”चुप्पी” की कीमत एक करोड़ !
ये भ्रष्टाचार की सांस्कृतिक क्रांति ही है. करने वाला सोच रहा होता है कि वह सुसंस्कृत हो रहा है. इसलिए इस सभ्यता के प्रसार का जिम्मा अपने अनुभवी कंधों पर उठाने से उसे कोई गुरेज नहीं. अब इस मामले को ही देखिए और समझिए. वन महकमे के हालिया तबादले में एक बड़े डिवीजन का प्रभार संभाल रहे एसडीओ से प्रभार छीनकर जब एक आईएफएस अधिकारी को जिम्मेदारी दी गई, तब सल्तनत छिनते देख एसडीओ ने भ्रष्टाचार में शिष्टाचार के घालमेल का नया फार्मूला ढूंढ लिया गया. प्रभार में रहते हुए एसडीओ के मुंह खून लग गया. आदत बुरी थी, लेकिन यह छूट जाए, ये आसान नहीं था, लिहाजा नए साहब के सामने एक डील रखी गई. बताते हैं कि एसडीओ ने ताजी-ताजी जिम्मेदारी संभालने आए साहब से दो टूक कह दिया कि आप सिर्फ बैठिए, सारा काम वह खुद संभाल लेंगे और बदले में उन्हें बगैर कुछ किए सालाना एक करोड़ रुपए मिल जाएगा. शर्त बस यह होगी कि पर्दे के उस पार देखने की मनाही होगी. अब जब पेशकी की रकम इतनी भारी भरकम है, तब यह अंदाजा लगा पाना मुश्किल है कि आवक की मीनार कितनी ऊंची तनती होगी. सुना है कि इस की भनक अब ऊपर तक लग गई है.
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मोटरसाइकिल वाले ”एसपी साब”
रायपुर जिले से नीचे उतरते हुए बहुत नीचे जाने पर चौतरफा पसरी हुई हरियाली के बीच एक अहम जिले में तैनात एसपी साब इन दिनों कमाल कर रहे हैं. ये एसी दफ्तरों में बैठने वाले बाकी साहबों से अलग हैं. मेहनतकश है, सो मेहनत से ही कमाना जानते हैं. उनकी मेहनत की चर्चा महकमे तक होने लगी है. ऐसी ही एक चर्चा में ये सुनाई पड़ा कि एसपी साब मोटरसाइकिल में अपने एक अधीनस्थ एसआई को बिठाकर थाने-थाने घूम रहे हैं. थानों में रखी जाने वाली उनकी अमानत खुद जाकर ले आते हैं. थाना है, जाहिर है यहां अमानत में खयानत नहीं होगा. सो निश्चिंत होकर मोटरसाइकिल की सवारी कर रहे हैं. वैसे अच्छा भी है. थानेदारों को एसपी साब के पास जाकर आमद दर्ज नहीं करानी पड़ती. उधर एसपी साब को मोटरसाइकिल की सवारी करते देख लोगों के बीच ये संदेश जा रहा है कि बेहतर पुलिसिंग के लिए साब खुद जायजा लेने निकल पड़ते हैं. एक पंथ दो काज….
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गिरफ्तारी का टारगेट
अब पुलिस महकमे का जिक्र हुआ तो एक जिले की चर्चा चल पड़ी. चर्चा में लोग ये कहते सुने गए कि एसपी साब ने थानेदारों को गिरफ्तारी का टारगेट दिया है. लोगों ने पूछा, भई प्राइवेट कंपनियों में सेल्स का टारगेट सुन रखा था, लेकिन पुलिस में गिरफ्तारी का टारगेट, ये क्या बला है? इस सवाल के जवाब में आगे बताया गया कि जिले में चाकूबाजी, नशाखोरी जैसे अपराधों के बेलगाम आंकड़ों ने कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया था. सरकार से लेकर डीजीपी साहब तक के अपराध पर लगाम लगाने के सख्त निर्देशों के बाद भी जब हालात नहीं संभले, तो कुछ तो करना ही था. आनन-फानन में एसपी साब ने थानेदारों को गिरफ्तारी का टारगेट दे दिया. बस फिर क्या था दे दना दन गिरफ्तारियां दर्ज होने लगी. छोटे-मोटे अपराधों में भी गली-गली ढूंढ-ढूंढकर गिरफ्तारियां की जाने लगी. मामूली विवाद की शिकायतों पर जहां थाने में आपसी रजामंदी कराई जाती थी, वहां भी धारा 151 के प्रकरण ने रजिस्टर में अपनी संख्या बढ़ा ली. गिरफ्तारी के टारगेट देने की तरकीब काम कर गई. एसपी साब का सीना चौड़ा हो गया. उधर दूसरी ओर जेल प्रशासन की नींद उड़ गई. अपराधियों की संख्या इतनी बढ़ गई कि जेल में दाखिले के लिए आधी रात तक लाइन लगाने की नौबत आ गई. एक सीनियर अधिकारी ने इस वाक्ये पर कहा कि, पुलिस में एक कहावत है, एसपी काम करे या ना करे, काम करते दिखते रहना जरूरी है.
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नारायण-नारायण..
