उड़ रही ‘बीजेपी’

चुनाव में भले ही करीब साढ़े पांच महीने का वक्त बाकी रह गया हो, लेकिन बीजेपी नेता अब ‘हवा’ में हैं. ऊंची उड़ान उड़ रहे हैं. शायद उम्मीद है कि उड़ान जितनी तेज और ऊंची होगी, दूर की चीजें साफ-साफ देखी जा सकेगी. दरअसल छत्तीसगढ़ बीजेपी ने चुनावी रणनीति को अमलीजामा पहनाने के लिए हेलीकाप्टर का उपयोग शुरू कर दिया है. फिलहाल एक हेलीकाप्टर किराए पर लिया गया है. प्रदेश प्रभारी ओम माथुर की बस्तर की चार दिनी यात्रा इसी हेलीकाप्टर से ही होगी. 4 दिनों में 12 विधानसभा सीटों को कवर किया जाएगा. मुख्यमंत्री-मंत्री अपने सरकारी दौरों पर अक्सर हेलीकाप्टर का इस्तेमाल करते रहते हैं. मगर विपक्षी दल का नेता अगर हेलीकाप्टर की मैराथन सवारी करता दिखे, तो यह मान लिया जाता है कि चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. राजनीति में कहा भी जाता है ‘चुनाव मतलब हेलीकाप्टर’. खबर यह भी है कि बीजेपी जल्द ही दूसरा हेलीकाप्टर भी किराए पर लेगी. साल 2018 के चुनाव में 15 सालों का सूखा झेल चुकी कांग्रेस पार्टी ले देकर एक हेलीकाप्टर ही किराए पर ले पाई थी. वह तो टी एस सिंहदेव अपनी रियासत के राजा थे, अपने लिए एक अलग हेलीकाप्टर किराए पर ले आए थे. खैर, इस दफे मालूम नहीं बीजेपी कितने हेलीकाप्टर चुनाव में उतारेगी. अगर छोटे-मोटे दलों के नेता भी हेलीकाप्टर की सवारी कर चुनावी माहौल बनाते दिखे, तो चौंकिएगा नहीं. पर्दे के पीछे रहकर इस तरह का संसाधन जुटाना बीजेपी के लिए कोई नई बात नहींं है. साल 2013 के विधानसभा चुनाव में बाबा बालदास ने उड़नखटोले की खूब सवारी की थी. अनुसूचित जाति बहुल सीटें, जिन्हें आमतौर पर बीजेपी का नहीं माना जाता. उन सीटों पर भी बीजेपी ने करिश्माई प्रदर्शन किया था. 10 सीटों में से 9 पर जीत दर्ज की थी. खैर तब और अब में जमीन-आसमान का फर्क था. तब राजनीति के ‘जोगी’ भी थे. अब नहीं है. 

मैदान में ‘ओवैसी’

किसी राज्य में चुनाव हो, माहौल सांप्रदायिक बना हुआ हो और वहां ‘ओवैसी’ की पार्टी ना हो तो चुनाव की उम्मीद ही बेमानी है. 2023 के चुनाव में सांप्रदायिकता और धर्मांतरण अहम चुनावी एजेंडा होगा या बनाया जाएगा. यह तय है. छत्तीसगढ़ ने कभी किसी चुनाव में ऐसी तस्वीर नहीं देखी होगी, जैसी तस्वीर इस दफे दिखाई दे सकती है. बहरहाल चर्चा है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएएम राज्य की कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है. अब ओवैसी की पार्टी अपने उम्मीदवारों के जरिए किसे फायदा दिलाएगी और किसे नुकसान पहुंचाएगी, यह समझदार की समझ पर छोड़ा जाना जाहिए. मगर संकेत है कि एआईएएम ने छत्तीसगढ़ में अपने उम्मीदवार उतारने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है. 

