Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

गुड़ लेकर आई ‘चींटी’

चींटी वहीं आती हैं, जहां गुड़ होता है, लेकिन इस दफे चींटी गुड़ साथ लेकर आई है. महात्मा गांधी से प्रेरित थी ये चींटी. तभी तो उनके उस कथन को सार्थक करती दिखी, जिसमें उन्होंने कहा था कि, ‘खुद को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है कि खुद को दूसरों की सेवा में लगा दो’. चींटी ने प्रोजेक्ट मिलने के पहले ही मिठास बांटनी शुरू कर दी है. मानवता की सेवा में खुद को झोंक दिया है. दरअसल ‘चींटी’ के नाम की ये कंपनी नवा रायपुर के एक चर्चित और महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की ओर धीमे-धीमे अपने कदम बढ़ा रही है. ये चींटी गांधी के प्रेरक वचनों पर आस्था रखने वाली है. सद्भावना की मिसाल पेश करते हुए दूसरों को सजाती-संवारती हुई आगे बढ़ रही है. हालांकि इस मिठास की कीमत बहुत ऊंची है. सुना है कि प्रोजेक्ट सैकड़ों करोड़ रुपयों का है, जाहिर है, ऐसे में यदि सद्भावना नहीं होगी, तो गुड़ का स्वाद बिगड़ जाएगा. वैसे यह नहीं मालूम कि चींटी लाल है या काली. काली हो, तब तो ठीक है, लेकिन यदि लाल निकली, तब दिक्कत हो सकती है. मान्यता है कि लाल चीटियां अशुभ मानी जाती हैं. ये भविष्य की परेशानियों और विवाद के संकेत दे देती हैं.

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‘कलेक्टर बंगले’ पर विवाद

नौकरशाही में बंगले का विशिष्ट स्थान होता है. जब बात कलेक्टर बंगले की हो, तब कहने क्या. बस्तर के एक जिले का ‘कलेक्टर बंगला’ झगड़े की वजह बन गया है. बंगले की वजह से कलेक्टर और पूर्व कलेक्टर आमने-सामने आ खड़े हुए हैं. नए वाले साहब को नई-नई कलेक्टरी मिली है, लेकिन बंगले का सुख भोग नहीं पा रहे. इधर पूर्व कलेक्टर तबादले के एक महीने बाद भी बंगला मोह छोड़ नहीं पाए हैं. नया तबादला मंत्रालय में हुआ है, मगर हर शनिवार-रविवार को जिले के कलेक्टर बंगले में सरकार के दिए गए दो साप्ताहिक अवकाश का लुत्फ उठा रहे हैं. ये सब देख नए कलेक्टर की भृकुटी तनी हुई है. बंगला खाली होगा तब जाकर पूरी गृहस्थी बसेगी. फिलहाल दिन दफ्तर में और रात सर्किट हाउस में कट रही है. जब कलेक्टरी मिली थी, तब सोचा था, जल्दी बंगला खाली हो जाएगा, लेकिन देरी होते देख. गाड़ी, नौकर-चाकर अपने पास बुला लिया. कानाफूसी है कि दो दिन पहले कलेक्टर बंगले की बिजली काट दी गई. कलेक्टर बंगले को छोड़कर आस पड़ोस में सभी जगह बिजली थी. पूर्व कलेक्टर का परिवार बंगले में था, सो नाराजगी फूट पड़ी. सीनियर अधिकारियों तक शिकायत की गई. कहते हैं कि सीनियर अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद बंगले की बिजली लौटी. इस भरोसे के साथ कि एक हफ्ते में बंगला खाली हो जाएगा. वैसे युवा कलेक्टर जब पहुंचे थे, फसाद तब से ही शुरू हो गया था. जाते ही सबसे पहले पिछले कलेक्टर की ओर से जारी किए गए चेकों के भुगतान पर रोक लगा दी थी. बकायदा बैंक को चिट्ठी भेजकर. बहरहाल अव्वल सवाल तो यही है कि पिछले वाले साहब महीने बाद भी आखिर क्यों बंगला छोड़ नहीं रहे. कही कुछ अधूरे काम पूरे होने का इंतजार तो नहीं !
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मुख्यमंत्री को किसने बनाया ‘राज्यपाल’

