उधर ओलंपिक, इधर सियासत की बाधा दौड़….. (1)
टोक्यो ओलंपिक में देश के खिलाड़ी खूब पसीना बहा रहे हैं, इधर सूबे की सियासत के खिलाड़ी पीछे नहीं है. वहां मैडल है, यहां कुर्सी है. दरअसल मामला ढाई-ढाई साल के फार्मूले वाले खेल से जुड़ा है. इस खेल में दो ही खिलाड़ी है. दोनों सियासी मैदान में ‘ बाधा दौड़ ‘ दौड़ रहे हैं. अपने-अपने दांव-पेंच आजमाते हुए. कभी एक साथ ही वर्जिश किया करते थे, तब दोनों के कोच भी एक ही थे, लेकिन अब एक-दूसरे के सामने प्रतियोगी बनकर खड़े हैं. जाहिर है खेल में एक की जीत होगी, दूसरे की हार, लेकिन हार का स्वाद कौन चखेगा? इसका जवाब वैसे ही है, जैसे मैदान में कौन खिलाड़ी, कितना जोर लगाएगा. कोच भी हैरान-परेशान की मुद्रा में दोनों खिलाड़ियों का खेल देख रहा है. वैसे कोच ने जब फार्मूला बनाया था, तब अपने हरफनमौला खिलाड़ी को कप्तानी सौंपी थी. ये खिलाड़ी बाधा दौड़, दौड़ने में खूब माहिर निकले थे. लंबी-लंबी छलांग लगाकर विरोधियों को पस्त किया था. तीस मारखां खिलाड़ी भी औंधे मुंह चित्त होकर गिरे थे. जेवलीन थ्रो में जैसे नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक जीतकर अप्रत्याशित नतीजे दिए. वैसे ही जीत का डंका बजाया था. खैर तब तक तो मामला ठीक था. दूसरा खिलाड़ी तब साथी खिलाड़ी हुआ करता था. दांव जुटकर लगाते और सामने वाले को खूब छंकाते….लेकिन कोच की एक गलती भारी पड़ गई. मैच खत्म होने के बाद जीत के जश्ने-उत्साह में वही ढाई-ढाई साल का फार्मूला तैयार कर बैठे. अब माथा ठोकने का क्या फायदा. खिलाड़ी अपना खेल दिखा रहे हैं. वैसे जीत का सिलसिला बनाकर रखना है, तो कोच को समय एक नए नियम की घोषणा करनी चाहिए…..
जो दौड़ जीतेगा, उसे मिलेगी सलामी….(2)
उधर खेल के मैदान में दो खिलाड़ियों की जोर आजमाइश के सूबे में ढेरों दर्शक हैं. कोविड गाइडलाइन है, इसलिए मैदान में वहीं दर्शक हैं, जो खेल में करीब से जुड़े हैं. मसलन ब्यूरोक्रेट, नेता-मंत्री…मामला दिलचस्प होता देख गलियारे में ये कानाफूसी तेज हो गई है कि सलामी किसे ठोकनी है. कप्तान सियासत का बड़ा खिलाड़ी है. अच्छे-अच्छों को पटखनी दी, तब जाकर कप्तानी मिली, ऐसे में कप्तान की नजर में आए बिना कुछ लोग, दूसरे खेमे में भी अपनी जमीन तैयार करने जुट गए हैं. गौठान में बनाये गए वर्मी कंपोस्ट जमीन पर खूब फेंके जा रहे हैं, जिससे संबंधों की मजबूत फसल तैयार हो सके. इधर कप्तान की नजर सब पर है. मैच खत्म होने के बाद पूरा हिसाब चुकाया जा सकता है…
एक पीएस से परेशान कलेक्टर्स….
प्रमुख सचिव स्तर के एक सीनियर अधिकारी से सूबे के कलेक्टर्स बेहद परेशान हैं. आपस की गुफ्तगू में कलेक्टर एक-दूसरे से अब शिकायत करने लगे हैं. नाराजगी सीनियर अधिकारी के निर्देशों को लेकर हैं. कलेक्टर कहते हैं कि ये निर्देश बेतूके हैं और कई बार प्रैक्टिकल से इनका कोई ताल मेल नहीं होता. बात-बात पर सीनियर अधिकारी आंतरिक संवाद के लिए बनाए गए ग्रुप में अपना फ्रस्ट्रेशन निकालने लगते हैं. आलम यह है कि ग्रुप में मुख्य सचिव से लेकर सीएम सचिवालय के तमाम आला अधिकारी भी जुड़े हैं, पर निर्देश देने के मामले में ये साहब सबसे आगे दौड़ लगा जाते हैं…वैसे बताते चले कि सरकार की प्राथमिकता वाले दो बड़े विभागों की कमान ये साहब संभाले हुए हैं…..
चलते-चलते….