50 सीटों का गणित

चुनाव समीकरणों का खेल है. सूबे में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में इस बार समीकरण ही समीकरण होंगे. एक समीकरण सर्व आदिवासी समाज से जुड़ा है. कांग्रेस, बीजेपी, बीएससी, आप, गोंगपा जैसे राजनीतिक दलों के साथ आगामी विधानसभा चुनाव में सर्व आदिवासी समाज भी कदमताल करती दिखेगी. चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारने की कवायद समाज ने तेज कर दी है. चर्चा है कि सर्व आदिवासी समाज बतौर क्षेत्रीय दल अपनी भूमिका मजबूत करने की कवायद में जुट गया है. राजनीतिक दल के रूप में मान्यता मिले, लिहाजा रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया तेज कर दी गई है. चर्चा है कि सर्व आदिवासी समाज करीब 50 सीटों पर अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारेगा. हाल ही में बीजेपी छोड़ कांग्रेस का हाथ थामने वाले नंदकुमार साय सर्व आदिवासी समाज को समर्थन देते रहे हैं. कहते हैं कि सक्रिय राजनीति में समाज की भूमिका बढ़ाने से जुड़ी कई रणनीतिक बैठक उनके बंगले में आयोजित की गई. अब साय खुद कांग्रेस के हो गए है, सो आदिवासी समाज अपनी एक नई धुरी तैयार कर रहा है. भानुप्रतापपुर उप चुनाव में उम्मीदवार उतारकर सर्व आदिवासी समाज ने अपने राजनीतिक दखल को मजबूत करने की कवायद शुरू कर दी थी. अब तैयारी 50 सीटों की है. ऐसे में अब सवाल उठ रहा है कि राज्य के ‘आदिवासी’ किसके होंगे?

बीजेपी के होंगे ‘टेकाम’

आईएएस नीलकंठ टेकाम ने नौकरी छोड़ने का मन बना लिया. वीआरएस के लिए आवेदन कर दिया है. दो चार दिन में मंजूरी मिल ही जाएगी. चर्चा है कि टेकाम जल्द ही बीजेपी का दामन थामेंगे. बीजेपी उन्हें केशकाल सीट से अपना उम्मीदवार बना सकती है. टेकाम का राजनीति में आने का फैसला यूं ही लिया गया फैसला नहीं है. एक दशक से भी ज्यादा वक्त बीत गया, टेकाम की कोशिशें कई बार परवान चढ़ी, लेकिन किन्हीं कारणों से नौकरी पर बने रहे. मध्यप्रदेश में पोस्टिंग के दौरान उनका नौकरी छोड़ना लगभग तय हो गया था. तब भी चर्चा छिड़ी थी कि नौकरी छोड़ वह चुनावी राजनीति का हिस्सा बनेंगे, लेकिन तब यह मुमकिन नहीं हो पाया. बहरहाल रमन सरकार के दौरान नीलकंठ टेकाम जब केशकाल में कलेक्टर हुआ करते थे, तब से ही उन्होंने अपनी राजनीतिक जमीन को सींचना शुरू कर दिया था. केशकाल इलाके का शायद ही ऐसा कोई गांव बाकी होगा, जहां टेकाम नहीं पहुंचे. कहते हैं कि तबादले के बाद भी टेकाम का केशकाल जाना आना बना रहा. हाल ही में टेकाम की एक तस्वीर वायरल हुई थी, जिसमें एक गांव में वह बीजेपी नेताओं के साथ बैठक लेते नजर आए थे. कांग्रेस जिन-जिन सीटों पर मजबूत है, बीजेपी उन-उन सीटों के लिए एक नया ‘टेकाम’ ढूंढ रही है. 

