
कुर्सी दौड़
जिन मंत्रियों के रथ का पहिया जमीन से एक फीट ऊपर है, उन मंत्रियों को थोड़ा सचेत हो जाना चाहिए. दिल्ली की नजर में सब कुछ है. कुछ मंत्रियों की कारगुजारियां दिल्ली में पकड़ा गई हैं. दरअसल हर मंत्री बंगला केंद्रीय एजेंसियों की निगरानी में है. अब समझ लीजिए कौन आया? किसलिए आया? क्या डील हुई? यह सब जानकारियां इकट्ठी हो रही हैं. पिछले दिनों की बात है, प्रस्तावित मंत्रिमंडल फेरबदल को लेकर जब यह सुर्खियां बाहर आई कि एक-दो मंत्रियों की विदाई हो सकती है, तब कुछ मंत्रियों ने खुद को कमजोर मानते हुए, अपनी कुर्सी बचाने की दौड़ शुरू कर दी. उन मंत्रियों ने पहले अपनी-अपनी कुर्सी का अच्छे से मुआयना कर लिया कि कहीं कुर्सी में दीमक तो नहीं लग गया है. एक मंत्री को लगा कि शायद प्रदेश प्रभारी कुछ काम आ सकते हैं. उन्होंने झट से बिहार की फ्लाइट टिकट कराई और उड़ गए. मंत्री को अचानक आ धमका देख प्रदेश प्रभारी भी सोच में पड़ गए. सब कुछ समझते देर नहीं लगी. उन्होंने भी जमकर फिरकी ली. मंत्री ने प्रदेश प्रभारी की चाय तो पी, मगर चाय की चुस्कियों में वह आश्वासन नहीं मिला, जिसकी उन्हें तलाश थी. प्रदेश प्रभारी से मिलकर मंत्री के लौटने की खबर जब दूसरे कमजोर मंत्री को हुई, तब उन्होंने भी प्रदेश प्रभारी से मिलने की ठानी, लेकिन वह एक चूक कर बैठे. बिहार की सीधी फ्लाइट नहीं पकड़ी. पहले प्रभारी के अधीनस्थों से संपर्क किया और जब बात नहीं बनी, तब उन्होंने खुद की प्रदेश प्रभारी को फोन लगा लिया. फोन पर चलती बातचीत में ही प्रदेश प्रभारी ने मंत्री के दिल की धड़कन सुन ली. उन्होंने कहा, यहां आने की तकल्लुफ़ न उठाए. जो होना है, सो होगा ही. रही बात मुलाकात की, वह छत्तीसगढ़ में ही होगी. तब से लेकर आज तक का दिन है, मंत्री चैन की नींद सो नहीं पा रहे हैं. बिहार में चुनाव है. ज़ाहिर है प्रदेश प्रभारी की अपनी व्यस्तता होगी. ऐसे में जब वह खुद की कुर्सी बचाने की दौड़ में शामिल हैं, तब भला दूसरे की कुर्सी बचाने में अपनी ऊर्जा की खपत क्यों ही करेंगे. खैर, सूबे के इस मंत्री का दिमाग सिर्फ कुर्सी जानता है, कुर्सी पर बैठकर काम करना नहीं. काम करने के लिए है ना अधिकारियों की पूरी फौज. विधानसभा में जब सवालों से ये मंत्री घिरते हैं, तब अपनी दीर्घा में बैठे अफसर अपना माथा ठोकते दिखते हैं. क्या ही किया जा सकता है.
