Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

‘सी-मार्ट’ और लूट

कितना अच्छा हो अगर सरकार ऐसा आदेश जारी कर दे कि सभी सरकारी अधिकारी दैनिक जरूरतों के सामान सी-मार्ट से ही खरीदें. महिला स्व सहायता समूहों को आत्म निर्भर बनाने की इस पहल को सार्थक नतीजे मिल ही जाएंगे. बहरहाल ये आदेश जरूरी इसलिए भी है क्योंकि सी-मार्ट में 45 रूपए प्रति किलो में बिकने वाला शक्कर 90 रूपए, 65 से 75 रूपए प्रति किलो वाला चना दाल 115 रूपए, 90 से 100 रूपए प्रति किलो में बिकने वाली उड़द दाल 110 रूपए, 45 से 50 रूपए प्रति किलो वाला चावल 65 रूपए, एक हजार रूपए लीटर वाला शुद्ध घी दो हजार रूपए और 160 रूपए वाला गेंहू आटा 180 रूपए में बिक रहा है. बढ़ती महंगाई में आम आदमी जहां एक-दो रूपये बचाने के गुणा-भाग में जुटा है, वहां दस-बीस रूपये ज्यादा देने का साहस कहां से जुटाएगा. इतना साहस तो सूबे के मंत्री, विधायक, अधिकारी ही जुटा सकते हैं. सो सी-मार्ट से अनिवार्य खरीदी का आदेश जारी हो ही जाना चाहिए. बहरहाल सुनने में आया है कि सी-मार्ट में बेचे जा रहे उत्पादों की दरों पर खुद सी-मार्ट के समन्वयक बनाए गए सीनियर आईएएस डाॅ.आलोक शुक्ला ने ही सवाल उठाया है. सवाल उठाने के पीछे उनका मकसद बड़ा स्पष्ट है कि दरें ऐसी तय की जाएं, जिससे उत्पादों को बाजार मिल सके. बताते हैं कि उन्होंने इसे लेकर मातहत अधिकारियों से अपील की है कि अपनी पहचान छिपाकर वह खुद सी-मार्ट जाएं और उत्पाद खरीदकर बाजार की दरों से उसकी तुलना करें. सुना है कि सी-मार्ट के समन्वयक होने के नाते उन्होंने तो यहां तक कह दिया है कि यदि वक्त रहते दरों को पुनर्निधारण नहीं किया गया, तो यह योजना फ्लाॅप भी हो सकती है. वैसे बाजार की दरों के अनुपात में इसे लूट कहा जा रहा है.

बड़ा घोटाला ! 

इसे कहते हैं भेड़चाल. एक जिले में भ्रष्टाचार की नींव खुदी, तो बाकी जिले कारवां में शामिल होते चले गए. धीरे-धीरे एक बड़ा घोटाला हो गया, मगर किसी को कानों कान खबर नहीं. कहीं कोई हल्ला नहीं हुआ. यहां ना कोई नियम देखा गया, ना ही कायदा, मगर फायदा जमकर ढूंढ लिया गया था. यदि इस मामले की ठीक ठाक जांच हो गई, तो यकीन मानिए एक बड़ा घोटाला फूटेगा. दरअसल हुआ यूं कि ग्राम पंचायतों में बड़े पैमाने पर सोलर लाइट, सोलर पंप, सोलर हाईमास्क लगा दिया गया. बताते हैं कि कई जिलों में जिला खनिज न्याज ने सरकारी एजेंसी ‘क्रेडा’ को ताक पर रखकर जनपद पंचायतों को एजेंसी बना दिया. जनपद पंचायतों ने बगैर टेंडर करोड़ों के काम करा लिए. इसे ऐसे समझे कि सड़क बनानी है पीडब्ल्यूडी को और बना दिया स्वास्थ्य विभाग ने. इधर कई ग्राम पंचायतों में काम खत्म करने के बाद सप्लायरों ने भुगतान की पर्ची पंचायत विभाग के नाम काटी है. बताते हैं कि कहीं-कहीं 15 वें वित्त से भुगतान करने संबंधी चिट्ठी लिखी गई. अवैध काम को पंचायत विभाग के जरिए वैध करने की एक कोशिश की जा रही है. मगर कहा जा रहा है कि पंचायत विभाग के पास ऐसा कोई मद नहीं है. सुनाई पड़ा है कि कई सप्लायर अब बिल लेकर दरवाजे-दरवाजे घूम रहे हैं. कहते हैं कि सोलर लाइट के इस बड़े खेल में यदि जांच हो गई तो कई बड़ी हस्तियां जद में आएंगे. सबसे ज्यादा ठीकरा जनपद सीईओ पर फूटेगा. ग्राम पंचायतों में जनपद सीईओ के जरिए ही धड़ल्ले से काम कराए जाते रहे. प्रिंटर्स का काम करने वाले भी सोलर लाइट के सप्लायर बन लाखों के बिल ऐंठने लगे. सुनाई तो ये भी पड़ा है कि जहां-जहां बिल पर रोड़े अटकाए गए, वहां-वहां सत्ताधारी दल के कुछेक विधायकों ने फोन कर बिला पास कराने का दबाव बनाया. 

