यूपीएससी आईएएस भी देती है, आईपीएस भी और आईएफएस भी, लेकिन आईएएस का रौब सबसे अलग. एक जिले की रौबदार आईएएस का यह रौब ही था कि एक आईएफएस से जा भिड़ी. नाफरमानी नामंजूर थी, सो खूब खरी खोटी सुनाई गई, नतीजतन दोनों के बीच तू तू मैं-मैं के हालात पैदा हो गए. आईएफएस की भूल बस इतनी थी कि नियम कायदे की दुहाई देने लगीं. कलेक्टर ने आवासीय विद्यालय और खेल मैदान के लिए छह हेक्टेयर जमीन की मांग की थी, लेकिन आईएफएस ने कह दिया कि उन्हें एक हेक्टेयर तक ही जमीन आबंटित करने का अधिकार है. वन भू प्रबंध को लेकर जारी निर्देशों का हवाला दिया गया, बावजूद इसके कोई दलील काम ना आई. वीडियो कांफ्रेंसिंग में आईएफएस को खूब खरी खोटी सुननी पड़ी. बताते हैं कि आईएफएस ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी. सुनाई ये भी पड़ा है कि रौबदार कलेक्टर साहिबा ने दो टूक कहा कि, इस मामले में उनकी बात सीधे सीएम हाउस में हुई है, जमीन आबंटित की जाए, पर नियम तो नियम था. आईएफएस भी अड़ी रहीं. इन सबके बीच एक सवाल उठ खड़ा हुआ कि आम तबके के लोगों की रोजमर्रा से जुड़े मामले नियम कायदों के चक्कर में धूल खाते पड़े रहते हैं, बरसो बीत जाते हैं सुनवाई नहीं होती. ्अर्जी पर अर्जी लगाई जाती है. लोग जब कलेक्टर दफ्तर में जाते हैं, तो जिम्मेदार नाक भौंह सिकोड़ने लगते हैं. और यहां कलेक्टर खुद नियमों के पार जाकर काम करवाने का फरमान सुना रही हैं. बहरहाल आईएएस -आईएफएस की तकरार पर जमकर कानाफूसी की जा रही है.
.
.
.
रिटायर्ड IFS का एनजीओ
यूं भी सरकारी सुख-सुविधाओं का मोह त्याग पाना आसान नहीं होता. यही वजह है कि ब्यूरोक्रेसी से रिटायर होते ही पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग की चाह बढ़ रही है. जिनकी लकीरें बड़ी होती हैं, उन्हें कुछ ना कुछ मिल ही जाता है. इस तबके के परे एक तबका एनजीओ के कारोबार में कूद पड़ता है. छत्तीसगढ़ में ही रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स के कई एनजीओ सरकार से अच्छा खासा काम लेते रहे हैं. बहरहाल रिटायर्ड IFS का एक एनजीओ वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट एंड कंजरवेशन प्लान तैयार कर रहा है. महकमे में रहते कभी एक सर्वे रिपोर्ट भी नहीं दी होगी, लेकिन करोड़ों रूपए के प्रस्तावित प्रोजेक्ट के लिए सर्वे कर रहे हैं. वैसे सरकार को ऐसे सर्वे की प्रमाणिकता पर दोबारा सर्वे कराया जाना चाहिए.
.
.
.
ब्रांड कान्शियस नेताजी
ये ब्रांड कॉन्शियस नेताजी हैं. टॉप टू बॉटम ब्रांडेड. इनके सिर की टोपी और पैरों के जूते मेड इन लंदन हैं, तो कलाई पर स्विज घड़ी सजती है. चाय पीने और पिलाने के शौकीन हैं, जाहिर है इनकी स्पेशल चाय भी विदेशों से आती है. नेताजी अपनी ब्रांड कॉन्शियस की बातें किसी से छिपाते भी नहीं. कहीं कोई टकरा जाए, तो उसके कपड़े, जूते से लेकर घड़ी तक के ब्रांड पर उनकी पैनी नजर ना पड़े, ये मुमकिन ही नहीं. अपनी इन विशेषताओं के बावजूद नेताजी के आदर्श गांधी जी है. दिल में गांधी के प्रति अटूट श्रद्धा भाव है. उनके इस भाव को देखते हुए ही सरकार ने उन्हें गांधी की भावना से जुड़े प्रतिष्ठान का जिम्मा सौंप रखा है. कहते हैं कि नेताजी के विरोधी भी उनके ज्ञान के कायल हैं. किसी भी विषय पर बात कर लो, रिफ्रेंस के साथ हाजिर जवाब मिल जाए.
.
.
.
हिस्सेदार कौन-कौन?
बिलासपुर आईजी रतनलाल डांगी ने मुंगेली जिले के पथरिया थाने के टीआई को निबंलित कर दिया. टीआई की नाक के नीचे करोड़ों रुपए के जुएं का फड़ चल रहा था, लेकिन कार्रवाई सिफर थी. अव्वल सवाल ये कि टीआई को निलंबित करने की कार्रवाई सीधे आईजी को करने की नौबत क्यों आई? जाहिर है शिकायत एसपी तक भी गई ही होगी. बहरहाल जानकारी यह भी सामने आई है कि बिलासपुर, मुंगेली, बेमेतरा जैसे जिले जुआरियों के पनाहगाह बने हुए हैं. रोजाना करोड़ों का फड़ बैठ रहा है. मर्सिडीज जैसी महंगी गाड़ियों में जुआरी पहुंचते हैं. हर रोज एक नई जगह पर फड़ लगाया जाता है. ऐसा नहीं है कि पुलिस को इन सबकी जानकारी पहले नहीं थी. पथरिया इलाके से वायरल हुए वीडियो ने बवाल मचा कर रख दिया था. वीडियो गले की हड्डी बन गया था. कार्रवाई करनी पड़ी. वैसे आईजी की जानकारी में यह मामला जैसे आया, उन्होंने आंखें तरेर दी. पहला विकेट टीआई का गिरा दिया. टीआई थे, नप गए, ऊपर वालों पर नजरे इनायत कब होंगी, जिनकी हिस्सेदारी तय हैं. ये सवाल बरकरार है. आईजी जरा नजदीक के लोगों से ही पूछ लें कि हिस्सेदार कौन-कौन है? बताते चले कि चर्चा यह भी है कि आपस में लगे इन जिलों में जुएं के लग रहे बड़े फड़ में पुलिस का अपना हिस्सा तय है. ऊपर 20 और नीचे 10 की बातें हो रही है.