आईपीएस अफसर अब नारायणपुर का नाम सुनते ही नारायण-नारायण कहने लगे हैं. लगता है कि यहां के वास्तु में कुछ गड़बड़ है. तभी तो एसपी टिक नहीं रहे. तबादले में जब उदयकिरण को यह जिला मिला था, तब आदिवासियों के बीच बेहतर काम करने की नियत के साथ वह नारायणपुर पहुंचे. ओरछा के सुखराम नाम के एक आदिवासी युवक को बायोनिक हाथ लगवाया, मगर इसकी चर्चा होती इससे पहले ड्राइवर की पिटाई मामले में वह बदल दिए गए. उनकी जगह भेजे गए गिरिजाशंकर जायसवाल भी चंद महीने में ही हटा दिए गए. ताजा तबादले में उनकी जगह सदानंद कुमार भेजे गए हैं. गिरिजाशंकर सीएम सुरक्षा में तैनात थे, जब उन्हें नारायणपुर की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. कहते हैं कि सीएम सुरक्षा में एक बार काम करने वाले के हाउस से संबंध बेहतर बन जाते हैं, लेकिन इस मामले में स्थिति उलट दिख रही है. चर्चाएं कई हैं, वैसे भी ऐसे तबादले यूं ही नहीं होते. बहरहाल नए एसपी वास्तुदोष का निवारण कर लें, तो थोड़ी लंबी पारी खेलने की गारंटी मिल सकती है.
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ट्रांसफर की सुपारी
कहते हैं कि एक जिले के कांग्रेस संगठन प्रभारी को एक विभाग के मातहत अधिकारी ने अपने ऊपर के अधिकारी का ट्रांसफर कराने की सुपारी दे दी. रकम बड़ी थी, सो नेताजी ने ताकत झोंक दिया. ट्रांसफर करवा कर ही माने. ट्रांसफर हुआ, तो मातहत अधिकारी वाहवाही लूटने में मशगूल रहे, इधर दिन पर दिन बीतता चला गया और दो महीने गुजर गए. ट्रांसफर के बाद भी अधिकारी टस से मस ना हुए. ये देख मातहत अधिकारी की बैचेनी बढ़ने लगी. थक हार कर वह नेताजी के पास गए और दी गई रकम की मांग करने लगे. बात बाहर जाती, तो नेताजी की छिछा लेदर होती, उन्होंने भरोसा दिलाया कि जल्द ही मसला रफा दफा किया जाएगा. नए सिरे से ताकत एकजुट की और अबकी बार ट्रांसफर वाली जगह भेजने में कामयाब रहे, लेकिन यह बात पूरे जिला संगठन में फैल गई. अब स्थानीय स्तर पर लोग कह रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी को ऐसे जिला संगठन प्रभारियों पर नकेल कसना चाहिए.
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पुरंदेश्वरी का हंटर
बीजेपी प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी जब-जब छत्तीसगढ़ आती है, बीजेपी नेताओं की क्लास लग जाती है. बड़ी नजाकत से प्रभारी बड़ी-बड़ी बात कहकर नेताओं को जमीन दिखाती है, उस पर मुख्यमंत्री का बयान बीजेपी नेताओं के सीने पर सांप लोटने जैसा होता है. अबकी बार जब डी पुरंदेश्वरी ने बीजेपी के विधायक-सांसदों की मैराथन बैठक ली, तब मुख्यमंत्री ने अपनी टिप्पणी में कहा कि, बार-बार आकर वह बीजेपी नेताओं को उनकी औकात दिखाती हैं. टिप्पणी धारदार थी, पार्टी ने पलटवार करने पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को सामने लाया, उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री हंटरवाली से डर गए हैं. डर में ऐसी बातें कर रहे हैं. खैर इन बयानों के बीच ये सौ टके की बात है कि डर तो दोनों दलों के नेताओं के सीने पर सवार हो रहा है. एक तरीके से चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो चुका है. करीब 18 महीने चुनाव में बाकी रह गए हैं. जमीन पर उतरने का वक्त आ गया है. बीजेपी कमजोर लीडरशीप से जूझ रही है, नेता एकजुट नहीं है, टकराव ज्यादा है. उधर कांग्रेस सरकार में भी सब कुछ ठीक हो, ये नहीं कहा जा सकता. बहरहाल डर के आगे जो गया, जीत उसकी तय है. फिलहाल इस खेल में मुख्यमंत्री आगे दिख रहे हैं. कई तरह के डर और चुनौतियां का सामना कर जीत का पताका जो लहराया है.
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सीएम बनने की ख्वाहिश
बीजेपी के एक सीनियर और मुखर आदिवासी नेता सीएम बनने की ख्वाहिश देख रहे हैं. उनकी ख्वाहिशों को उस वक्त बल मिला, जबसे यह चर्चा छिड़ी कि सत्ता में यदि बीजेपी आई, तो मुख्यमंत्री का पद या तो ओबीसी के हिस्से जाएगा या फिर आदिवासी के. अब वह यह मानकर बैठे है कि इस बार टर्न आदिवासी का होगा, सो उनकी एक्टिविटी तेज हो गई है. एक बड़े नेता के वैवाहिक समारोह में चल रही गुफ्तगू में इस आदिवासी नेता ने कहा कि अब तक राज्य में किसी भी मुख्यमंत्री के पास राज्य के विकास का कोई फार्मूला ही नहीं रहा. सब ढाक के तीन पात वाले साबित हुए, लेकिन यदि मैं मुख्यमंत्री बना तो मैं दिखाऊंगा कि काम कैसे होता है. मैंने कई फार्मूले बना रखे हैं. अब उनकी ये बातें, ये बताने के लिए काफी है कि जोरआजमाइश में अब से ही जुट गए हैं. संंघ के नेताओं से भी मिलने जुलने का सिलसिला इन तेज तेजी से चल रहा है.
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