भी सफल होने के दो ही रास्ते हैं. एक राजनीतिक और दूसरा आध्यात्म. इन्होंने आध्यात्म को चुना. अध्यात्म के रास्ते राजनीति जल्द नजदीक आ जाती है.
बवाल ?
मुंगेली में शिक्षा विभाग ने एक एप लॉन्च किया है,जिसका नाम TSMS है. ऑनलाइन अटेंडेंस देनी हो या फिर छुट्टी लेनी हो, यही एप एकमात्र रास्ता है. डीईओ ने नवाचार की मंशा से एप बनाया था. सोचा था तारीफ मिलेगी, मगर अब यही एप विवादों की वजह बन गई है. जिले के शिक्षकों ने डीईओ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. शिक्षकों ने आरोप लगाया है कि सरकार के नियमों को दरकिनार कर डीईओ मनमानी कर रहे हैं. अपना अलग कानून चला रहे है. विवाद बढ़ा तो डीईओ ने व्हाट्स एप ग्रुप पर अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए लिखा कि क्या मैं कोई नवाचार करना बंद कर दूं? डीईओ ने सोचा रहा होगा कि सांत्वना के दो शब्द कोई कहेगा. ग्रुप में एक टिप्पणी आई कि कामचोर शिक्षक ही नवाचार का विरोध करेगा. इस टिप्पणी के बाद मामला बिगड़ गया. अब खुद को निकम्मा समझ रहे शिक्षकों की बड़ी फौज ने बवाल काट दिया है. सुनाई पड़ा है कि मामला पुलिस से लेकर ऊपर तक ले जाने की तैयारी की जा रही है…