कतार में कई

छत्तीसगढ़ में गर्मी ही नहीं, चुनावी सरगर्मियां भी बढ़ रही है. नीलकंठ टेकाम के सक्रिय राजनीति में आने की खबरों के बीच चर्चा तेज है कि कई और अहम चेहरे हैं, जिनका आने वाले दिनों में राजनीतिक प्रवेश होगा. इनमें एक दो पद्मश्री और कुछ आईएएस,आईपीएस और आईएफएस अफसर शामिल हैं. जाने माने एक्टर अनुज शर्मा को लेकर हल्ला है कि जल्द ही उनका बीजेपी प्रवेश होगा. हालांकि अनुज को लेकर इस तरह की चर्चा नई नहीं है. हर चुनाव में ऐसी चर्चा छिड़ती रही है. कहते हैं कि अनुज भाटापारा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. रिटायर्ड आईएफएस एस एस डी बड़गैय्या को लेकर खबर है कि जल्द ही उनका बीजेपी प्रवेश होगा. पहले चर्चा थी कि उन्हें बेलतरा सीट से चुनाव लड़ाया जा सकता है, मगर नई चर्चा में यह सुना जा रहा है कि बड़गैय्या कसडोल से उम्मीदवार बनाए जा सकते हैं. बेलतरा से प्रदीप झा नाम के एक उद्योगपति का नाम चल रहा है, जिन्हें बीजेपी की टिकट से चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है. इसी तरह मरवाही से एक रिटायर्ड कर्नल पर बीजेपी दांव खेल सकती है. 

गणित एसपी तबादले का

बहुप्रतिक्षित एसपी तबादला हो ही गया. कई जिलों के एसपी इधर से उधर किए गए. कुछ नप गए, कुछ बने रहे. कई चौंकाने वाली पोस्टिंग हुई. बिरनपुर की घटना के बाद बेमेतरा एसपी कल्याण एलेसेला को लेकर जिस तरह से चर्चाओं का बाजार गर्माया था, वह अब शांत हो गया है. हटे जरूर, लेकिन पहले से ज्यादा महत्व रखने वाला जिला मिल गया. बलरामपुर एसपी मोहित गर्ग राजनीतिक लड़ाई का शिकार हो गए. चुनाव करीब था, इसलिए विधायक की चल निकली. एसपी को हटाने की मांग पर सरकार ने मुहर लगा दिया. गर्ग बटालियन भेज दिए गए. दंतेवाड़ा एसपी सिद्धार्थ तिवारी मनेंद्रगढ़ भेजे गए हैं. छोटा जिला है, लेकिन कई मायनों में महत्व रखता है. अभिषेक पल्लव की टीआरपी थोड़ी कम की गई है. दुर्ग में थे, तो सोशल मीडिया में जमकर सुर्खियां बटोरी. अब दुर्ग के मुकाबले कवर्धा कहां ठहरेगा, लेकिन पल्लव सूखा कुंआ खोदकर पानी निकालने का हुनर रखने वाले आईपीएस हैं. कुछ ना कुछ करकर अपनी जगह बना लेंगे. एसपी बने रहना कम बड़ी बात नहीं है. सबसे बड़ी लाटरी लगी सुकमा एसपी रहे सुनील शर्मा की. उनकी लिखी एक चिट्ठी ने खूब रायता फैलाया था. राजनीतिक हल्ला मचा, मगर अच्छा काम किया, सरकार ने सरगुजा जैसे बड़े जिले की कमान सौंप दी. बड़ा जिला है, तो बड़ी चुनौतियां भी खड़ी है. कवर्धा देख रहे लाल उमेद की कुर्सी बदली है, पद नहीं. बलरामपुर संभालेंगे. एसपी तबादले में एक दफे फिर रायपुर एसपी प्रशांत अग्रवाल बच गए. लगता है कि अब चुनाव तक प्रशांत कुर्सी पर जमे रहेंगे. सरकार को उनका कोई विकल्प भी नहीं मिल रहा है. 

एसपी के बाद कलेक्टर

चर्चा तेज है कि एसपी तबादले के बाद अब जल्द ही कलेक्टरों के तबादले होंगे. मगर हाल कुछ यूं है कि कई अहम जिले में थोड़ा भी समझदार अफसर कलेक्टरी करने से बच रहा है. चुनाव करीब है, सिवाए नेताओं की डांट डपट, शिकवा शिकायतों के अलावा बहुत कुछ करने को मिलेगा नहीं. दूसरी तरफ ईडी हाथ धोकर पीछे पड़ी है. डीएमएफ, सीएसआर ने इतना डर फैला रखा है कि कोई हाथ डालेगा नहीं. सो लोग प्रार्थना कर रहे हैं कि कलेक्टरी तो आगे मिल जाएगी. फिलहाल जो मसले चल रहे हैं, वह खत्म हो जाए.