Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128

बादाम

एक मंत्री जी को गहरी चोट लग गई है. दिल जख्मी हुआ है. रह रहकर कराह उठते हैं. एक दिन अपने कुछ करीबियों के साथ खाने की मेज पर टंगड़ी कबाब खींच रहे थे कि अचानक उनका दर्द छलक उठा. आंखों में आंसू आ जाना बस बाकी रह गया था. मेज पर बैठे लोग, करते भी तो क्या करते, सिवाय सांत्वना देने के… मंत्री ने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि जिन अफसरों पर उन्होंने आंख बंद कर भरोसा किया था, उन्होंने ही पीठ पर छुरा घोंप दिया. शिकवे शिकायतों के बाद सरकार ने जब उन अफसरों का बोरिया बिस्तर विभाग से समेट दिया, तब मालूम पड़ा कि उन्हें महज मूंगफली खिलाई जा रही थी और असल बादाम खुद अफसर छटक रहे थे. मंत्री बोले, बड़ा नुकसान हो गया भाई. अब इसकी भरपाई नहीं हो सकती. मंत्री ने तब और अपनी किस्मत को कोसना शुरू कर दिया, जब विभाग में आए नए साहब की ऊंची कालर उनके मंसूबों पर पानी फेरती नजर आई. बहरहाल मंत्री जी टंगड़ी कबाब जरूर खींचते हैं, लेकिन हैं, रामजी के पक्के भक्त. अब राम-राम जप रहे हैं. इस उम्मीद के साथ कि राम जी उनका बेड़ा पार लगाएंगे और उन्हें प्रसाद में बादाम मिल पाएगा.

पॉवर सेंटर- कट गई लाइन… इंस्पेक्टर… मुख्य सूचना आयुक्त!… जलवा… तस्वीर कैसी?…-आशीष तिवारी

झटका 

एक मंत्री जी के अधीनस्थ ने एक वाक्या साझा करते हुए बताया कि पिछले दिनों विभाग की समीक्षा के बाद मंत्री जी ने विभाग में नए-नए आए साहब से कहा कि किसी विषय पर उन्हें उनसे चर्चा करनी है. मंत्री ने जब यह बात कहीं, तब विभाग की समीक्षा बैठक खत्म ही हुई थी. सभी जरूरी विषयों पर चर्चा खत्म हो चुकी थी. साहब इस नई चर्चा का ”तात्पर्य” ढूंढने लगे. वह इस ”तात्पर्य” को तुरंत ढूंढ नहीं पाए, मगर मंत्री जी से इतना जरूर कह दिया कि 12 बजे मेरे आफिस में चर्चा कर लेते हैं. मंत्री के पीए का ‘अफसरों को इतना कहने भर से कि मंत्री जी याद कर रहे हैं’. अफसर दौड़े-दौड़े आ जाते हैं. यहां खुद मंत्री के कहने पर साहब उन्हें वक्त बता रहे हैं. यह सुनते ही मंत्री जी को 440 वोल्ट का झटका लग गया. नए साहब कायदे के अफसर हैं. अपने तौर तरीकों से काम करने वाले. उन्हें इन सबसे क्या ही फर्क पड़ जाएगा. बहरहाल सरकार अपनी साख को मजबूत करने में जुट गई है. इसलिए कायदे के अफसरों की तैनाती महत्वपूर्ण जगहों पर की जा रही है. फिर भला इससे मंत्रियों का दिल टूटे या उम्मीद….सरकार को अपनी साख की चिंता ज्यादा है. 

ग्रहण

मंत्रिमंडल विस्तार पर बार-बार ग्रहण लग रहा है. पिछले हफ्ते विस्तार होने की खबर जैसे ही उछली थी, हर कोई मानकर चल रहा था कि इस दफे हो ही जाएगा. मगर हाल जस का तस रहा. सरकार में बतौर मंत्री अपनी जगह देख रहे विधायकों की स्थिति उस खरगोश की तरह हो गई है, जिसे गाजर दिखाकर मैराथन दौड़ाया जा रहा है. बेचारा कूद कूद कर थक चुका है. एक नेता ने टिप्पणी करते हुए कहा कि खरगोश मैराथन दौड़ रहा है और क्या पता कि रेस में कछुआ जीत जाए. राजनीति में अक्सर यह होता रहा है कि जिसके नाम का हल्ला मचता है. दौड़ में वह पिछड़ जाता है. समीकरण तेजी से बदल जाते हैं. खासतौर पर तब जब नाम जोर-शोर से उछला हो. कहते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री के निधन की खबर आ गई थी, इसलिए प्रक्रिया टल गई. अब सुना जा रहा है कि नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी होने के पहले मंत्रिमंडल विस्तार कर लिया जाएगा. 

