Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128
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सतर्क रहें !: ‘पॉवर सेंटर’ में अफसरों का प्रेम पुराण लिखना उनकी निजी जिंदगी में दखल देना नहीं है. मकसद सिर्फ इतना है कि काबिल अफसर अपनी काबिलियत का लोहा अपने काम से मनवाए. वरना कई अफसर हैं, जो प्रेम जाल में फंसकर ब्लैकमेलिंग का शिकार होते रहे हैं. भूपेश सरकार के वक्त एक आईएएस ले देकर इस मुसीबत से बाहर आए थे. वह जब एक जिले के कलेक्टर थे, तब उन्होंने किसी की सिफारिश पर एक मोहतरमा को डेली वेजेस पर नौकरी पर रख लिया था. मोहतरमा उनकी बेहद करीबी हो गईं थी. प्रेम की दो-चार बातें होती थी. तब कलेक्टर साहब ने अपने लिए एक नया मोबाइल फोन खरीदा था. उन्होंने अपना पुराना मोबाइल फोन उस मोहतरमा को तोहफे दे दिया था. बस मोबाइल से डाटा डिलीट करना भूल गए थे. कलेक्टर का सारा कच्चा चिट्ठा बाहर आ गया था. प्रेम से भरे मैसेज भी. तबादले में कलेक्टर दूसरे जिले पहुंच गए. मोहतरमा वहीं रही. कलेक्टर ब्लैकमेल होने लगे. बात बढ़ती देख, उन्होंने झिझक के साथ अपने पुराने जिले के एसपी से सारा वाक्या साझा किया. एसपी ने मोहतरमा को बुलाकर समझाइश दे दी. कलेक्टर की मौजूदगी में मोबाइल फोन से डाटा डिलीट कराया गया. बंद कमरे से शुरू हुई बात. बंद कमरे में खत्म हो गई. इस घटना के चश्मदीद गिनती के लोग रहे. खुद कलेक्टर, मोहतरमा, एसपी और चंद सिपाही. अफसरों की कुछ घटनाएं और भी हैं, जिनकी खबर सुर्खियां बनती रही है. एक सीनियर आईएएस अफसर कहते हैं कि सरकार की नजर में अफसरों का ‘काम’ दिखना चाहिए. दूसरी चीजें नहीं. इसलिए जरूरी है कि अफसर सतर्क रहें!

प्रमोशन

राज्य प्रशासनिक सेवा के 14 अफसरों का प्रमोशन हो गया. ये सभी अफसर आईएएस बन गए. यूपीएससी को भेजी गई ग्रेडेशनल लिस्ट में शामिल नामों में सीनियरिटी के बावजूद सौम्या चौरसिया, आरती वासनिक और तीर्थराज अग्रवाल अलग-अलग कारणों से आईएएस बनने से चूक गए. इसका फायदा 2010 बैच के सौमिल रंजन चौबे और वीरेंद्र बहादुर पंच भाई को हुआ. सौम्या चौरसिया कोल घोटाला मामले में जेल में बंद है. आरती वासनिक का नाम पीएससी घोटाला में सामने आया है. आरती के खिलाफ एफआईआर दर्ज है. रायगढ़ में भू अर्जन के एक मामले की चल रही जांच में सरकार ने हाल ही में तीर्थराज अग्रवाल को क्लीन चीट दी है, लेकिन हाईकोर्ट में लंबित एक मामले की वजह से वह चूक गए. कहावत है कि किसी का दुर्भाग्य किसी का सौभाग्य हो जाता है. ऐसा ही कुछ होता दिख रहा है. 

ग्रहण

इधर राज्य प्रशासनिक सेवा के 2010 बैच तक के अफसर आईएएस प्रमोट हो रहे हैं, उधर राज्य पुलिस सेवा के अफसरों का कोई खैरख्वाह नहीं. उन्हें पूछने वाला तो दूर, लगता है उनके प्रमोशन के मसले की तरफ कोई झांकना भी नहीं चाहता. ले देकर 1998 बैच के प्रफुल्ल ठाकुर और 2000 बैच के विजय पांडेय हाल ही में आईपीएस प्रमोट हुए थे. राज्य प्रशासनिक सेवा से चयनित डिप्टी कलेक्टर 12-13 साल में आईएएस प्रमोट हो जाते हैं, मगर राज्य पुलिस सेवा के अफसरों को आईपीएस प्रमोट होने में 22-23 साल लग रहे हैं. मानो उनके हाथ की प्रमोशन की लकीर धूंधली पड़ गई हो. उदाहरण के लिए राज्य प्रशासनिक सेवा के 2005 बैच के अफसरों को सरकार ने कलेक्टर बनाया है, मगर इसी बैच के राज्य पुलिस सेवा के अफसर अब भी एडिशनल एसपी के पद पर हैं. जरा कल्पना करें कि एक जिले में एक ही बैच का कलेक्टर और एडिशनल एसपी तैनात हो. तब वहां की तस्वीर क्या होगी? कलेक्टर को एडिशनल एसपी सैल्यूट ठोकेगा. साहब जय हिंद… कल तक ‘रे’ ‘बे’ ‘तू’ कहने वाले अचानक से सैल्यूट पर आ जाएंगे. इधर राज्य पुलिस सेवा से चयनित डीएसपी भी कुछ सालों में प्रमोट हो रहे हैं. सीनियर अफसरों के कंधों पर सजा अशोक चिन्ह, जूनियर के कंधों पर भी सज रहा है. माने उनकी सरकारी हैसियत एक बराबर हो गई है. राज्य प्रशासनिक सेवा और राज्य पुलिस सेवा के अफसरों के प्रमोशन में आए इस फासले को मिटाने अब सरकारी पहल जरूरी लगती है. रही बात कैडर रिव्यू की, तो सरकार के पास पर्याप्त दलील है. नक्सल प्रभावित राज्य में आईपीएस कैडर बढ़ाया जाना कितना मुश्किल होगा? वैसे भी डबल इंजन की सरकार में सब कुछ मुमकिन लगता है. राज्य पुलिस सेवा के अफसरों के आईपीएस अवार्ड पर लगे ग्रहण को दूर करने सरकार को कुछ उपाय ढूंढना चाहिए. 