पढ़कर चौंकिएगा नहीं कि सरकारी दस्तावेजों में मुख्यमंत्री राज्यपाल बन गए हैं. हुआ कुछ यूं कि विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति को लेकर कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि कुलपति की नियुक्ति मुख्यमंत्री की अनुशंसा से की जाएगी, लेकिन जब नोटिफिकेशन जारी किया गया, तब कैबिनेट के निर्णय को ताक पर रख ‘मुख्यमंत्री की अनुशंसा’ की जगह नोटिफिकेशन में ‘राज्यपाल की अनुशंसा’ लिख दिया गया. अब सवाल ये उठ रहा है कि वह कौन सा अधिकारी है, जिसने कैबिनेट के निर्णय पर अपनी पेन चला दी. बहरहाल इस बीच राजभवन ने भी कुलपति की नियुक्ति कर दी. अब सरकार उस व्यक्ति को ढूंढ रही है, जिसने यह कारनामा किया है. दिसंबर में कुलपति की नियुक्ति हुई और तब से लेकर अब तक उस शख्स को ढूंढा नहीं जा सका है. कई विश्वविद्यालयों में संघ से जुड़े कुलपतियों की नियुक्ति पर जहां राज्य में सियासत गरमाई हो, वहां ऐसी घटना सरकार की पेशानी पर बल डाल रही हैं. बताते हैं कि जिस शख्स को बतौर कुलपति राजभवन ने नियुक्त किया है, उनके खिलाफ आरोपों की लंबी फेहरिस्त रही है. उत्तरप्रदेश में जिस विश्वविद्यालय के कुलपति थे, वहां उनके खिलाफ गंभीर अनियमितता के आरोप लगे. राजभवन को जांच के निर्देश देने की नौबत आ गई. झारखंड के एक विश्वविद्यालय में रहने के दौरान बतौर प्रभारी कुलपति खुद को छह महीने का एक्सटेंशन दे दिया. दर्जन भर लोगों की सर्विस को भी एक्सटेंड कर दिया. खैर इधर अब लोग कह रहे हैं कि जिन चीजों को छोटा-मोटा मानकर नजरअंदाज कर दिया जा रहा है, बड़े-बड़े खेल वहीं खेले जा रहे हैं. सरकार को सत्ता की खुमारी से थोड़ा ध्यान हटाकर इन खेलों के किरदारों पर नजर दौड़ानी चाहिए.
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IFS पर भारी पड़ी IAS 

बोरिया बिस्तर समेटने की धमकी में दम था. तभी तो IFS पर IAS भारी पड़ गईं. चर्चा है कि जल्द ही IFS का पत्ता कट सकता है. विवाद का बिल IFS के नाम कटा है. पिछले दिनों आवासीय विद्यालय और खेल परिसर के लिए कलेक्टर ने डीएफओ से छह हेक्टेयर जमीन की मांग की थी. डीएफओ ने नियमों का ज्ञान दिया. उधर ज्ञान की कमी नहीं थी. पुराने आदेश की तमाम कॉपी हाथ में थी, सो विवाद ने जन्म लिया और बात तू तू मैं मैं तक जा पहुँची. शिकायत ऊपर तक जा पहुँची. ऊपर वालों ने कलेक्टर के सिर पर हाथ रख दिया. सुना है कि आज कल में डीएफओ का टिकट कट जाएगा. डीएफओ को IFS एसोसिएशन से बड़ी उम्मीद थी. उम्मीद धराशायी हो गई. एसोसिएशन चुप्पी साधे रहा. इस घटना ने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि आल इंडिया सर्विसेज में जलवा तो IAS कैडर का ही है. तूती इन्हीं की बोलती है.
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महिला विधायक का टशन

