Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128
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‘बोली’

एक विभाग में मलाईदार पोस्टिंग के लिए बोली लगाई जा रही है. मंत्री की आड़ में उनकी परछाई बना ओएसडी बोली लगा रहा है. खुली मंडी है. मतलब स्पष्ट है : जो ऊंची बोली लगाएगा, उसके नाम पर मुहर लग जाएगी. पिछली सरकार तक स्थिति यह थी कि मनचाही जगह के लिए अफसरों को 6-7 लाख रुपए ढीले करने पड़ते थे, मगर इस दफे बोली बहुत ऊंची चली गई. सुनते हैं कि 20 लाख रुपए तक की पेशगी देने वाले भी कतार में खड़े दिखाई दे रहे थे. खैर, सिस्टम में यह सब कभी रुक नहीं सकता. पर्दे के पीछे कैसे-कैसे खेल खेले जाते हैं, यह सब को मालूम होता है. सिस्टम हाथी दांत की तरह है. दिखने के दांत अलग, खाने के दांत अलग. असल मुद्दे की बात यह है कि पिछले दिनों विभाग की एक तबादला सूची में एक ऐसे अफसर का तबादला कर दिया गया, जो संघ का बेहद करीबी था. मंत्री उस शख्स को जानते थे, मगर उनकी परछाई बने बैठे ओएसडी ने उस जगह की ऊंची बोली लगा रखी थी. तब मंत्री के मन में संघ का डर कम, लालच की लार ज्यादा थी. मंत्री का इशारा मिलते ही सूची में नया नाम जोड़ दिया गया. इधर नाम जोड़ा गया, उधर संघ के करीबी अफसर का तबादला रोकने दस लाख रुपए की मांग की गई. बात ऊपर तक जा पहुंची. मंत्री को भी डांट डपट लगी. ओएसडी पर गाज गिरने की अटकलें थी. मगर तबादला रोकने जिस अफसर से रुपयों की मांग की गई थी, उस अफसर को बुलाया गया. उससे पूछताछ शुरू हुई. अफसर ने कहा सब ठीक है. कोई दिक्कत नहीं. तबादला रुक गया. मामला निपट गया.

‘बढ़िया है’

पिछली सरकार में हैरतअंगेज करतबों की वजह से जेल में बंद एक शख्स से जुड़ी कंपनी का ठेका कंटिन्यू किए जाने की तैयारी है ! सरकार बदलने के बाद कंपनी बीमार पड़ गई थी. लगता है कि कंपनी को ग्लूकोज और अफसरों को मल्टी विटामिन का ड्रिप चढ़ाया गया था. इससे कंपनी अपने पैरों पर दोबारा खड़ी होने की स्थिति में आ गई है. मल्टी विटामिन खाए अफसर भी तन गए हैं. इसलिए कंपनी को एनओसी दे दी गई है. अब जिस विभाग का यह ठेका है, उसे ही अपनी हेल्थ की चिंता नहीं है, तो कोई दूसरा क्या ही कर सकता है. एक वक्त था, जब इस विभाग के मंत्री कंपनी पर सवाल उठाते सुने जाते थे, अब उसकी तारीफ करते सुने जाएंगे. बढ़िया है.

‘दर्द’

कुछ अपवाद जरुर होते है. मगर जरूरी नहीं कि एक सरकार की शुरू की गई योजना अगली सरकार ढोकर चले. पिछली सरकार की योजना ‘रीपा’ को भाजपा सरकार ढोना नहीं चाहती ! सरकार के एक फैसले के इंतजार में ‘रीपा’ हर दिन ढह रहा है. भूपेश सरकार में रुरल इंडस्ट्रियल पार्क यानी रीपा योजना शुरू हुई थी. हर ब्लाक में दो रीपा बनाए गए थे. हर रीपा पर दो करोड़ रुपए खर्च किए गए. डेढ़ करोड़ रुपए का स्ट्रक्चर और पचास लाख रुपए मशीनों पर खर्च हुआ. इस लिहाज से करीब 300 करोड़ रुपए खर्च किए गए. अब 300 करोड़ रुपए की बड़ी रकम मिट्टी में मिलती दिखती है. सरकार में आने के बाद पंचायत मंत्री ने विधानसभा में सीएस की कमेटी बनाई. जांच का ऐलान किया. मगर न रिपोर्ट सामने आई और न ही रीपा के भविष्य पर कोई चर्चा दिख रही है. हर ढहती योजना का अपना दुख होता है. रीपा का भी अपना दुख है. भ्रष्टाचार के चूहे ने अगर रीपा को कुरेद कुरेद कर खोखला किया है, तो एक रुके हुए फैसले ने इसकी नींव और कमजोर कर दी है. किसी सरकार में योजना का खंडहर की तरह ढह जाना नया नहीं है. खंडहर होती योजनाओं में खर्च हुए पैसों का दर्द सरकारों को होना चाहिए.