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थोड़ा डंडा उठा लो
इधर सरकार सुशासन का नारा बुलंद कर रही है, उधर रूलिंग पार्टी के विधायक अपने-अपने क्षेत्रों में कुशासन का इकबाल बुलंद कर रहे हैं. सरकार तो संभवतः सुशासन ले आएगी, मगर कुशासन गढ़ने वाले विधायक अगले चुनाव में अपनी कुर्सी कैसे बचा पाएंगे? रूलिंग पार्टी के सामने विधायकों का मैनेजमेंट इस वक्त की सबसे बड़ी चुनौती है. लगाम नहीं लगाया गया, तो बदनामी तय है. भाजपा संगठन के एक बड़े नेता अपने विधायकों की कर्म गाथा सुनाते-सुनाते बड़े व्याकुल होकर कहते हैं, कहां है शुचिता और कहां है अनुशासन? खैर, अवैध रेत खनन विधायकों की दुखती नब्ज बन रही है. एक सीनियर मंत्री का परिवार अघोषित रूप से इस कारोबार में उतर आया है. सुनते हैं कि मंत्री का बेटा रेत का राजा बन बैठा है. मंत्री नैतिकता का जोर देते कहते हैं, हमारा बेटा हर रोज़ क्षेत्र का दौरा करता है, अब दौरे में रेत घाट आ जाए, तो इसमें उसका क्या दोष? एक सीनियर विधायक हैं, जिनके इलाके में अवैध रेत खनन तब भी बेधड़क चलता रहा, जब सरकार ने प्रतिबंध लगा रखा था. चौतरफा हल्ला है कि अवैध रेत खनन को सरपरस्ती देने वाले इस सीनियर विधायक की कमाई प्रति माह ढाई खोखा तक है. नए विधायकों के लिए वहीं सच्चे अर्थों में प्रेरणा स्रोत हैं. नए विधायक उन्हें देखकर सोचते होंगे कि उनके इलाकों में विकास की गारंटी नहीं, मगर खोखे की गारंटी तय है. हे सरकार हुज़ूर आपसे बस इतनी अर्जी है. ”थोड़ा डंडा उठा लो,थोड़ा सिस्टम हिला लो, वरना अगले चुनाव में न विधायक बचेगा, न साख, बस बचेगा रेत और उस पर बहती राजनीति”
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डीजीपी की बैठक
बीते दिन डीजीपी ने सभी रेंज आईजी और एसपी की वर्चुअल बैठक ली. नपे-तुले शब्द थे, लेकिन शब्दों में पूरी-पूरी गंभीरता थी. बैठक लगातार पांच घंटे तक चलती रही. एडीजी इंटेलिजेंस बैठक में मौजूद थे. ज़ाहिर है, कौन एसपी कितने गहरे पानी में उतर चुका है, उसकी पूरी रिपोर्ट उनके हाथों में थी. फिर भी डीजीपी ने सभी एसपी को भरपूर सुना. डीजीपी सरल आदमी हैं. उनकी बातचीत में भी एक तरह की सरलता है. इसी सरलता के साथ उन्होंने गांजा, शराब, रिसार्ट, रेट और रिपोर्ट तक की सिलसिलेवार बात कर ली. डीजीपी ने आंखें उठाई, तो कुछ अफसरों की नजरें झुक गई. डीजीपी बोले, गांजा तस्करों के साथ पुलिस की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल होना, ये पुलिस की छवि के लिए ठीक नहीं है, अवैध शराब की अगुवाई पुलिस करे, यह पुलिस की छवि के लिए ठीक नहीं, पुलिस पिटाई का शिकार हो जाए, यह पुलिस की छवि के लिए ठीक नहीं, किसी रिसार्ट में हुए विवाद में पुलिस एक पक्ष बन जाए, यह पुलिस की छवि के लिए ठीक नहीं. भरी बैठक में डीजीपी ने एक जिले के अफसर से पूछा, क्या अवैध शराब में पुलिस की संलिप्तता है? अफसर ने दो टूक इंकार कर दिया. मगर एडीजी इंटेलिजेंस के हाथों रखी रिपोर्ट सच उगल रही थी. इस बैठक की चर्चा में नरमी थी, मगर मिज़ाज में गर्माहट. इस गर्माहट को जो एसपी समय रहते समझ ले, उसके लिए बेहतर हैं, वरना मानकर चलिए कि आगे का साइनबोर्ड उनके लिए खतरे का संकेत दे रहा है. डीजीपी का जोर बेसिक पुलिसिंग पर था. बेपटरी हुई बेसिक पुलिसिंग को शायद वह दुरुस्त करना चाहते हैं. मगर उनके सामने उलझने ज्यादा है. कुछ अफसर अब वर्दी नहीं, व्यवसाय पहनते हैं. थानों को थाना नहीं, ठेका मान लिया गया है. गश्त की जगह गठबंधन है और ला एंड आर्डर से ज्यादा ध्यान अवैध शराब के लोड और आर्डर से जोड़कर देखा जाने लगा है. सूबे की पुलिस का हाल यह हो चला है कि डीजीपी की चेतावनी को कई अफसर आचार संहिता की तरह मानकर चलते हैं, जिसे सुन तो लिया जाता है, मगर माना नहीं जाता. कुछ अफसर हैं, जिन्हें लगता है कि किसी प्रभावशाली व्यक्ति की जेब गर्म कर लेना ही उनका असली सुरक्षा कवच है. जाहिर है, उन्हें लगता होगा कि डीजीपी का निर्देश या चेतावनी एक किस्म का सिजनल एडवाइजरी है. बहरहाल, पुलिस की वह कुर्सी जो गांजा और शराब के नशे में डूबी हो, वह कुर्सी बेहद कमजोर होती है. वह हिलती नहीं है, सीधे गिर जाती है. हर वक्त एक तरह का नहीं होता. ज्ञान की बात बताई जाए, तो बेझिझक समझ लेनी चाहिए. इग्नोर किया, तो दिक़्क़त आ सकती है.