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फेरबदल

संभावित मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही मंत्रियों के विभागों में भी फेरबदल होगा. पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में आरटीओ में हुई कारस्तानी सामने आने के बाद यह तय माना जा रहा है कि सूबे के मुखिया परिवहन विभाग छोड़ देंगे. वैसे भी इस विभाग में ज्यादा कुछ है नहीं, मगर ढोल इतना पीट लिया जाता है कि फिजूल में बदनामी हो जाती है. फिलहाल सरकार अब तक बचकर चल रही है. कोई बड़ा लांछन लगा नहीं है. मगर मध्यप्रदेश की कहानी सबक है. वैसे भी ऊंचाई पर खड़े होकर यदि कहीं दूर गड्ढा दिखाई दे रहा हो, तब रास्ता बदल देना चाहिए. इसी तरह आबकारी भी विवादों का विभाग माना जाता रहा है. पूर्ववर्ती सरकार तो बेहोश ही हो गई थी. दाग धोने के इरादे से भले ही मुखिया ने इस विभाग को अपने अधीन रख लिया था, मगर अब इसे छोड़ने में ही भलाई है. जांच वांच तो चलती रहेगी. नीचे बैठे मातहत कब कैसा गुल खिला दे कोई नहीं जानता. मंत्रालय स्तर पर सख्ती बरती जाती है, मगर नीचे आते-आते वहीं ढाक के तीन पात वाली स्थिति दिखती है. चर्चा यह भी है कि कुछ मंत्रियों से अहम पोर्टफोलियो वापस लिए जा सकते हैं.  

असमंजस 

छत्तीसगढ़ कांग्रेस में घर वापसी को लेकर बनाई गई कमेटी के नेता जोगी परिवार की वापसी को लेकर असमंजस में है. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पूर्व उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव. कहते हैं कि दोनों ही नेता सहमत नहीं है. अहम बात यह है कि ना तो बघेल और ना ही सिंहदेव इस कमेटी का हिस्सा है, मगर दोनों नेता अपनी पार्टी में वजनदार हैं. उनकी राय के इतर कमेटी कोई फैसला ले ले, यह मुमकिन नहीं. ऐसे में जोगी परिवार की घर वापसी कहे या जेसीसीजे का कांग्रेस में विलय फिलहाल अधर में लटका दिखता है. दिल्ली को अपना वीटो लगाना होगा, शायद तब कोई रास्ता निकल सके. 

पॉवर सेंटर : इश्क…जूता…पीएससी…एनजीओ…डीजीपी की दौड़…स्ट्राइक रेट… रायपुर दक्षिण कौन जीता?- आशीष तिवारी

कार

डीईओ को हल्के में ना लें. बड़े करामाती होते हैं. कुछ अरसा पहले विधानसभा में लगे एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया था कि फिनाइल, झाड़ू, लैब के सामानों की करोड़ों रुपए की खरीदी कर ली गई थी. कुछ खरीदी गैर जरूरी थी. इससे डीईओ का मिजाज समझा जा सकता है. अब सुनाई पड़ा है कि हाल ही में एक जिले में प्रमोशन के बाद प्रधानपाठकों की हुई पोस्टिंग में डीईओ साहब ने चमचमाती कार खड़ी कर ली है. अब इस पोस्टिंग में उनकी भूमिका कितनी थी यह वही जाने. मगर पूरे जिले में उनकी ‘कार’ चर्चा में है. शायद डीईओ भूल गए थे कि वह अपने इलाके में जिस विभाग की अगुवाई कर रहे हैं ये विभाग सूबे के विभाग के असल मुखिया की अगुवाई में चल रहा है.