एक महिला विधायक की दिलेरी देखिए कि अपने क्षेत्र के एक कार्यक्रम में अतिथियों की सूची से ना केवल मंत्री का नाम कटवा दिया, बल्कि सूची में नाम डालने वाले सीएमएचओ को जमकर खरी खोटी सुना दी. दरअसल दुर्ग संभाग में महिला विधायक के क्षेत्र में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का शुभारंभ था. इस कार्यक्रम के लिए स्थानीय स्तर पर सीएमएचओ ने अतिथियों की सूची तैयार की. चूँकि ये क्षेत्र मंत्री के विधानसभा से लगा हुआ था, लिहाज़ा सूची में उनका भी नाम शुमार किया गया, लेकिन महिला विधायक पूरे टशन में दिखीं. महिला विधायक के तेवर की चर्चा जब मंत्री तक पहुँचाई गई, उन्होंने खुद पहल कर अपना नाम हटवा दिया. कहा, क्षेत्र सम्मानीय विधायक का है, ऐसे में उनकी मर्ज़ी के बग़ैर आमंत्रित ना किया जाए. मंत्री सीनियर है. गंभीर भी. कोई दूसरा होता तो फिर महिला विधायक की ख़ैर नहीं थी.
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ठेके की वजह कहीं हीरे की चमक तो नहीं! 

गरियाबंद जैसे छोटे से ज़िलों में सैकड़ों करोड़ रुपये की सड़कों के ठेके पर अब भौहें तन रही हैं. पीएमजीएसवाय, मेजर डिस्ट्रिक्ट रोड जैसी कई अलग-अलग योजनाओं से जुड़ी कई करोड़ रुपये की सड़कें बन रही हैं. सवाल उठाने वालों का गणित बेहद मजबूत है. पूछा है कि इन ठेकों के पीछे की असली कहानी क्या हैं?  सड़क बनाने के लिए ज़रूरी रॉ मटेरियल के लिए जिले में ही टेम्परी माइनिंग लीज दी गई है. जिले में आने वाले देवभोग जैसे इलाकों में कहा जाता है कि खेत खोदने पर भी हीरा निकल आता है, ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि इन ठेकों की आड़ में कहीं हीरे की अवैध माइनिंग तो शुरू नहीं की जा रही. अविभाजित मध्यप्रदेश में दिग्विजय सरकार ने डी विलियर्स कंपनी को माइनिंग प्रास्पेक्ट का काम दिया था लेकिन तब अजीत जोगी के विरोध और कोर्ट कचहरी की वजह से यह आज तक मुमकिन नहीं हो सका. पिछली सरकार में रमन सिंह कहते थे कि अकेले गरियाबंद जिला पूरे राज्य को संपन्न बना सकता है. यहाँ हाई ग्रेड हीरे की संभावना है. बावजूद इसके बीजेपी सरकार हीरे की माइनिंग नहीं करा पाई. अब हालात सीधे नहीं, तो टेढ़े तरीके से बनते देख कईयों ने गरियाबंद की ओर अपनी आंखें तरेरी हुई है, क्या पता कल को मध्यप्रदेश के पन्ना की तरह ये खबर सुनने को मिल जाए कि फलाने खेत में हीरे का टुकड़ा मिला है.
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सोनिया के पीए का छत्तीसगढ़ दौरा

सुनाई पड़ा है कि बीते दिन कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेहद भरोसेमंद सहयोगी माधवन रायपुर पहुंचे हैं. हालांकि उनके इस दौरे को बेहद निजी बताया जा रहा है, लेकिन ऐसा लगता नहीं है. एयरपोर्ट पर बकायदा प्रोटोकॉल आफिसर ने बुके देकर उनका स्वागत किया है. सोनिया गांधी के सहयोगी है, लिहाजा इतना तो बनता है. एक दफे राहुल गांधी के सहयोगी सचिव राव रायपुर आए थे, तब एयरपोर्ट पर उन्हें रिसीव करने चार मंत्री पहुंच गए थे, इस दफे केवल दो नेता की मौजूदगी. बहरहाल इस दौरे के पीछे तरह-तरह की कहानियां बनाई जा रही है. पर असल कहानी छनकर आने में थोड़ा वक्त है. तब तक इंतजार…