दिल्ली अभी दूर है…
सरकार कायम रहे, इसलिए सूबे में डेढ़ दिन सरकार गायब रही. ना सीएम थे और ना ही मंत्री, निगम,मंडल और आयोगों के अध्यक्ष, उपाध्यक्षों, महापौरों की भी भारी भरकम फौज नदारद थी. सिस्टम ठप था. ब्यूरोक्रेसी ने भी कभी ऐसी स्थिति ना देखी होगी. लेकिन इस जोर आजमाइश ने संजीवनी दे दी. राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की तमाम अटकलों पर फिलहाल विराम लग गया. लाव-लश्कर लेकर दिल्ली कूच करने की रणनीति कारगर रही, लेकिन यह कहा जाए कि सब कुछ खत्म हो गया, तो जल्दबाजी होगी. सूबे से जो कारवां चला था, उसने अपना पहला पड़ाव ही पार किया है. अब सवाल उठ रहा है कि आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी, तो भीतर खाने से आई खबर कहती है कि कुछ दिन पहले हुई बैठक में सब कुछ समेटने का ”फरमान” जारी हो गया था. बस फिर क्या था, दिल्ली से लौटते ही समर्थकों की टोह ली गई, ताकत बढ़ते देख लाव लश्कर लेकर दिल्ली कूच करना ही एक मात्र विकल्प नजर आया. दाऊ जी सियासी दंगल के दांव-पेंच में माहिर खिलाड़ी हैं. कई मौकों पर उन्होंने अपनी योग्यता साबित की है. हाईकमान के साथ जब बैठक हुई, तो खुलकर बात हुई. खुलकर मतलब खुलकर. यूपी और ओबीसी तक बात हुई. हाईकमान के लिए यूपी भी जरूरी है और ओबीसी की राजनीति तो देश में चल ही रही है. हाईकमान ने भी कैलकुलेटर लेकर खूब गुणा-भाग किया. फिलहाल पता नहीं कब तक, लेकिन ऐसी खबर सामने आई कि हाईकमान ने अपने फरमान को वापस ले लिया. दिल्ली से लौटने के बाद दाऊजी आत्मविश्वास से लबरेज नजर आ रहे थे. इधर बाबा के अंदाज को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. विधायकों,मंत्रियों, नेताओं से अटे पड़े विशेष विमान में बाबा की टिकट भले ही नहीं कटी, लेकिन दिल्ली से लौटे तो कहा, काम भी करूंगा और हाईकमान के निर्णय का इंतजार भी, कुछ स्थाई है, तो वह है सिर्फ परिवर्तन…खैर दिल्ली अभी दूर है…..
दुधारू गाय की लात सहनी पड़ती है….
किस्सा कुर्सी का चल रहा था. राज दरबार की शोभा बढ़ाने वालों (विधायकों) की भीड़ दिल्ली में डटी थी. कभी यहां-कभी वहां. कभी इधर हाजिरी, कभी उधर. ढलती शाम में जब राजा, महाराजा के घर से निकले, दरबारी टकटकी निगाह लगाए फरमान सुनने बेताब थे, जैसे ही राजा ने कहा, ”अब सब ठीक है”, दरबारियों की बांछे खिल गई. बस फिर क्या था, इंतजार जलसे का था. एक आलीशान होटल में जमे कुछ दरबारियों ने सुरापान की योजना पहले ही बना रखी थी. जाम पे जाम छलके, रायशुमारी का खूब दौर चला. इन तस्वीरों ने अदम गोंडवी की चंद लाइनों की यादें ताजा कर दी, ”काजू भूनी प्लेट में व्हिस्की गिलास में, उतरा है रामराज विधायक निवास में”….खैर जश्न मनाने का हक सबको है. मामला यहां तक तो ठीक था, जश्न में उस वक्त खलल पड़ गया, जब जश्न की कीमत (बिल) चुकाने की बारी आई. भीतर खाने की चर्चा में यह सुनाई पड़ा कि जिस सूर्य की रोशनी के बीच वह दिल्ली पहुंचे थे, शाम होने के बाद वह ढल गई थी. बेचारे दरबारियों ने एक-दूसरे की जेब टटोलनी शुरू की और जश्न की कीमत चुकाई. इस दौरान ही एक टिप्पणी भी सामने आई, ” दुधारू गाय की लात सहनी पड़ती है” एक और दिलचस्प टिप्पणी भी सुनने को मिली. दरबारियों की भीड़ के एक दरबारी ने कहा कि, ये होटल इतना आलीशान है कि यहां से लौटकर जाने का मन नहीं कर रहा….
…..मैं जानता हूं, कभी ना कभी मैं भूतपूर्व कहलाऊंगा…….