जांच 

शराब घोटाला मामले में ईओडब्ल्यू की जांच में तेजी आई है. हाल ही में ईओडब्ल्यू ने छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कार्पोरेशन में अलग-अलग वक्त पर एमडी रह चुके दो आईएएस समेत तीन अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17 ए के तहत जांच की अनुमति मांगी है. खबर है कि मुख्यमंत्री से जांच की अनुमति ली जा चुकी है. जाहिर है अब इन अफसरों को ईओडब्ल्यू पूछताछ के लिए तलब करेगी. कहा जा रहा है कि शराब दुकानों में मैनपावर मुहैया कराने वाली एजेंसी को किए जाने वाले भुगतान में बड़ी गड़बड़ी सामने आई थी. ईओडब्ल्यू की पूछताछ में मैनपावर मुहैया कराने वाली एजेंसी ने यह माना है कि अफसरों की जेब गर्म की गई थी. अब अफसरों से पूछताछ होगी तो घोटाले की कई कलई खुलकर बाहर आ सकेगी.  

कमाल के सीएमएचओ!

सीएमएचओ साहब ने कमाल कर दिया. एक निजी आयोजन में अपने मेहमानों के खानपान की खूब चिंता की. मेहमानों को पोषण युक्त आहार मिल सके, इसलिए पोषण पुनर्वास केंद्र के खानसामा की तैनाती कर दी. तीन दिनों तक खानसामा सीएमएचओ साहब के मेहमानों की मेहमाननवाजी करता रहा. इधर धंस चूकी आंखें, सिकुड़ चुके चेहरे, हाथों से बाहर झांक रही बेतरतीब नसे और बेजान शरीर के साथ पोषण पुनर्वास केंद्रों में रह रहे मरीज करते भी तो क्या करते. सीएमएचओ साहब को जब इस बात का इल्म हुआ, तब आनन-फानन में उन्होंने जिला अस्पताल में मरीजों को बंटने वाला खाना पोषण पुनर्वास केंद्रों में भिजवाने की व्यवस्था कर दी. पोषण पुनर्वास केंद्र का खानसामा तब तक सीएमएचओ साहब की सेवा में रहा, जब तक उनके मेहमानों की विदाई नहीं हो गई. मेहमानों ने बदहजमी की हालत तक पोषण युक्त खाना खूब खाया. सेहत बिगड़ने की स्थिति में सरकारी गोलियां थी ही. फिक्र की कोई बात ना थी. सीएमएचओ दफ्तर में उनके मातहतों के बीच की एक चर्चा में यह भी सुनाई पड़ा है कि सीएमएचओ साहब खाने और खिलाने के शौकीन हैं. आधा खोखा खिलाकर ही उन्होंने कुर्सी हथियाई है. मरीजों की फिक्र से दूर उनका पूरा जोर सूत समेत कमाई करने में है. हर फाइल पर वह डंडी मारकर बैठ जाते हैं. दो टूक कहते हैं कि, इसमें मेरा क्या दोष? दोष तो सिस्टम का है, जिसने मुझे इसी सिस्टम से भेजा है. सीएमएचओ साहब रेत से भी तेल निकालने का हुनर रखते हैं. पिछले दिनों उन्होंने नियम कायदों को धता बताते हुए एक उप स्वास्थ्य केंद्र में एक पद पर रेगुलर भर्ती कर दी. शिकायत हुई. मामला फूटा, तब कलेक्टर ने आंखे तरेरी. भर्ती निरस्त कर दिया गया. सीएमएचओ साहब ने दर्जन भर लोगों को नियम विरुद्ध प्रमोट कर दिया. कोर्ट कचहरी हुई. अब सुनते हैं कि आला अफसरों ने उनके खिलाफ जांच बिठा दी है. 

कौन बनेगा मंत्री?

साय मंत्रिमंडल विस्तार में कौन बनेगा मंत्री? (1) गजेंद्र यादव (2) किरण देव (3) राजेश मूणत (4) अजय चंद्राकर (5) धरमलाल कौशिक (6) अमर अग्रवाल (7) सुनील सोनी…पद दो हैं और दावेदारों की सूची हर दिन बढ़ रही है. गजेंद्र यादव की दावेदारी शुरू से मजबूत रही है. राज्य में ओबीसी वर्ग में साहू समाज के बाद सबसे ज्यादा आबादी वाला समाज यादवों का है. सियासत की बदलती धुरी में कुर्मियों की जगह यादवों को देने खूब जोर आजमाइश चल रही है. दूसरे पद के लिए किरण देव की दावेदारी पर मजबूत नेता मजबूती से मुहर लगा रहे हैं. बाकी नाम जिन-जिन खेमों से जुड़े हैं, वहां से उनकी पैरवी की खबर है. मसलन रमन खेमे से आने वाले राजेश मूणत और धरमलाल कौशिक हैं. बृजमोहन खेमे से अजय चंद्राकर और सुनील सोनी. अमर अग्रवाल खुद ही एक खेमा हैं. भाजपा संगठन के एक आला नेता ने पिछले दिनों हुई एक बातचीत में कहा है कि इस बात की पूरी-पूरी संभावना है कि नगरीय निकाय चुनाव के पहले मंत्रिमंडल विस्तार कर दिया जाए. फिलहाल स्थिति तो इंतजार करने जैसी ही है.