‘क्रेडा’ की साख पर सवाल

सोलर पर हुए इस बड़े खेल के बाद ‘क्रेडा’ को अपनी साख की चिंता सता रही है. बस्तर, दुर्ग समेत कई जिलों से क्रेडा मुख्यालय में आई चिट्ठी कहती है कि सोलर लाइट और सोलर पंप की क्वालिटी ऐसी है कि कोई भी सिर पीट ले. गांवों में सोलर लाइटें लगने की खुशियां भी ग्रामीणों के चेहरों पर दो दिन से ज्यादा नहीं टिकी, ज्यादातर लाइटें बंद हैं. सोलर पंप का कुछ ऐसा ही हाल है. टंकी लगनी थी पांच हजार लीटर की, मगर लगा दिया गया दो हजार लीटर का. कई जिलों में क्रेडा के अधिकारियों ने मुख्यालय में भेजी गई चिट्ठी में नियम कायदों को ताक पर रखने की दुहाई दी है, साथ ही तफ्तीश कर ये भी बताया है कि गुणवत्ताविहीन सोलर लाइट और पंप लगाने से उंगलियां क्रेडा पर ही उठ रही हैं. दरअसल इस चिंता की एक बड़ी वजह ये भी है कि ये विभाग खुद मुख्यमंत्री के पास है, सो अधिकारियों में डर ज्यादा है. वैसे काम इतनी बारिकी से किया गया, शायद की मुख्यमंत्री की जानकारी में ये बातें होगी. यकीनन जानकारी होगी, तो कार्रवाई तय है. 

कलेक्टर के कड़े तेवर

हालिया तबादले में नए जिले में पहुंचे कलेक्टर साहब के तेवर से मातहत अधिकारी-कर्मचारी सहम गए हैं. जिले में अभी-अभी आमद दी है, मगर उनका दावा है कि वह सबकी कुंडली लेकर बैठे हैं कि कौन कितने पानी में है? लगता है तबादला होने के पहले ही उन्होंने छानबीन शुरू कर दी थी. बहरहाल एक ताजा वाक्या पता चला है. तबादले के बाद जब उन्होंने मातहत अधिकारियों की एक बड़ी बैठक ली, तब एक नए नवेले जिला स्तर के अधिकारी उनके कोपभाजन का शिकार हो गए. भरी बैठक में बोल बैठे कि तुम्हारी पूरी कुंडली मैं जानता हूं. तुमने कितना भ्रष्टाचार किया है. तुम्हारे खिलाफ एफआईआर दर्ज कराऊंगा. .70-80अधिकारियों के बीच कलेक्टर साहब का यह तेवर देख हर कोई स्तब्ध रह गया, लेकिन चर्चा इस बात की है कि जिस अधिकारी को यह बात कही गई ,उसकी भी नई नवेली पोस्टिंग है. उनकी कुंडली भी ठीक से तैयार नही हुई है. सुनाई पड़ा है कि कलेक्टर की डांट खाने के बाद मातहत अधिकारी गहरे सदमे में डूब गया है. करीबी बताते हैं कि वह रह रहकर नौकरी से इस्तीफा देने तक की बातें कह रहा है.

नियुक्ति पर सवाल

महिला एवं बाल विकास विभाग में हाल में निकाली गई पर्यवेक्षकों की भर्ती पर कहीं खटाई ना पड़ जाए. दरअसल मामले में पेंच फंसता दिख रहा है. व्यापमं के चयनित सूची जारी किए जाने के बाद विभाग ने 4 मई को नियुक्ति आदेश जारी कर दिया, लेकिन हफ्ते भर के भीतर ही 10 मई को दोबारा संशोधित आदेश जारी किया, जिसमें करीब दर्जन भर अभ्यर्थियों के नाम हटा दिए गए. बैक टू बैक निकले इन आदेशों से कई जिलों में अधिकारी भी पशोपेश में हैं. एक जिले के महिला एवं बाल विकास अधिकारी की माने तो आने वाले दिनों में यह मुद्दा बवाल मचाएगा. बकौल विभागीय अधिकारी कुछ लोग इस भर्ती प्रक्रिया के खिलाफ कोर्ट की दहलीज जाने की तैयारी में जुट गए हैं. अब बड़ा सवाल ये है कि चयन के बाद जिन्हें नियुक्ति दा जा चुकी है, कोर्ट कचहरी के चक्कर में कहीं उन्हें खामियाजा ना भुगतना पड़ जाए.