‘बड़ी तैयारी’

इस दफे धान खरीदी का लक्ष्य बड़ा है. छत्तीसगढ़ के इतिहास में इससे बड़ी धान खरीदी अब तक नहीं हुई है. 160 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा जाना है. धान राज्य की सियासत की एक दुखती नब्ज भी है. जरा सी कोताही हुई, तो बवाल तय है. सरकार यह समझ रही है, शायद इसलिए ही फूड की कमान संभाल रही एसीएस रिचा शर्मा के हाथों को मजबूती दी गई है. अन्बलगन पी सेक्रेटरी बनाए गए हैं. वह एमडी मार्कफेड रह चुके हैं. रिचा शर्मा की तेज रफ्तार में के डी कुंजाम पिछड़ जाते, इसलिए उन्हें हटा दिया गया है. एक साथ कई चार्ज संभाल रहे रमेश शर्मा को केवल एमडी मार्कफेड की जिम्मेदारी सौंपी गई है. फूड डायरेक्टर जितेंद्र शुक्ला को वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन का एडिशनल चार्ज दिया गया है. कुल मिलाकर सरकार ने धान खरीदी की बड़ी तैयारी कर ली है. पिछली खरीदी जब हुई थी, तब पूर्ववर्ती सरकार ने लगभग सेटअप तैयार कर दिया था. टेक्निकली साय सरकार की यह पहली धान खरीदी होगी.

‘नया रायपुर’

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय नया रायपुर के नए बंगले में शिफ्ट हो रहे हैं, लेकिन मौजूदा सीएम हाउस भी उनके पास होगा. दूरदराज से आने वालों को दिक्कत न हो, इसलिए जनदर्शन कार्यक्रम पुराने सीएम हाउस से ही चलते रहने की खबर है. कहते हैं कि नए बंगले में शिफ्ट होने की खबर से कई नेताओं की नजर सीएम हाउस पर जा टिकी थी. बहरहाल मुख्यमंत्री के पहले रामविचार नेताम पहले से ही नया रायपुर के सरकारी बंगले में रह रहे हैं. दयालदास बघेल, लक्ष्मी राजवाड़े के बंगले तैयार हैं. जल्द ही उनके भी शिफ्ट होने की अटकलें हैं. मंत्री केदार कश्यप ने भी नया रायपुर में बंगला आवंटित करा रखा है. एक के बाद एक अफसरों की भी शिफ्टिंग हो रही है. मंत्रालय के नजदीक बने आफिसर्स कालोनी में सुब्रत साहू, रिचा शर्मा, सोनमणि बोरा, आर संगीता, अन्बलगन पी, पुष्पेंद्र मीणा, चंदन कुमार, ऋतुराज रघुवंशी, सदानंद कुमार जैसे अफसर शिफ्ट हो चुके हैं. एसीएस मनोज पिंगुआ और दिल्ली से लौटे डाॅक्टर रोहित यादव भी शिफ्ट होने की कतार में है. कुल मिलाकर सरकार अब नया रायपुर से ही चलती दिखेगी. मुख्यमंत्री, मंत्रियों और अफसरों के नया रायपुर में शिफ्ट होने के दो फायदे हैं. एक : धीमा विकास तेज होगा और दूसरा : बसाहट में तेजी आएगी.

‘टीबीसी’

टीबीसी यानी टेक्स्ट बुक कार्पोरेशन…किस्म-किस्म के घोटाले के रहस्य खुद में समेट बैठे इस कार्पोरेशन की जल्द ही कलई खुलने वाली है. स्कूलों में बंटने वाली किताब पिछले दिनों कारखाने में कटती मिली. सरकार सन्न रह गई. जांच के आदेश दिए गए. कमेटी बनाई गई. पहले एक कमेटी बनी. कमेटी की भूमिका पर उठते सवालों को देख मुख्यमंत्री के निर्देश पर दूसरी कमेटी बनी. अव्यावहारिक ईमानदार कही जाने वाली एसीएस रेणु पिल्ले को जिम्मा सौंपा गया था. अब कमेटी को दी गई मोहलत खत्म हो गई है और खबर है कि जांच रिपोर्ट तैयार है. इस रिपोर्ट से पर्दा उठने का इंतजार किया जा रहा है. वैसे ब्यूरोक्रेसी में इस बात पर भी चर्चा होती रही है कि आखिर सरकार ने इस घोटाले की जांच का जिम्मा रेणु पिल्ले को ही क्यों सौंपा? इसकी दो वजह सामने आई है. अव्वल यह कि यह विभाग मुख्यमंत्री के अधीन हैं और मुख्यमंत्री एक सख्त संदेश देना चाहते हैं कि वह किसी भी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं करेंगे. दूसरा यह कि रेणु पिल्ले अपनी जांच में उस डोमेन तक जा सकती हैं, जहां तक कोई दूसरा नहीं जा सकता. फिलहाल तो इंतजार हैं कि पिल्ले कमेटी किसे दोषी करार देती है?