ईएनसी पर किसकी कृपा?
एक बड़े निर्माण विभाग का हाल देखिए. भ्रष्टाचार के आरोप में एक जांच एजेंसी की जद में आने के बावजूद एक अधिकारी को ईएनसी बना दिया गया. जबकि तीन-चार सीनियर अधिकारी थे, जो इस पद के दावेदार थे. हुनरमंद रहे होंगे, जो सुपरसीड कर उन्हें बड़ी जिम्मेदारी से नवाजा गया. इस ईएनसी के भ्रष्टाचार से जुड़ा एक सवाल विधानसभा में पूछा गया, तब जवाब में बताया गया कि ना तो ईओडब्ल्यू-एसीबी और ना ही पुलिस की किसी भी तरह की जांच चल रही है. जबकि दूसरी दफे इसी तरह के एक सवाल के जवाब में स्पष्ट किया गया कि भ्रष्टाचार के मामले में एक जांच लंबित है. सुनने में आया है कि अब विभाग में ईएनसी का एक नया पद क्रिएट किया जा रहा है. कहते तो यहां तक है कि इस नए पद के क्रिएट किए जाने पर मंत्री भी सहमत नहीं थे, मगर इस विभाग में तो ईएनसी मंत्री से बड़े माने जाते हैं. विभागीय सूत्र तो इस बात की भी तस्दीक करते हैं कि मंत्री के कहे को भी ईएनसी अनसुना कर जाते हैं. मालूम नहीं किसकी कृपा इस अधिकारी पर बरसी, जो अब दूसरों पर बरस रहे हैं.
स्विमिंग पूल और जकूजी
एक आईएफएस अफसर थे, जिन्होंने अपने सरकारी बंगले में 50 लाख रुपए का स्विमिंग पूल बनाकर अपनी तैराकी के जौहर बिखेरे थे, पूल पार्टी की थी. अब एक दूसरे आईएफएस का स्विमिंग पूल प्रेम फूट पड़ा है. सुनाई पड़ा है कि नवा रायपुर के अपने निजी बंगले में स्विमिंग पूल बना रखा है. जकूजी भी है. जकूजी बाथ से शरीर का मसाज लेने के बाद स्विमिंग पूल में तरोताजा होते हैं. वैसे निजी घर में ये सब तामझाम बुरा नहीं है, मगर सरकारी नौकरी में ऐसी इलीट क्लास वाली सोच गाॅसिप की वजह तो बनेगी ही. बहरहाल ये वहीं चर्चित साहब हैं, जिन्हें घर खरीदने का शौक है. बेहिसाब घर खरीदते चले जा रहे हैं. बताते हैं कि नवा रायपुर में ही इनके चार बंगले और चार फ्लैट हैं. अच्छी पोस्टिंग है. साजो सामान जुटाना बड़ी बात नहीं है.
उधर छापा, इधर काम
अब ये मजाक नहीं तो और क्या है. सीबीआई और ईडी ने जिस कंपनी के खिलाफ छापे की कार्रवाई की, उसी कंपनी को केंद्र सरकार ने 1500 करोड़ रुपए का ठेका दे दिया. जांजगीर चाम्पा में एनएच की सड़क यही कंपनी बना रही है. बताते हैं कि सौ करोड़ रुपए की लागत लगाकर कंपनी ने बैंक से करीब 1500 करोड़ रुपए फाइनेंस करा लिया. डंके की चोट पर कंपनी मनमानी कर रही है. राज्य के नेता कुछ कहें, तो कंपनी नाक भौंह सिकोड़ती है. बताया जा रहा है कि एनएचएआई ने राखड़ का काम पूरी तरह से इसी सड़क बनाने वाली कंपनी को दे रखा है. राखड़ कहां से उठाया जाएगा, ये तय एनएएचआई खुद कर रही है. जानकार बताते हैं ये एक किस्म का बड़ा घपला है. कहते हैं कि एनएएचआई के अधिकारी इस ठेके की आड़ में मलाई खा रहे हैं. वैसे यह मालूम करना चाहिए कि यह विवादित कंपनी आखिर है किसकी? जिस पर एनएचएआई ने इतनी मेहरबानी दिखाई कि सीबीआई-ईडी के छापे को भी नजरअंदाज कर दिया.
