पाॅवर सेंटर By आशीष तिवारी-
कुछ तो ‘खास’ बात है इस एसपी में….
राजधानी की कप्तानी मिलते ही एसपी प्रशांत अग्रवाल की पारी ताबड़तोड़ चल रही है. इधर चार्ज लिया, उधर टीम को चार्ज करने पहले ही दिन बैठक ले ली. ट्रैफिक पुलिस को पर्ची काटने की संख्या बढ़ाने के निर्देश दे दिए. भाई सरपट दौड़ने के लिए ट्रैफिक का स्मूथ होना सबसे जरूरी है. वैसे साहब की रुचि फिलहाल ट्रैफिक पर दिखाई पड़ रही है. इसके परे राजधानी को समझने-बुझने की भी उनकी कोशिश परवान चढ़ रही है. सुना है कई थानों के टीआई गुलदस्ता लेकर अकेले में मिल रहे हैं. अकेले मिलने में जो बातें खुलकर होती हैं, भीड़ में कहां ! कहां कानूनी कसावट करनी है, कहां ढिलाई बरतनी है ! ये चर्चाएं भीड़ में नहीं होती. गुंडे-बदमाशों से लेकर ड्रग माफियाओं तक नजरें इनायत हुई हैं. ठिकाने लगाने का फरमान सुनाया गया है. खैर एसपी साहब जहां रहे, अपने काम को लेकर चर्चाओं में ही रहे. तभी तो उन्हें इनाम में राजधानी की बादशाहत मिल गई. वैसे बता दें कि बीच के चंद महीनों को छोड़ दिया जाए, तो जनाब ने साल 2012 से लेकर अब तक बतौर एसपी झंडा बुलंद किया हुआ है. कुछ तो ‘खास’ बात होगी ही कि पिछली सरकार से लेकर इस सरकार तक यह भरोसा कायम बना हुआ है. सरकार ने उसी ‘ खास’ बात को पहचान कर राजधानी लाना मुनासिब समझा होगा. वैसे ये ‘राजधानी’ है, बस इतनी सलाह, ” बाबूजी धीरे चलना, प्यार में जरा संभालना….”
विधानसभा उपाध्यक्ष के बेटे की पिटाई
विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडावी के बेटे अमन मंडावी की बदमाशों ने बीती रात पिटाई कर दी. अच्छा नहीं हुआ. बदमाशों को कम से कम नेताजी का ख्याल होना चाहिए था. बताने के बाद भी पिटाई नहीं करनी चाहिए थी. मनोज मंडावी व्यवहार कुशल नेता है. कायदे से पेश आने वाले विधायक हैं. जाहिर है बेटे के भीतर उनकी छवि होगी ही. रायपुर पुलिस को ऐसे बदमाशों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि रायपुर के बदमाश आखिर इतना हौसला कहां से लाते हैं? उनके हौसले का पाॅवर सेंटर कौन है? कुछ पुलिस वाले बता रहे थे कि इस मारपीट के बाद एक बड़े अधिकारी ने अपने मातहत अधिकारी को फोन कर बदमाशों की खैर खबर लेने के निर्देश दिए ही थे, कि एक दूसरे कांग्रेसी नेता का फोन चला गया कि पीटने वाले लोग उनके आदमी हैं, जो भी करें, थोड़ा संभलकर. अब पुलिस वाले करें तो करें क्या? एक तरह कुआं, दूसरी तरफ खाई. मामला एक थाने से उठाकर दूसरे में शिफ्ट कर दिया गया.
डंके की चोट पर नौकरी !
सरगुजा के एक जिले के प्रभारी डीएफओ के क्या कहने. डंके की चोट पर नौकरी चल रही है. भ्रष्टाचार के किस्से ऐसे-ऐसे कि सुनकर चौंक जाएं. सरकारी आवास को निजी बनाने से लेकर तरह-तरह की कहानियां खूब गूंजी, मजाल है,कोई बाल बांका कर सके. सरकार में अघोषित 14 वें मंत्री बने बैठे विधायक की सरपरस्ती ने हौसला बुलंद किया हुआ है. शिकायतों का पुलिंदा मीनारें खड़ी कर रहा है, लेकिन कार्रवाई सिफर ही है. बता दें कि पिछली सरकार ने इस अधिकारी को बर्खास्त कर दिया था, कोर्ट गए, बहाली हुई. इस सरकार ने भी तमाम शिकायतों को नजरअंदाज कर संभाग के सबसे बड़े डिवीजन का प्रभार सौंप दिया. ग्रह-नक्षत्र फिलहाल ठीक चल रहे हैं, लेकिन राहु-केतु कब हावी हो जाए, कोई नहीं जानता.
बुलेट स्पीड से भागी 30 फाइलें, दिल्ली के कांग्रेसी नेता की भूमिका !
सरकारी सिस्टम में जब फाइलें बुलेट स्पीड से भागती हैं, तो कानाफूसी हो ही जाती है. मामला भारत संचार नेट प्रोजेक्ट से जुड़ा है. टाटा कंपनी राज्य में ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछा रही है. रमन सरकार में ठेका हुआ था, आज तक मामला फंसा हुआ है. खैर, पिछले दिनों इस प्रोजेक्ट से जुड़ी करीब 30 फाइलों का मूवमेंट जिस तेजी से हुआ, उसने सबका ध्यान खींचा. वैसे भी सरकारी फाइलों के मूवमेंट का अपना एक अलग विज्ञान काम करता है. टेबल-दर-टेबल होता हुआ, पहले नीचे से ऊपर फिर ऊपर से नीचे चलता है. कई-कई बार महीनों लग जाते हैं. फाइलों के एक टेबल से दूसरी टेबल तक पहुंचने में. लेकिन यहां मामला थोड़ा अलग था. पतासाजी हुई तो मालूम पड़ा कि फाइल निपटाने का फरमान ऊपर से था. दिलचस्पी गहरी हुई, तो भूमिका दिल्ली के एक बड़े कांग्रेसी नेता की पाई गई. कभी मुख्यमंत्री रह चुके नेताजी बिहाइंड द कर्टेन कंपनी के लिए लाइजनिंग का भी काम करते हैं. फिलहाल इन दिनों राज्य में सत्ता की कमान के लिए जारी रस्साकशी में नेता जी की भूमिका की चर्चा भी जमकर चर्चा है.
खरीफ की सभी फसलें राजीव न्याय योजना में आखिर क्यों?
भूपेश कैबिनेट ने अपने बड़े फैसले में खरीफ की सभी फसलों को राजीव गांधी किसान न्याय योजना के दायरे में ला लिया है. बताते हैं कि न्याय योजना में फसलों के नाम का जिक्र करने से कई तरह की दिक्कतें हो रही थी. केंद्र भी आंखें तरेर देता था. चिट्ठी पे चिट्ठी सो अलग. राज्य सरकार ने केंद्र से हुए एमओयू से लेकर दूसरे राज्यों तक कई तरह के अध्ययन किए. तब जाकर चूक सामने आई. कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर सभी खरीफ फसलों को राजीव गांधी किसान न्याय योजना से जोड़ा गया. चूक अब दूर कर ली गई है.