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नो रूम
मंत्रालय का हाल-बेहाल हो गया है. अफसर ज्यादा और रूम कम हो गए हैं. सूबे में जब सरकार बदली थी और दिल्ली डेप्युटेशन पर गए अफसरों के लौटने का सिलसिला चल पड़ा था, तब ले-देकर एक व्यवस्था बनाई गई थी. मिनिस्टर ब्लाक में कुछ अफसरों को शिफ्ट किया गया था. काम चल गया. मगर अफसरों की मंत्रालय में बढ़ती तैनाती से जीएडी के अफसर अब परेशान हो गए हैं. सुनते हैं कि हर नए ट्रांसफर आर्डर के बाद जीएडी के अफसर मंत्रालय के हर फ्लोर का चक्कर इस गुंजाइश के साथ लगा आते हैं कि कहीं तो कोई कमरा होगा. मंत्रिमंडल में विस्तार की अटकलों की संभावना के बीच मिनिस्टर ब्लाक में तीन कमरे अभी से रिजर्व कर दिए गए हैं. मिनिस्टर ब्लाक में भी अब कोई गुंजाइश नहीं बची है. जीएडी के सामने सबसे बड़ी दिक्कत ज्वाइंट सेक्रेटरी स्तर के अफसरों को रूम देने की है. मंत्रालय में हर स्तर के अफसरों के लिए रूम का अलग-अलग अरेंजमेंट है. ज्वाइंट सेक्रेटरी स्तर के अफसरों के लिए रिजर्व कुछ रूम पर डिप्टी सेक्रेटरी रैंक के अफसर काबिज थे. मंत्रालय में जब ज्वाइंट सेक्रेटरी की संख्या बढ़ी, तब न चाहते हुए भी डिप्टी सेक्रेटरी रैंक के अफसरों को रूम छोड़ना पड़ा. लगता है अब समय आ गया है कि सरकार को मंत्रालय की बिल्डिंग में थोड़ा एक्सटेंशन करना चाहिए. वर्ना ऐसी सिचुएशन बन जाएगी कि मंत्रालय में अफसरों की बढ़ती तैनाती देखते हुए जीएडी के अफसरों को लाबी एरिया में पार्टिशन खड़ा कर उन्हें बिठाना पड़ जाएगा.
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नॉनवेज
मंत्रालय में रूम की चर्चा छिड़ी तो एक किस्सा उछल कर बाहर आ गया. बताते हैं कि मंत्रालय में नॉनवेज खाने के शौकीन अफसरों का एक ग्रुप था. स्पेशल आर्डर पर नॉनवेज तैयार कर मंगाया जाता था. जब अफसरों का ग्रुप लंच पर मिलता, तब बैठने की ठीक-ठाक जगह नहीं होने से अड़चन होती. तब एक जुगाड़ ढूंढा गया. मंत्रालय के फर्स्ट फ्लोर के एक हिस्से पर एनआरडीए के खर्चे से एक आलीशान रूम तैयार किया गया. रिकार्ड में इस रूम को मीटिंग रूम कहा जाने लगा, मगर हकीकत में इसका इस्तेमाल नॉनवेज खाने के शौकीन अफसर लंच के दौरान करते थे. हफ्ते में दो-तीन बार इस कमरे में मीटिंग की आड़ में मुर्गी की टांग खींच ली जाती थी. अब तस्वीर बदल गई है. इस मीटिंग रूम का इस्तेमाल अब कथित तौर पर मीटिंग के लिए ही रिजर्व कर दिया गया है. रूम थोड़ा छोटा है. अमूमन इस रूम में मीटिंग तो होती नहीं, लेकिन जीएडी अफसरों ने इस पर ताला लगा रखा है. शायद अफसरों का ग्रुप जब कभी मंत्रालय में वापसी करेगा, तब इस रूम का इस्तेमाल फिर से लंच के लिए किया जाने लगे.