छापा और बीजेपी
अभी-अभी की बात है कि जब मुख्यमंत्री ने एक बयान में कहा था कि केंद्र सरकार राज्य सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है. सेंट्रल एजेंसीज का दुरुपयोग किया जा रहा है. इस बयान को एक पखवाड़ा भी नहीं बीता था कि इंकम टैक्स के सक्रिय होने की खबर आ गई. कहीं-कहीं छापा मारा गया है. राजनीतिक गलियारों में इस छापे को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं. सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि सेंट्रल एजेंसीज का छापा गैर बीजेपी शासित राज्यों में ही क्यों दिखाई पड़ता है. खैर, अब इस छापे में कुछ मिलेगा या नहीं, ये बाद की बात है. मगर ध्यान खींचने वाली बात कुछ और है. सुनने में आया है कि बीजेपी संगठन के एक बड़े नेता की गहरी दिलचस्पी इस छापे में देखी गई है. कहा जा रहा है कि दिल्ली में बैठकर इंकम टैक्स के भोपाल स्थित दफ्तर से टोह ली जा रही है. ये मालूम करने की कोशिश जारी है कि छापे में मिला क्या? नेताजी की दिलचस्पी इस छापे पर इतनी गहराती चली गई कि उनके जानने की जिज्ञासा हवा में तैरने लगी.
कलेक्टर तबादला
चुनाव में अब महज डेढ़ साल का ही वक्त बचा है, जाहिर है एक बड़ी प्रशासनिक सर्जरी होनी ही थी. 37 आईएएस के हालिया तबादले में 19 जिलों के कलेक्टर बदल दिए गए. तबादला तय था, मगर इतना चौंकाने वाला होगा, ये तय नहीं था. कई नाम ऐसे हैं, जिन्हें लेकर अलग तरह की चर्चाएं थी. मगर जिम्मेदारी मिली, तो बड़े से छोटे जिले पर सिमटा दिया गया. जाहिर है इसके पीछे प्रशासनिक-राजनीतिक समीकरण होगा. वैसे कई चेहरे हैं, जिन्हें बड़ा जिला देकर उनके रुतबे को बढ़ाया गया है. सुकमा संभाल रहे विनीत नंदनवार को दंतेवाड़ा की जिम्मेदारी सौंपी गई है. दंतेवाड़ा कई मायनों में ऐसा जिला है, जिस पर देश की नजर होती है. यहां इनोवेशन के लिए स्कोप ऐसा है कि सीधे प्रधानमंत्री अवार्ड का रास्ता खोल देता है. दीपक सोनी के रहते डेनेक्स ने इंटरनेशनल मार्केट छुआ. कोंडागांव की कलेक्टरी संभालते हुए पुष्पेंद्र कुमार मीणा ने हवाई उड़ान भरी और सीधे वीवीआईपी जिला दुर्ग पहुंच गए. कोरबा में मंत्री-कलेक्टर के बढ़ते विवाद के बीच रानू साहू को बड़ा औद्योगिक जिला रायगढ़ मिल गया, तो सरगुजा संभाल रहे संजीव झा कोरबा पहुंच गए. कोरबा मिलने का मतलब साफ है कि झा सरकार की गुड बुक वाले अफसर हैं. दुर्ग संभाल रहे सर्वेश्वर भूरे को राजधानी की कमान सौंपी गई है. रायपुर संभाल पाना अच्छे-अच्छे के बस की बात नहीं है, शायद दुर्ग जैसे वीआईपी जिले में रहते हुए भूरे प्रशासनिक कामकाज के साथ राजनीतिक हालातों को संभालने की योग्यता लेकर आ रहे हैं. तभी तो सरकार ने ये जिम्मेदारी सौंपी है. इधर बिलासपुर की कलेक्टरी पाकर सौरभ कुमार का तनाव कुछ कम हुआ होगा. भीम सिंह और सारांश मित्तर को लेकर पहले से ही चर्चा थी कि उन्हें राजधानी में बड़ा प्रशासनिक ओहदा दिया जाएगा. उधर कांकेर जिले की कलेक्टर बनाई गई डाॅ.