इज्जत दो कौड़ी की…
सरकार में विभाग होता है. विभाग में मंत्री होते हैं. मंत्री के अधीन आईएएस अधिकारी होते हैं. आईएएस के नीचे कई तरह के दूसरे मातहत अधिकारी-कर्मचारी होते हैं. माने पूरा लाव लश्कर होता है. यूं ही कोई विभाग, विभाग नहीं बन जाता. एक-एक ईंट जोड़कर जिस तरह से इमारत खड़ी होती है, ठीक वैसे ही एक-एक पद पर जिम्मेदार चेहरों को शोभायमान कर विभाग की रचना होती है. पढ़े-लिखे, जानकार लोग बिठाए जाते हैं. मगर यहां तो गजब हो गया ! महकमे के इस विभाग में मंत्री ने अधिकारियों की इज्जत दो कौड़ी की बनाकर रख दी. हुआ यूं कि पिछले दिनों मंत्री के बंगले में एक विभाग की अहम बैठक चल रही थी. बंगले में थी, सो अधिकारी-कर्मचारियों की पूरी फौज आ गई. प्रोजेक्टर पर प्रेजेंटेशन दिखाकर अधिकारी मंत्री को कुछ-कुछ समझा रहे थे. इन सबके बीच एक तस्वीर सामने आई. इस तस्वीर में दो आईएएस अधिकारियों के बीच एक गैर सरकारी शख्स की मौजूदगी दिखाई पड़ी. बताते हैं कि इस शख्स की मंत्री बंगले में गहरी पैठ है. विभाग में सप्लाई से जुड़े कई ठेके इस शख्स के बताए जाते हैं. जाहिर है विभागीय बैठक में एक ठेकेदार की मौजूदगी पर भौहें तनेगी ही. सुनाई पड़ा है कि मंत्री इस शख्स के मायाजाल में उलझे हुए हैं, सो सरकारी बैठकों में कुर्सी देने से भी उन्हें कोई गुरेज नहीं. इस शख्स का नाम सत्ताधारी दल के एक बड़े नेता के बेटे से मिलता जुलता है. कहते हैं विभाग के कई ठेके इसी धोखे में दिए गए हैं कि फलाने का बेटा है. खैर पर्दे के पीछे की हरकतों पर किसी का ध्यान नहीं जाता. मगर पर्दे के इस पार दिखने वाली चीजें सवाल उठाने का मौका जरूर दे देती हैं.
हंगामा है क्यों बरपा?
पिछले दिनों कांग्रेस की एक बैठक से खबर आई कि मुख्यमंत्री संगठन के रवैये से बेहद खफा होकर निकले. यह कहते हुए कि ”जब मनमानी करनी ही है, तो ऐसी बैठकों में मैं नहीं आऊंगा”. बताते हैं कि नाराजगी प्रदेश अध्यक्ष को दिए गए किसी काम से जुड़ी थी, जिसे करना तो दूर एक ढेला भी नहीं उठाया गया. खैर सत्ता और संगठन की परिभाषा गढ़ने वाले किसी अति बुद्धिमान शख्स की नसीहत थी या किसी और की मालूम नहीं, मुख्यमंत्री की इस नाराजगी के बीच ही महामंत्रियों के काम के बंटवारे का एक आदेश जारी किया गया. इस आदेश के तहत बूथ कमेटी प्रबंधन का जिम्मा पार्षद चुनाव हार चुके एक महामंत्री के कंधों पर डाल दिया. बताते हैं कि पार्षद चुनाव में ये महामंत्री तीसरे पायदान पर आए थे. इससे पहले बूथ कमेटी प्रबंधन का जिम्मा खुद प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम, मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा और गिरीश देवांगन संभालते थे. कहते हैं कि बूथों को मजबूत करने में विनोद वर्मा की सबसे बड़ी भूमिका रही थी. बूथों को मजबूत कर ही कांग्रेस ने 15 सालों का वनवास खत्म किया था. एक-एक बूथ में प्रशिक्षण देकर चुनावी जीत का रास्ता बुना गया था. मगर अब यह जिम्मा पार्षद चुनाव का प्रबंधन करने में नाकाम रहे शख्स के मत्थे डाल दिए जाने से संगठन के सीनियर नेता हक्का-बक्का रह गए हैं. इसी तरह जिलों में राजीव भवन बनाने का जिम्मा पहले रामगोपाल अग्रवाल और गिरीश देवांगन के हिस्से था. मगर अब यह जिम्मा दूसरे महामंत्री को दे दिया गया है. अग्रवाल-देवांगन सत्ता से जुड़े हैं, जाहिर है संसाधन जुटाने की मशक्कत नहीं करनी पड़ती. मगर संगठन के भीतर अब कयास लगाए जा रहे हैं कि राजीव भवन बनाने की गति पिछड़ जाएगी. संसाधन जुटाने का सामर्थ्य तो ”अग्रवालों” के हिस्से ही होता है. बहरहाल, सत्ता-संगठन के बीच छिड़ी रार सबको दिख रही है और हर कोई पूछ रहा है, ”हंगामा है क्यों बरपा?”