आईएएस सोनमणि बोरा केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ला रवाना हो गए हैं. सरकार बदलने के बाद से उन्हें मन मुताबिक पोस्टिंग नहीं मिली, सो दिल्ली का टिकट कटवाना ही ठीक लगा. रवानगी के पहले साहब ने आल इंडिया सर्विस के अधिकारियों के एक व्हाट्स एप ग्रुप में ” टीम छत्तीसगढ़ ” में काम करते हुए अपने अनुभव का जिक्र किया. मुख्यमंत्री-मुख्य सचिव को धन्यवाद दिया. एक सामान्य शिष्टाचार निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन बात जब सीएम सचिवालय के अधिकारियों को धन्यवाद देने की आई, तब उन्होंने केवल दो अधिकारियों का ही नाम लिखा. बोरा आईएएस अधिकारी हैं, बखूबी जानते हैं कि सलामी उगते सूरज को ही दी जाती है…..
दाऊ के तलवारबाज…..
दाऊ ने छांट-छांट कर चेहरों को अपने काबिना में लिया है. बीते दिनों पीएचई मंत्री का जन्मदिन मना. जश्न की खुमारी में मंत्री जी ने ताबड़तोड़ दर्जनों केक तलवार से काट डाले. सोशल मीडिया पर तस्वीर खूब वायरल हुई. तलवार बाजी की कोई स्पर्धा ओलंपिक में होती, तो जनाब गोल्ड मेडल ले आते. खैर बात आई गई. अब सूबे के गृहमंत्री वायरल हो रहे हैं. अपने गृह क्षेत्र में गर्मजोशी से जन्मदिन का जश्न मनाने के दौरान मंत्री जी ने तिरंगा केक काट डाला. जाने-अनजाने में बड़े-बड़े लोगों से ऐसी बड़ी गलती हो जाती है, जिसका अंदाजा उन्हें भी नहीं होता, लेकिन सोशल मीडिया पर भरपूर प्रचार भी मंत्री जी को मिल गया. उनकी इस प्रतिभा की खुले शब्दों में लोगों ने जमकर तारीफ की. कसीदे गढ़े. वैसे केक काटने के दौरान मंत्री जी को क्या सिलगेर के आंदोलनकारी आदिवासियों के चेहरे याद आए क्या?
बेचारी हंटरदेवी ?
बीजेपी प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी छत्तीसगढ़ में जमकर पसीना बहा रही हैं. जब से कमान मिली, शायद ही कोई महीना बीता हो कि छत्तीसगढ़ ना आईं हो. भूपेश दाऊ ने तो बकायदा हंटर चलाने वाली देवी की उपाधि दे दी. उम्मीद थी कि हंटर के निशान उभरेंगे. पर उम्मीद धराशायी हो गई. लगता है हंटर चमड़े का नहीं बना हुआ है. हंटरदेवी ने संगठन में बची हुई नियुक्तियों को लेकर फरमान जारी किया था, लेकिन मोटी चमड़ी में बगैर चमड़े का हंटर भला क्या असर दिखाता. नियुक्ति हुई नहीं और जिम्मेदार सीना चौड़ा कर हाथों में फूल लिए हर बार बेधड़क उनके स्वागत की पंक्ति में आगे खड़े नजर आते हैं. खैर. हंटरदेवी ने अपने पिछले दौरे में बड़ा बयान दिया था. कहा था कि अगले चुनाव में पार्टी बगैर चेहरे के मैदान में जाएगी. जिस वक्त उनके मुख से यह कथन फूट रहे थे, दो ओबीसी, एक आदिवासी नेता उनकी ओर नजर गढ़ाये देख रहे थे. इस बीच ये भी महज इत्तेफाक ही है कि एक प्रेस कांफ्रेंस में जब पूर्व मुख्यमंत्री से पत्रकारों ने यह सवाल पूछा कि आगामी चुनाव में पार्टी का चेहरा कौन होगा? जवाब में उन्होंने हंटरदेवी के बयान का समर्थन नहीं किया. वह बताते चले गए कि कई चेहरों में एक छोटा सा चेहरा उनका भी है. बेचारी हंटरदेवी!
निगम-मंडल में शामिल चेहरे संगठन से होंगे बाहर !
इधर बीजेपी में ही नहीं कांग्रेस में भी उथल पुथल है. दाऊ जी की लाख कोशिश के बाद भी कई अहम चेहरे हैं, जिन्हें निगम-मंडल-आयोग में जगह नहीं मिली. अब चर्चा एक नया फार्मूला बनाये जाने को लेकर है. कहा जा रहा है कि निगम,मंडल, आयोग में लिए गए कई बड़े चेहरे हैं, जो संगठन में भी जमे हुए हैं. ऐसे लोगों को बाहर कर मुंह फुलाये लोगों को संगठन में बड़ा ओहदा दिये जाने की कवायद की जा रही है.
सीएम हाउस में जहरीले सांप
बीते दिनों एक ऐसी राजनीतिक घटना घटी, जिसकी चर्चा प्रदेश में ही नहीं, देश में भी जमकर हुई. इस बीच एक खबर ने सबका ध्यान खींचा कि मुख्यमंत्री निवास से 13 से ज्यादा जहरीले सांप निकाले गए. सोशल मीडिया में प्रतिक्रिया देखने को मिली, अच्छा हुआ सीएम हाउस में सफाई हो गई, कुछ जहरीले सांप बाहर हो गए. कुछ लोग ये भी जानने की फिराक में दिखे कि कुछ और जहरीले सांप अभी बाकी तो नहीं है? फिलहाल सीएम हाउस की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है.