56 इंच का सीना तो दाऊ जी के पास ही है. पूरी की पूरी राजनीति उठाकर देख लो. शुरूआत से अब तक. जोगी सरकार में मंत्री थे, तब एक मामले में जोगी ही उन्हें घेरना चाहते थे, तब विधानसभा में अपने ही विभाग के खिलाफ जांच के आदेश दे दिये थे. हर कोई भौचक रह गया. प्रदेश अध्यक्ष बने, तो डंके की चोट पर वह सब किया, जो थकी मांदी पार्टी को उठाने के लिए जरूरी था. बड़े नेताओं की नाराजगी मोल ली, तो स्व.अजीत जोगी जैसे धाकड़ नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने का जरिया बने. पिछली सरकार में जांच बैठी, तो परिवार के सदस्यों को लेकर एंटी करप्शन ब्यूरो के दफ्तर पहुंच गए. सीडी मामले में गिरफ्तार हुए, तो जमानत लेने की बजाए जेल जाना पसंद किया. इस वक्त ग्रह-नक्षत्र थोड़े इधर-उधर खिसक गए थे, तो उन्हें भी ठिकाना लगा आए. राजनीतिक पंडित अक्सर ये कहते सुने गए हैं कि देश में मोदी-शाह को टक्कर कोई दे सकता है, तो वह इकलौते दाऊजी है. ये दूसरे के बस की बात नहीं. खैर, एक चर्चा चल रही थी. दाऊजी ने साहस के साथ कहा, भविष्य में मुझे यह मलाल नहीं होना चाहिए कि जब मैं पद पर था, तो मैंने वह नहीं किया, जो मैं करना चाहता था, मैं जानता हूं कि कभी ना कभी मैं भूतपूर्व कहलाऊंगा……
सीनियर अधिकारी एयरपोर्ट से गायब
पिछली सरकार में ये तस्वीर अक्सर दिख जाती थी कि सीएम के किसी दौरे से लौटने के बाद सीएस, डीजी, स्पेशल डीजी समेत सीएम सचिवालय के अधिकारी एयरपोर्ट पर आकर खुद उन्हें रिसीव करते थे. ये परंपरा थी कि लैंडिंग प्वाइंट पर ही राज्य की बड़ी हलचलों की जानकारी सीएम को दे दी जाए. कुछ बेहद ही जरूरी फाइलों को वीआईपी लांज में ही निपटा दिया जाए. शनिवार को जब सीएम दिल्ली से लौटे, तब एयरपोर्ट पर रायपुर आईजी, एसएसपी, कलेक्टर के अलावा कुछ चुनिंदा अधिकारी ही नजर आए. पता नहीं, शायद व्यवस्था में कुछ बदलाव हुआ हो….
IFS के खिलाफ जांच करने एसीबी की चिट्ठी
एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) को एक सीनियर IFS के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत मिली है. एसीबी ने जांच की अनुमति के लिए संबंधित विभाग को चिट्ठी लिखी है. चूंकि मामला हाई प्रोफाइल IFS से जुड़ा है, लिहाजा विभागीय मंत्री ने फाइल तलब की है. जांच की मंजूरी के लिए अब यह फाइल मंत्री की टेबल पर है. बताते हैं कि सीनियर IFS जब दुर्ग में पोस्टेड थे, तब टिशू कल्चर पौधों की खरीदी में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया था. अब जाकर इस मामले की शिकायत एसीबी से की गई है. नियम है कि एसीबी बगैर विभागीय मंजूरी के किसी तरह की जांच नहीं कर सकती, सो चिट्ठी लिख दी गई. अब एसीबी इंतजार में है कि कब मंजूरी मिले और जांच शुरू हो. वैसे बताते चले कि सीनियर IFS सत्ता के गलियारों में ऊंची पैठ रखते हैं.
राहुल गांधी का दौरे की तैयारी में जुटे अधिकारी
गुजरात माॅडल से बेहतर छत्तीसगढ़ माॅडल को बताते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को छत्तीसगढ़ आमंत्रित किया है. संभवतः अगले हफ्ते राहुल गांधी का दौरा हो. उन्हें बस्तर ले जाने की तैयारी है. 1-2 सितंबर को बीजेपी का भी चिंतन शिविर बस्तर में ही हो रहा है. आदिवासी सीटों पर अपनी जमीनी पकड़ को मजबूत करने के इरादे से बीजेपी बस्तर में चिंतन शिविर कर रही है. इधर राहुल गांधी को बस्तर लाने की मुख्यमंत्री की कवायद को काउंटर स्ट्रैटजी से जोड़कर देखा जा रहा है. हालांकि राहुल सिर्फ बस्तर ही नहीं, बल्कि मैदानी इलाकों के साथ-साथ सरगुजा का दौरा भी कर सकते हैं. इधर राहुल गांधी के दौरे से पहले अधिकारी सक्रिय हो गए हैं. सीएम सेक्रेटेरिएट ने स्वास्थ्य, शिक्षा, वन अधिकार पट्टे, सुपोषण, संस्कृति, गौठान, गोधन न्याय योजना जैसे सेक्टर पर किए जा रहे उल्लेखनीय कामों की सूची तैयार जल्द से जल्द भेजने के निर्देश दिए हैं. साथ ही जिन कामों का लोकार्पण राहुल गांधी से कराया जा सकता है, उसकी सूची मांगी गई है.