आईएएस अधिकारियों का दबदबा
केंद्र में छत्तीसगढ़ के आईएएस अधिकारियों का दबदबा अब बढ़ रहा है. एक वक्त ऐसा था कि सेक्रेटरी इम्पैनल होना बड़ी बात होती थी. 1991 बैच की आईएएस अधिकारी रेणु पिल्ले केंद्र में सेक्रेटरी इम्पैनल हो गई है. उन्हें मिलाकर अब केंद्र में छत्तीसगढ़ कैडर से तीन आईएएस सेक्रेटरी इम्पैनल हो गए हैं. 1987 बैच के आईएएस बीवीआर सुब्रमण्यम इस वक्त केंद्र सरकार में सेवाएं दे रहे हैं, जबकि सेक्रेटरी इम्पैनल हो चुके 1989 बैच के आईएएस अमिताभ जैन राज्य के मुख्य सचिव हैं. गाहे बगाहे यह चर्चा जरूर चलती रहती है कि वह कभी भी केंद्र की ओर रुख कर सकते हैं. चर्चा है कि जैन केंद्र में अच्छी पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं. जिस दिन अच्छी पोस्टिंग मिलेगी, वह दिल्ली का रास्ता तय कर सकते हैं. सीनियरिटी लिस्ट में उनके बाद रेणु पिल्ले का नाम आता है. केंद्र में इम्पैनल होने के बाद संभावना है कि वह भी दिल्ली का रुख कर लें. जाहिर है ऐसे में चीफ सेक्रेटरी इन वेटिंग 1992 बैच के आईएएस सुब्रत साहू ही होंगे. सुब्रत मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के भरोसेमंद अधिकारी भी हैं.
बच गए रसूखदार !
ये बड़ा दिलचस्प घोटाला है. जिस जगह हुआ, वहां के लोगों को ही मालूम बाहर से चला. यानी चोर ने चोरी कर ली और घरवाले सोते रह गए. मामला मंडी बोर्ड का है. पिछले दिनों पुलिस ने मामले का खुलासा कर बताया कि मंडी बोर्ड के बैंक खाते से 16 करोड़ रुपए की ठगी हो गई. कुछ वक्त पहले ही तीन अलग-अलग बैंकों में रखी गई बोर्ड की 60 करोड़ रुपए की रकम एक बैंक में शिफ्ट की गई. ठगों ने धीरे-धीरे कर 16 करोड़ रुपए निकाल लिए. पुलिस में शिकायत गई, जांच हुई और ठगी का पता चला. अब कोई मासूम ही होगा जो यह मानने से इंकार करेगा कि इस पूरे कांड में बोर्ड के अधिकारी पाक साफ होंगे. मगर हैरत होती है कि इतना बड़ा घोटाला होने के बावजूद बोर्ड के जिम्मेदारों से पुलिसिया पूछताछ तक नहीं हुई. घोटाला हो गया और पुलिसिया जांच में बोर्ड की भूमिका शून्य आंकी गई. सुनाई पड़ा है कि ठगी के इतने बड़े मामले के बाद भी बोर्ड की तरफ से लिखित शिकायत अब तक नहीं दी गई. जरूर दिखावे के नाम पर एमडी ने मातहत दो लोगों को नोटिस जारी किया है. वैसे खबरी ने बताया है कि इस घोटाले की बड़ी रकम जिस एनजीओ के खाते में गई, उस एनजीओ की ही ठीक से जांच कर ली जाए, कोई कईयों की कलई खुल जाएगी. मामला कई रसूखदारों तक जा सकता है.
हम Elite class हैं !
इसमें कोई दो राय नहीं कि आईएएस Elite class सर्विस है. नौकर चाकर, सरकारी बंगला, गाड़ी क्या नहीं मिलता. ऊपर से कई तरह के प्रिविलेज. कहने को आम जनता के शाही नौकर हैं, मगर इनके आगे जनता की भूमिका नौकर से कम नहीं. ताजा-ताजा किस्सा मालूम चला है कि एक आईएएस पासपोर्ट दफ्तर पहुंचे. परिवार भी साथ था. यकीनन पासपोर्ट बनवाना रहा होगा. आमतौर पर पासपोर्ट दफ्तर में एक ही नियम कायदा है. ऑनलाइन अप्लाई करने के बाद अपॉइंटमेंट दिया जाता है. तय वक्त पर दस्तावेज लेकर जाना होता है. ऐसे ढेर सारे लोग थे, जिन्हें वक्त दिया गया था. सो वे लोग दस्तावेज लेकर पासपोर्ट बनवाने लोग पहुंचे थे. मगर Elite class वाली आदत आड़े आ गई. आईएएस साहब भीतर थे, इंतजार करना पड़ा. बताते हैं कि वक्त मिलने के बाद डेढ़-दो घंटे तक बगैर क्लास वाले लोगों को इंतजार करना पड़ा. अब करते भी तो क्या करते.