.
.
.
उधर जेएनयू की वीसी का विरोध, इधर…
दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की नई वाइस चांसलर को लेकर सोशल मीडिया में विरोध के स्वर बुलंद हो रहे हैं, जाहिर है नियुक्ति के पीछे कोई एजेंडा होगा, तो सवाल उठेंगे ही. इधर छत्तीसगढ़ में कई विश्वविद्यालय हैं जहां संघ समर्थित चेहरे वाइस चांसलर की कुर्सी पर जमे हुए हैं और सरकार है की चाहकर कुछ नहीं कर पा रही. सबसे दिलचस्प किस्सा तो कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय का रहा है, जहां सरकार की पसंद को दरकिनार करते हुए राज्यपाल ने संघ का चेहरा बिठा दिया, सरकार सिवाए विरोध के कुछ नहीं कर सकी. हालांकि कुछ लोगों ने सुझाव दिया था कि राज्य पोषित विश्वविद्यालय में नियुक्ति का अधिकार सरकार अपने पास ला सकती है, बस विधानसभा में एक एक्ट लाना होगा. ठीक मध्यप्रदेश की तरह. कमलनाथ की सरकार थी, तब माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय में वाइस चांसलर पद पर एक वरिष्ठ पत्रकार की बतौर वाइस चांसलर नियुक्ति की गई. सत्ता में फिर से शिवराज सरकार आने के बाद वाइस चांसलर का चेहरा बदल दिया गया. छत्तीसगढ़ में भी सरकार की मंशा यही थी कि कुशाभाउ ठाकरे विश्वविद्यालय में किसी पत्रकार की नियुक्ति की जाए, लेकिन सरकार की नहीं राज्यपाल की चली. सरकार के लिए अब यह बस सियासी मुद्दा है.
.
.
.
भूपेश-टीएस
बीते हफ्ते सूबे के मुखिया के घर शादी थी. सोशल मीडिया पर दुल्हे से ज्यादा तस्वीर मुखिया की जारी होती रही. फोटोजनिक फेस है. तस्वीर लेने वाले ने भी खूब पोज बनवाए, लेकिन सबसे ज्यादा दिलचस्प तस्वीर जय-वीरू की जोड़ी की चर्चित रही. दोनों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़ बारात में क्या खूब नाचा. चेहरे पर खिली मुस्कान उस दौर में ले गई, जब चित्रकूट वाटरफाल पर ली गई एक तस्वीर ने जय-वीरू की जोड़ी की संज्ञा बुनी थी. तस्वीर देखने वालों ने कहा, खामखा लकीरें खिंंचने की कोशिश की जाती हैं. आखिर एक सीधी लाइन पर ही यह जोड़ी चल रही है, बिल्कुल समानांतर. कहीं कोई भेद नहीं. वैसे भी कई मर्तबा यह बयान सामने आया है कि लकीरों में अंतर मीडिया ने पैदा की हुई है. टी एस शादी समारोह में बड़े पिता की भूमिका में खूब दिखे. सिर पर पगड़ी पहन बाराती भी बने, तो शाम की महफिल ठीक वहां खड़े नजर आए, जहां से मेहमान भीतर दाखिल हो रहे थे. किसी ने टिप्पणी दर्ज कर कहा, उधऱ एक जोड़ी बन रही है, इधर एक जोड़ी मिल रही है.
.
.
.
इधर बीजेपी में तकरार
केंद्रीय मंत्री के दौरे में काला झंडा दिखाने की कांग्रेसियों के ऐलान ने बखेड़ा कर दिया. जेल रोड पर मंत्री बंगले के करीब कुछ कांग्रेसियों की बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पिटाई कर दी, तो बड़ा बवाल मच गया. पूर्व मंत्री राजेश मूणत भी कूद पड़े. पुलिस वालों से जमकर कहा सुनी हो गई. और तो और कार्यकर्ता को हिरासत से लेते वक्त खुद भी पुलिस गाड़ी में बैठ गए. थाने में भी खूब बवाल मचा, वहीं धरना दे दिया. शाम तक पूर्व मुख्यमंत्री समेत कई बड़े नेताओं को जाना पड़ा. आनन-फानन में राजभवन मार्च, रायपुर बंद जैसी घोषणा भी कर दी गई, लेकिन दूसरे दिन बीजेपी को बैकफुट पर आना पड़ा. बताते हैं कि पार्टी कार्यालय में जब इस मसले पर बैठक हुई, तब डाॅ. रमन सिंह की मौजूदगी में अजय चंद्राकर, बृजमोहन अग्रवाल के खेमे ने आपत्ति दर्ज की. किसी एक मामले में सड़क पर उतरने की बजाए पूरे प्रदेश में कार्यकर्ताओं के ऐसे मामलों पर आक्रामक लड़ाई की पैरवी की. सड़क पर आक्रामक लड़ाई तो बाद में होती, बैठक में दिखाई गई आक्रामकता ऐसी थी कि राष्ट्रीय शोक की आड़ में आंदोलन स्थगित करना पड़ा.