प्रियंका शुक्ला की फील्ड में वापसी हुई है. जशपुर में रहते हुए एजुकेशन के क्षेत्र में प्रियंका की पहल ने नतीजे दिए थे, जाहिर है उनका यह प्रयोग अब कांकेर में देखने को मिलेगा. रजत बंसल को लेकर चर्चाएं अलग किस्म की थी. कभी सुनाई पड़ा कि उन्हें रायपुर की कलेक्टरी मिलेगी, कभी सुनाई पड़ा कि सीएम सेक्रेटरिएट लाए जाएंगे, मगर तबादला सूची देख लग रहा है कि दिल्ली अभी दूर है. बस्तर में रहते हुए रजत ने ऐसा काम किया था कि खुद मुख्यमंत्री को सार्वजनिक तौर पर बधाई देनी पड़ी. जांजगीर चाम्पा में बोरवेल में गिरे राहुल को बचाने वाले मिशन की अगुवाई करने वाले जितेंद्र शुक्ला के तबादले ने चौंकाया. मुंगेली में छोटी पारी खेलने वाले गौरव सिंह तबादले के बाद भी खुश होंगे. डीएमएफ संपन्न जिला बालोद की कमान मिली है. कुछ नहीं से कुछ बेहतर. काम दिखाने के ज्यादा मौके मिलेंगे. राजनांदगांव कलेक्टर रहते हुए तारन प्रकाश सिन्हा सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं पर फोक्स्ड रहे. केंद्र सरकार की सराहना हासिल की. अब जांजगीर तबादले के बाद अपने गृह जिले के बेहद नजदीक हो गए हैं. कांकेर के बाद सीधे बस्तर की जिम्मेदारी मिलना चंदन कुमार के लिए बड़ी बात है. सरकार का भरोसा बढ़ा होगा, जो बस्तर मिला. बलौदाबाजार भाटापारा से डोमन सिंह को राजनांदगांव भेजा गया है. प्रमोटी कलेक्टर के तौर पर यह उनका सातवा जिला होगा. डोमन इकलौते चेहरे होंगे, जिन्हें पिछली सरकार से लेकर अब तक लगातार कलेक्टरी मिल रही है. राजनांदगांव राजनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण है.
महीने भर में क्या बदला?
भेंट मुलाकात के दौरान सूरजपुर गए मुख्यमंत्री ने ग्रामीणों की शिकायत के बाद फौरन जिला पंचायत सीईओ रहे राहुल देव को हटा दिया. जांजगीर चाम्पा में अपर कलेक्टर बनाकर भेज दिया गया. मगर महीने भर बाद ही राहुल को जब कलेक्टरी मिली, तो कईयों की आंखें चौड़ी हो गई. सोशल मीडिया पर खूब बवाल कटा. लोगों ने पूछा कि महीने भर में क्या बदल गया? खुद मुख्यमंत्री ने जिसे हटाया हो, उसे सीधे कलेक्टरी कैसे मिल गई? हालांकि प्रशासनिक महकमे से मिली जानकारी कहती है कि जांजगीर चाम्पा में बोरवेल में गिरे राहुल को बचाने की कवायद के दौरान राहुल देव ने खूब मेहनत की. जितेंद्र शुक्ला के हमकदम बने. अब लोग कह रहे हैं कि राहुल को राहुल ने बचाया. कैसे, आप सोचिए….